![Keshav Singh Prajapati Profile](https://pbs.twimg.com/profile_images/1793596443200192513/1aZX5HcE_x96.jpg)
Keshav Singh Prajapati
@keshav_singh84
Followers
360
Following
1K
Statuses
621
“जिसने भी खुद को खर्च किया है, दुनिया ने उसी को Google पर Search किया है।”
India
Joined March 2023
राहुल का पूरा भाषण, एक स्टेट्समैन का भाषण था। मौजूदा दौर में इन्वेस्टमेंट, रोजगार सृजन और आयात निर्यात संतुलन के लिए उसमे गहरे तत्व थे।
क्योकि मैं झूठ नहीं बोलता... राहुल गांधी ने संसद की अपनी स्पीच में कई बातें कही। लेकिन रोजगार के मुद्दे पर मौजूदा सरकार की नाकामी के साथ, यह भी जोड़ने में गुरेज न किया, कि UPA सरकार भी रोजगार देने में कमजोर रही.. ●● मनमोहन सरकार, जॉबलेस ग्रोथ के लिए कटघरे में खड़ी की जाती है। इस बात में आंशिक सचाई है। दरअसल, 30-40 साल पहले, पहले प्रति यूनिट इन्वेस्टमेंट पर जितने जॉब सृजित होते थे, सूचना तकनीक औऱ ऑटोमेशन ने उसमे बड़ा डेंट लगा दिया। उदाहरण के लिए - 500 खाते हैंडल करने के लिए यदि किसी बैंक में एक आदमी की जरूरत होती, तो अब 5000 खाते एक व्यक्ति हैंडल कर सकता है। या किसी सड़क निर्माण में 100 मजदूर, इंजीनियर, टेक्नीशियन लगते, अब वे मशीनों के साथ 500 किमी बना सकते हैं। एक टीचर 50 बच्चो को पढ़ाता। तो अब एक लाख बच्चो को एक टीचर पढा रहा है। हर सेक्टर इससे प्रभावित हुआ है। ●● इसके बावजूद, जिस दौर में देश मे धड़ल्ले से इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट के कॉलेज खुले, खूब प्लेसमेंट हुआ, बड़े बड़े पैकेज मिले, तो वह दौर मनमोहन सिंह का था। माइनिंग, कन्स्ट्रक्शन, फाइनैंस, आईटी, बी��ीओ, टूरिज्म हर सेक्टर में बूम का दौर था। अर्थव्यवस्था में आशावाद था। सरकारी नौकरियां इस दौर में अवश्य कम हुई। लेकिन तब स्टेट पीएससी, यूपीएससी, बैंकिंग, रेलवे के एग्जाम नियमित होते, और उनकी परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर कोई सवाल नही उठाता था। इसके बावजूद यह तथ्य है कि अपने उत्तरार्ध में बेरोजगारी की दर में स्थिर उठाव आता गया। मोदी दौर में 2018 तक बेरोजगारी के आंकड़े आते रहे, आलोचना बढ़ती रही, और अंततः आंकड़े जारी होने ही बंद हो गए। ●● बहरहाल, यहाँ मुद्दा राहुल का भाषण है। आधुनिक दौर में रोजगार सृजन के लिए जरूरी कदमो की वकालत करते हुए वह, साफगोई से मानते है कि उनके दौर में भी बेहतर काम हो सकता था। सर्विस सेक्टर में जिस तरह ध्यान दिया गया, वैसा अगर मैन्युफैक्चरिंग पर भी ध्यान दिया गया होता, तो हालात बेहतर होते। मेक इन इंडिया, मोदी सरकार का नारा अच्छा था.. पर दूसरे नारो की तरह, बिना पुख्ता नीति के फेल हो गया। ●● कभी राजीव ने कहा था कि रुपया दिल्ली से चलता है, तो जनता तक 15 पैसे आते हैं। नेहरू ने रेडियो पर स्वीकार किया कि चीन ने हमला किया, हमारी जमीन पर घुस आया। हमारी सेना को पीछे हटना पड़ रहा है। छुपाया नही, झूठ न बोला। उन्होंने 20 सैनिको की लाशो पर खड़े प्रधानमंत्री की तरह टीवी पर नही कहा- न कोई घुसा है, न कोई आया है। दरअसल, समस्या से लड़ने के पहले यह जरूरी है कि समस्या का होना, स्वीकार किया जाए। अगर करप्शन है, तो स्वीकार करें। बेरोजगारी है, तो स्वीकार करें, असफलता है, तो स्वीकार करें। ●● समस्या स्वीकारने के बाद पक्ष-विपक्ष मिलकर बैठे, विजन शेयर हो। जो बेहतर हो, वह किया जाए। आखिर इसीलिए तो जनता अपने प्रतिनिधि संसद में भेजती है। कुत्ता-बिल्ली मुहझौसी प्रतियोगिता के लिए नही। राहुल ने अपनी स्पीच में, अपनी भी सरकार की आलोचना कर, एक पहल की।। एक तरह से सहयोग का आमंत्रण दिया। जिसे ट्रेजरी बेंच में बैठे हल्के फुल्के ट्रोल्स ने बेवजह टोकाटाकी, और शोरगुल में गंवा दिया। ●● राहुल का पूरा भाषण, एक स्टेट्समैन का भाषण था। मौजूदा दौर में इन्वेस्टमेंट, रोजगार सृजन और आयात निर्यात संतुलन के लिए उसमे गहरे तत्व थे। प्रतिभा की कमी से जूझ रही मोदी सरकार को उनके भाषण का अध्ययन करके नीतियां बनानी चाहिए। देश अभी भी 4 साल उनके हाथ मे है। 11 साल झूठ की सियासत के बाद, अगर अब भी कोई कोर्स करेक्शन किया जा सकता है, तो उसका मार्ग राहुल की स्पीच में है। ●● आप भी यू ट्यूब पर उनकी स्पीच सुने, सोचें, और महसूस करें कि ऐसे लीडर को विपक्षी बेंच पर बिठाकर उ��का समय खराब करना, उसकी नही, हमारी बदकिस्मती है। इस स्पीच में साफगोई है, सत्य है, हालातों के प्रति ईमानदारी है। यह देखकर मुझे खुशी है, कि मेरा हीरो, छिछोरी बातें नही करता। मेरा नेता झूठ नहीं बोलता!! ❤️
0
0
0
इससे अच्छा बजट एनालिसिस नहीं हो सकता
इसमें कोई शक नही, कि मोदी सरकार ने देश का बजट महज 10 साल में तीन गुना कर दिया है। 2013-14 में भारत सरकार का बजट व्यय 16.58 लाख करोड़ का था। 2024-25 में पेश किए बजट में यह आकलन बढ़कर 50.65 लाख करोड़ का हो चुका है। यह जादू कैसे किया.. आओ इसका पता लगायें। ●● दरअसल पिछली सरकार तक केंद्र, केवल सेंट्रल टैक्स ही लेता था। राज्य अपना अपना टैक्स खुद वसूल करते, अपना बजट खुद बनाते, खुद खर्च करते। यह पैसा केंद्रीय बजट में न आता था, न जाता था। तो जुड़ता भी न था। किसी राज्य का अपना बजट एक लाख करोड़ होता, किसी का पचास हजार करोड़। और सभी 28 राज्यो का, टोटल बजट उस समय करीब 18 लाख करोड़ था। याने केंद्रीय बजट - 16.58 लाख करोड़ और राज्यो का अपना कुल बजट- 18 लाख करोड़ तो सारे देश का टोटल बजट हुआ कोई 34.58 लाख करोड़ - 2014 में ●● जब जीएसटी व्यवस्था लागू हुई, तो केंद्र CGST तो वसूलता ही है, वह SGST ( या चाहे तो केवल IGST) भी वसूलता है। जब वसूलता है, तो राज्य का हिस्सा उसे किस्तों में देता है। ( आपने खबरे पढ़ी होंगी, कि विपक्षी राज्यो को जीएसटी की क़िस्त के लिए कोर्ट तक जाना पड़ा)। अब यदि वसूली और दोनों केंद्र करेगा, तो वह आय, व्यय के रूप में सेंट्रल बजट में भी दिखेगा। वित्त मंत्री के भाषण में, उसी टोटल फिगर पर बात होगी। ●● तो केवल 2014 की विरासत को असल मे जोड़ेंगे, तो टोटल मर्ज्ड बजट मिला था- 34.58 लाख करोड़। लेकिन इसमें मर्जर तो रेल बजट का भी हुआ। 2016 में सुरेश प्रभु ने आखरी रेल बजट पेश किया था। ये कोई 1.32 लाख करोड़ का बजट था। अगले साल यह भी मुख्य बजट में मर्ज हो गया। याने अब कोई 35.90 लाख करोड़ तो विरासत में मिले बजट को जोड़ जाड़कर बैठे बिठाए हो गया। ●● यहां से आगे मामला आज के 50.65 लाख करोड़ तक आया है। लेकिन अब अगर आप 10 साल पहले की कीमतों और आज उस पर बढ़ी महंगाई को जोड़ लें। यदि तब 35 रु की चीज, आज 50 रु की हो गई है, तो देश का बजट भी 35 लाख करोड़ से 50 लाख करोड़ हो जाना, कोई बड़ी बात नही। ग्रोथ कहाँ है?? उपलब्धि क्या है?? ●● तुलना के लिए मनमोहन के 2004-2014 के बीच (केंद्र मात्र की) बजट वृद्धि को देखें, तो वह 4.57 से बढ़कर 16.58 लाख करोड़ पहुँचा था। याने लगभग 4 गुना वृद्धि। यदि उनके हिस्से से महंगाई वाले लाभ को हटा लें। और चार की जगह मात्र दोगुनी वृद्धि ही अनुमानित करें.. तो इन दस वर्षों में 35 लाख करोड़ (सेंटर+ स्टेट+ रेलवे) बजट बढ़कर 70 लाख करोड़ हो जाना चाहिए था। जो असल मे इस वर्ष केवल 50.65 लाख करोड़ पहुँच पाया है। ●● याने 20 लाख करोड़ का नुकसान है। लेकिन आंकड़ा तो यह भी सच्ची कहानी नही कहते। मनमोहन के समय राष्ट्रीय कर्ज कोई 54 लाख करोड़ था.. वह बढ़कर 2022 तक ही 250 लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका था। बाद में आंकड़े आने बन्द हो गए। आज वह कौन जाने 400 लाख करोड़ पार कर चुका हो। यह पैसा कहाँ गया? पूछने पर रामद्रोही, आतंकवादी, गद्दार कहलाये जाने का चांस है। ●● बहरहाल, बजट किसी समय एक अनुशासित दस्तावेज था। देश की नीतियों, प्राथमिकताओं और प्रशासन की दिशा का आईना था। अब महज, एक कागज का टुकड़ा है। क्योकि कोई भी टैक्स, कभी भी लगा दिया जायेगा। कभी भी किसी राज्य को 3-4 लाख करोड़ का पैकेज दे दिया जायेगा। 5-7 लाख करोड़ तो कुम्भ के आयोजन में खर्च हो रहे हैं। बस एक बयान, एक हेडलाइन, एक चुनावी मजबूरी और बजट की चिन्दी चिन्दी उड़ा दी जाती है। याने सरकार के कर्ता धर्ताओं क�� लिए निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में लिखे बोले आवंटनों का कोई महत्व नही। वे इस पद पर शो पीस हैं, और एक निरर्थक जिम्मेदारी निभा रही हैं। दरअसल, इस वर्ष उन्होंने जिस मधुबनी आर्ट की साड़ी पहनी, उसकी कीमत उनके बजट भाषण से ज्यादा थी। ●● तो इस बजट को लफ्फाजी का पुलिंदा ही समझिए। पर यह तो सच है कि जब आप आंकड़ो को देखते है, तो कोई शक नही, कि मोदी सरकार ने देश का बजट महज 10 साल में तीन गुना कर दिया है। याने 16 लाख करोड़ से पूरे 50.65 लाख करोड़... व्हाट ए जोक!! 🙏
0
1
0
@khan_40k @budhwardee @Kn78k @RuhulAman1 @MIS8132 @Meenu17806457 @kapil_parod @Hashmisrar @ShakilLari63454 @raj1001000 @AbdulHa25062777 बहुत अच्छा लिखा है
1
0
3
सेठ का चावल सेठ का आटा सेठ का घाटा देश का घाटा सेठ ही सेठ दिखेगा उसको नमक सेठ का जिसने चाटा देश, धर्म, मां, बापू, जनता सेठ की खातिर सबका काटा उसी नाम से बाँट दिया है जिससे कभी समुंदर पाटा जब भी बात काम की पूछी बोले—चलें, वडक्कम, टाटा
सेठ का चावल सेठ का आटा सेठ का घाटा देश का घाटा सेठ ही सेठ दिखेगा उसको नमक सेठ का जिसने चाटा देश, धर्म, मां, बापू, जनता सेठ की खातिर सबका काटा उसी नाम से बाँट दिया है जिससे कभी समुंदर पाटा जब भी बात काम की पूछी बोले—चलें, वडक्कम, टाटा श्रेष्ठी कृपा पंगु गिरि लंघे कर दे शक्ति हिमालय नाटा (शक्ति प्रकाश)
0
0
2
मंदिर से विरोध किसे था ?
मंदिर से विरोध किसे था ?? श्रीराम का भव्य मंदिर बने, इससे विरोध और आपत्त�� किसने दर्ज कराई ?? स्मृति खंगालिये, सोचिये। आपकी बीस, पच्चीस, पचास साल या अस्सी साल की उम्र में एक व्यक्ति का नाम याद कीजिये, जिसने एतराज किया हो। किसी मुसलमान, किसी अन्य मतावलंबी, किसी राजनैतिक दल, किसी धार्मिक, सांस्कृतिक संगठन या किसी व्यक्ति का उल्लेख करें, जिसे आपत्ति रही है। एक भी नहीं मिलेगा। सत्य यह है कि श्रीराम का भव्य मंदिर हर भारतीय देखना चाहता है। ●● अस्सी के दशक की भारत सरकार ने ताले खोले, शिलान्यास करवाया, यह इतिहास है। नब्बे के दशक में मन्दिर बनाने को 64 एकड़ भूमि अधिग्रहण की गयी, यह भी इतिहास है। विश्व हिंदू परिषद और भाजपा के नेताओं को भी राष्ट्र के साथ शामिल होकर, मिल-जुल कर रामलला का मंदिर बनाने का प्रस्ताव भी दिया गया था, यह भी इतिहास है। ●● मगर सवाल राम का नहीं था। अयोध्या का नहीं था। रामलला के दरबार का भी नहीं था। सवाल तो राम के नाम से दिल्ली के दरबार तक पहुंचने का था। मसला गर्म कैसे होता, गर्म खून की होली कैसे होती ? नया नारा आया - "मन्दिर वहीं बनायेंगे" "वहीं" --- और "वहीं" के नाम पर एक युद्ध शुरू किया गया। जो "वहीं" के ख़िलाफ़ थे, वो राम के ख़िलाफ़ न थे। इस खून-खराबे के ख़िलाफ़ थे। वे अपने रामलला के वस्त्रों पर खून के धब्बों के ख़िलाफ़ थे। वे भारत माता के बच्चों की लाशें गिरने के ख़िलाफ़ थे। वे रसखान, शेख़ फरीद और अब्दुल हमीद की संतानों के साथ प्रेम और सहानुभूति के बर्ताव के साथ थे। ●● अपना नैरेटिव सुधारिये। "मन्दिर नहीं बनायेंगे" यह कभी किसी ने नहीं कहा। असहमति "मन्दिर वहीं बनायेंगे" पर थी, और रहेगी। ★★★ तो मन्दिर "वहीं" बना रहा है। युद्ध जीत लिया गया है। प्रभु की श्रद्धा नही, ये इंसानों का बनाया विजय स्तम्भ है। यहां पर्यटन के लिए आइये। विजय स्तम्भ पर किसी की सत्ता के लिए मार डाले गए, लाखों मासूमों के नाम खुदे हैं। आप इन्हें पढ़ते हुए आगे बढ़ेंगे। फिजां में जलती लाशों की बू होगी, पैरों में ताजी खुदी कब्रों की मिट्टी होगी। स्वागत द्वार से गर्भगृह तक अयोध्या, मुम्बई, गोधरा और अहमदाबाद की लाशें गिनते गिनते आपकी आत्मा बोझिल होगी। तो आप तेजी से चलेंगे, भागकर गर्भगृह तक जायेंगे। आंखें मूंद लेंगे। ●● श्रीराम की मूरत के सामने चित्त शांत हो जायेगा। वह श्रीराम का प्रताप है। पर जब आंखें खोलकर प्रभु से नजरें मिलायेंगे, उनकी आंखें सवाल पूछेंगी। क्या आप उन्हें उत्तर दे पायेंगे ? बता पायेंगे कि शरणागत् वत्सल, परम् कृपालु, प्रेमिल भगवान् राम को कब्रों के इस टीले पर जबरन क्यों बिठा दिया गया ?? ●● आप टाल जायेंगे। प्रभु का सवाल टाल जायेंगे। लेकिन बाहर निकलते, बगीचे में घूमते, मंदिर की भव्यता का अवलोकन करते, हर क्षण आपको याद फिर वही आयेगा। मौत, चीख, खून और लाशें। मन्दिर परिसर से निकला श्रद्धालु जब पलट कर अपने पदचिन्ह देखेगा, उसे अपने पांवों की छाप बेगुनाहों के खून से रंगी दिखाई देंगी। श्रद्धा का भाव, गिल्ट के साथ घुल-मिल जायेगा। आप इस गिल्ट का गला घोंटने के लिए जोर से चीखेंगे। जयकारा लगायेंगे, ठीक उसी तरह, जैसा युध्द के मैदान में होता है। ●● जैसा कत्लोगारत के लिए चुनी गई जमीं पर होता है। "वहीं" होता है . . . ऐसा.. मन्दिर में "नहीं" होता है
0
0
0
@KraantiKumar वैसे sex करना कोई पाप नहीं है अगर दोनों की मर्जी है तो और कुछ भी हो कभी भी किसी को भी sex करते n तो देखना चाहिए और न ही कभी खलल डालना चाहिए ये सबसे बड़ा पाप होता है
0
0
0
@RebornManish @pramodsingh_07 इन लोगों की शुरुआत यही से होती है और यही तक सीमित भी रहती है और यही खत्म हो जाती है,आपने जो बवासीर का इलाज इनको दिया था वो इसने पढ़ा नहीं है शायद, नेहरू नाम की गांठे इनके अटकी ही रहेंगी
0
1
0
आंत में फंसा नेहरू, आपके दिमाग मे कुछ गांठें पैदा कर सकता है। ऐसी कुछ गांठे इस प्रकार हो सकती हैं।
क्रोनिक कब्ज से होने वाले बवासीर के लक्षण क्या हैं? आंत के अंतिम छोर पर गांठ, खुजली, मल में ताजा खून का मिला होना, गुदा या प्रभावित क्षेत्र के आसपास दर्द या बेचैनी, साथ ही खून की कमी के कारण बेहोशी या चक्कर आना शामिल हैं। अंदरूनी बवासीर का गुदा से बाहर की तरफ आना प्रोलेप्स बवासीर कहलाता है। जिससे आपको मल त्यागने के दौरान अधिक दर्द हो सकता है।इसके कारण दैनिक जीवन मे निम्न समस्याएं हो सकती हैं। -मल त्यागने के दौरान रक्त हानि। - मल त्यागने के दौरान दर्द होना। - कब्ज होना या उसकी भावना होना इसके सामान्य लक्षण हैं। यह आम क्लिनिकल बवासीर है। जिसका कारण अनियमित जीवन शैली औऱ गरिष्ठ खान पान होता है। ●● परन्तु राजनीतिक बवासीर का आम कारण आंतो में नेहरू का फंसा होता है। आंत में फंसा नेहरू, आपके दिमाग मे कुछ गांठें पैदा कर सकता है। ऐसी कुछ गांठे इस प्रकार हो सकती हैं। 1- नेहरू ��ुसलमान थे 2- नेहरू ने नाभा में माफी मांगी थी। 3 - नेहरू कमला की मौत के समय किसी अन्य औरत से इश्क फरमा रहे थे। 4- नेहरू सरदार पटेल से प्रधानमंत्री का चुनाव हार गए थे�� गांधी ने जबरन पीएम बनवाया था। 5- नेहरू और सरदार राजनीतिक विरोधी, और प्रतिस्पर्धी थे। 6- नेहरू सुभाष प्रतिस्पर्धी थे। और सुभाष को अध्यक्ष से हटवाने का एक षड्यंत्र हुआ, जिसमे नेहरू गांधी गैंग में शामिल थे। 7- नेहरू की सिगरेट प्लेन से आती थी। 8 - नेहरू के कपड़े धुलने पेरिस जाते थे। 9- नेहरू ने फुटबॉल टीम को जूते खरीदकर नही दिए। 10- नेहरू ने चर्चिल को पत्र में सुभाष को वॉर क्रिमिनल लिखा था। 11- नेहरू ने कोको आइलैंड म्यांमार को दे दिया था। 12- नेहरू ने POK कश्मीर को दे दिया था। 13-जब सेना धड़ाधड़ कश्मीर जीत रही थी, नेहरू UN चले गए। 14- नेहरू ने अक्साई चिन चीन को दे दिया था 15- नेहरू ने चीन को UN में भारत को मिल रही स्थायी सदस्यता ठुकरा कर चीन को दिलवा दिया था। 16- नेहरू ने थिमैया का अपमान किया था। 17- नेहरू ने चीन युद्ध मे एयरफोर्स यूज नही की। 18- नेहरू ने कहा था - मैं विचार से क्रिश्चियन, स संस्कार से मुसलमान, दुर्भाग्य से हिन्दू हूँ। 19- नेहरू ने खुद को भारत रत्न दिया था। 20- नेहरू ने इंदिरा को अपना उत्तराधिकारी बनाया था 21- नेहरू ने अम्बेडकर को हरवाया, या अपमानित किया था। 22- नेहरू का इकॉनमिक मॉडल अनसक्सेसफुल था। 23- नेहरू एड्स से मरे थे। 24- नेहरू संघ की शाखा में गये, उसके प्रशंसक थे। 25- नेहरू बंटवारे के जिम्मेदार थे। ●● राजनीतिक बवासीर से ग्रस्त मरीज सदन में, रैली, पार्टी मीटिंग, प्रेस, इंटरव्यू या जहाँ जहां मुंह खोलने का मौका मिले, वहां जोर लगाकर, आंतो को जकड़े हुए नेहरू को बाहर निकालने की कोशिश करते हैं। परन्तु नेहरू एक लाइलाज मर्ज है। आप चाहे जितना जोर लगा लें, नहीं निकलता। दरअसल एक बार जब ये रोग हो जाता है, तो वह मरीज के साथ ही जाता है। ●● क्रोनिक क्लिनिकल बवासीर की समस्या, महिलाओं को गर्भकाल में होती है।जब बढ़ते हुए भ्रूण के आकार को स्थान देने के लिए पाचन तंत्र पर दबाव पड़ता है। इसके कारण आहार नाल से भोजन के संचरण में बाधा आ जाती है। खास तौर पर आठवें नौवे माह जिसमे भ्रूण का आकार बहुत बढ़ जाता है, इसके लक्षण दिखते हैं। ऐसे में लगातार 11 साल तक गर्भ में रखे विकास को लेकर घूमने और समय पर डेलिवरी न देने से आपदा गम्भीर हो जाती है। ●● ताजे और शुद्ध फल का सेवन करना क्लिनिकल बवासीर में लाभदायक हो सकता है। फलों को छिलके के साथ खाएं, क्योंकि छिलके में सबसे अधिक फाइबर मौजूद होता है। फलों में कई तरह के विटामिन और मिनरल्स पाए जाते हैं जो पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं।सेब, केला, संतरा, अंगूर आदि फलों का सेवन करने से आम बवासीर में लाभ मिलता है। परन्तु नेहरू जनित राजनीतिक बवासीर का कोई इलाज नही है। हल्के इलाज के लिए, ऊपर दिए लक्षण के आधार पर, अपनी गांठ के अनुसार, डॉक्टर रिबोर्न मनीष की पोस्ट पढ़ सकते है। उसके एक एक तथ्य को हर तरह से सर्च कर, प्रोफेसरों और वरिष्ठ जानकारों से पूछकर जब आप सन्तुष्ट होते है, तो दिमाग की गांठे लुप���त हो जाती हैं। आंतो में फंसा नेहरू निकल जाता है, काफी राहत मिलती है। ●● लेकिन यदि मरीज बोयलॉजिकल न हो, लॉजिकल भी न हो, अशिक्षित और व्हाट्सप का स्टूडेंट या प्रोफेसर हो, तो उसे ठीक होने की आशा छोड़ देनी चाहिए। फिर तो उसे दवा नही, दुआओं की जरूरत है। ❤️
0
0
0