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Anil Sharda
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Journalist || Ex @jist_news || Bylines @gaonconnection, @newsclickin, || Insta @theanilsharda || Email: [email protected]
New Delhi, India
Joined April 2020
इंडिया गॉट लेटेंट: मंच से मर्यादा के मसान तक तो भइया, नए भारत के नए नायक तैयार हो रहे हैं। कंटेंट क्रिएटरों की नई पीढ़ी गढ़ रही है एक ऐसा समाज, जहां शब्दों की शुद्धता को गटर में फेंककर व्यूज़ के गणित में डुबकी लगाई जा रही है। ये मंच है *"इंडिया गॉट लेटेंट"*, जहां न तो इंडिया है, न कोई टैलेंट—बस देर रात जागे लोगों की तालियों पर ��ाचते अपशब्दों का अखाड़ा। ताज़ा उदाहरण देखिए—समय रैना का शो। नाम कॉमेडी शो, पर असल में बदजुबानी का महासभा। हाल ही में पहुंचे रणवीर अल्लाहाबादिया, जिन्हें लोग बिजनेस और मोटिवेशन की दुनिया का युवा चेहरा मानते थे। लेकिन भइया, यहां आते ही उन्होंने 'संस्कारों' की टोपी उतार फेंकी और ऐसी भाषा का प्रदर्शन किया कि गली के लौंडे भी शर्मा जाएं। और मज़े की बात देखिए—किसी को आपत्ति नहीं! सेंसरशिप? वो तो केवल फिल्मों और न्यूज़ रूम के लिए आरक्षित है। जब बात 'इंटरनेट एंटरटेनमेंट' की आती है, तो सब माफ! सवाल यह है कि यह सब हो क्यों रहा है? क्योंकि इस देश में अब सफलता का नया मंत्र है गाली दो, ट्रेंड बनो, पैसे कमाओ! संवाद मर चुका है, बहस का स्तर नाली में जा गिरा है, और व्यूज़ की होड़ में शालीनता की शवयात्रा निकाली जा रही है। नया कंटेंट क्रिएटर बनने के लिए जरूरी है कि आप गालियों की ऐसी मालाएं पिरोएं कि लोगों को लगे—"वाह! कितना रॉ और अनफिल्टर्ड इंसान है!" पर सवाल यह भी है कि इस देश में इन बेतुके शो का कोई लगाम कसने वाला है? कोई पूछेगा कि हमारे युवाओं के सामने आखिर परोसा क्या जा रहा है? किसी सेलेब्रिटी का 'दूसरे के बाप' पर टिप्पणी करना क्या अब नॉर्मल है? क्या समाज इसी दिशा में बढ़ना चाहता है? लेकिन नहीं! कोई कुछ नहीं बोलेगा। क्योंकि जब किसी को TRP की ठर्रा बोतल मिल रही हो, तो कौन नैतिकता का फटा हुआ कंबल ओढ़ेगा? सब गूंगे-बहरे बने रहेंगे। ये शो बंद होना चाहिए? आयोजकों पर केस होना चाहिए? बिल्कुल होना चाहिए। लेकिन जब तक दर्शकों को ही फर्क नहीं पड़ता, तब तक ये *गटर कंटेंट* फूलता-फलता रहेगा। समय है कि हम तय करें, क्या हम वाकई हंसी के नाम पर इस भाषाई गटर को स्वीकार करने वाले समाज बनना चाहते हैं? अगर नहीं, तो बोलना शुरू कीजिए। वरना कल आपके बच्चे भी यही भाषा सीखेंगे, और आपको बुरा लगने का हक भी नहीं रहेगा!
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जनता ने AAP को 10 साल का मौका दिया, बदलाव भी दिखा, पर उम्मीदें उससे कहीं ज्यादा थीं। ओवरकॉन्फिडेंस हर पार्टी के लिए घातक होता है। वर्तमान स्थिति ऐसी हो गई है कि आलोचना सुनना तक मंजूर नहीं। ईमानदार राजनीति की असली परीक्षा आलोचना सुनने में है, न कि उसे रोकने में। आत्ममंथन करेंगे, तो समझ आएगा। #DelhiPolitics #AAP
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