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The Jharkhand Voice
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जोहार। एक आवाज़ जो जरूरी है। झारखंडी हूँ। छात्र हूँ। आपको झारखंड की सारी अपडेट यहाँ मिलेंगे। कोई पार्टी पुर्टी का नही समझें।
Jharkhand
Joined August 2024
छात्रों का दर्द😔
प्रिय नीतीश कुमार। @NitishKumar दिल्ली के इस मुंह छिपाने लायक कमरे से ये पत्र लिख रहा हूं, पत्र लिखते हुए सोचा कि तुम्हें शुभकामनाएं दूं कि तुम दुनिया के सबसे बेहतरीन मुख्यमंत्री हो। ऐसा बेहतरीन मुख्यमंत्री जिनके कुर्सी का बोझ हम जैसे छात्रों को उठाना पड़ रहा है, ये बोझ कितना भारी है ये सिर्फ हम जैसे छात्र जानते है जिनके आंखों में एक सपना है। वो सपना जो हमारे खेतों से शुरू हुई थी, जहां मेरे पिताजी मिट्टियों से होली खेलते है। लेकिन जब उन मिट्टियों में उपजने वाले पौधों से घर कच्चा रह गया तो पिताजी और मेरे मन में सपनों का एक बड़ा सा ईमारत दिखाई दिया, वो इमारत था सरकारी नौकरी। उसी नौकरी को पाने के लिए जब किताबों से संघर्ष करने की बारी आई तो , मन में एक अफ़सर की छवि तैरने लगी, इसी तैरती छवि के नीचे देश का वो हाल था जो अफसरों ने ही बनाया था, लेकिन मेरे मन में जो छवि तैरने लगी थी वो साफ़ सुथरे अफसर की छवि थी। उसी छवि को हकीकत का रूप देने के लिए, मैं दिल्ली भागा। इस भागते हुए दिल्ली के किसी महंगे कमरे में, मैं रुक गया। साल भर तैयारी की, नहीं हुआ सलेक्शन। साल भर की तैयारी में आखिर किसका सलेक्शन होता है, वो भी यूपीएससी और pcs जैसे परीक्षाओं की। पिताजी को मुझमें कमी नजर आई, उन्होंने खेत बेच के मेरे कोचिंग की 2.50 लाख फीस भर दिया, वो कोचिंग जहां भूखे पेट दौड़ना पड़ता था वो भी दिन में दो से तीन बार। इसी 2 से 3 बार दौड़ने के बीच, छूट जाती थी वो चीजें जो घर में भर पेट खाता था। मां वीडियो कॉल में मेरे आंखों के नीचे पड़े काले गड्ढों को देख कर रोने लगती थी, और फिर खुद आंसू पोछे कहती थी कि ये गड्ढे, वर्दी और अफ़सर का टैग पहन कर ही भरना। इस दौड़ते हुए दिल्ली के बीच वो कमरा जहां एक इंसान या तो सो सकता था या फिर किताबें भर सकता था, लेकिन मैंने ऐसा जुगाड़ किया हुआ है कि किताबों पर ही सोना, जागना हुआ। इसी जागती हुई रातों के बीच प्रीलिम्स का डेट घोषित हुआ, मन में डर और इस भर झंडा गाड़ने की ललक एक साथ पैदा हुई। इसी डर ने रातों को दिन और दिन को रात बनाया, कभी कोचिंग दौड़ता टेस्ट सीरीज देने तो कभी कमरे पर भागता रिवीजन करने। इसी भागने के बीच में ��ाना और सोना जैसे मुझे बेचैनी से देख रही थी। और ये बेचैनी अधिक तब हुई जब ट्रेन में बाथरूम के बदबू से गुजर कर पटना स्टेशन की ओर भागा, मेरा परीक्षा केंद्र "बापू भवन" था। सही समय पर जब मैं परीक्षा भवन पहुंचा तो देखा कि गेट के उस पर छात्रों को 5 मिनट लेट होने ��र एंट्री नहीं मिल रही, और जब अंदर आया तो पता चला कि तय समय के 15 मिनट बाद भी पेपर नहीं मिली है। इस 15 मिनट में ऐसा लगा जैसे जिंदगी का सबसे बड़ा समय काट रहा हूं, लेकिन जब पेपर मिली और पेपर लीक होने की ख़बर फैली तो पता चला कि समय काट नहीं, बल्कि ढो रहा हूं। फिर अचानक याद आया, मेरे द्वारा काटे गए वर्षों से वो रात, जिसमें गर्मी की फुव्वारे और ठंड से कांपती मेरी उंगलियां थी, और अपने आंखों के वो गड्डे जिसे देख मां रोटी थी। मां का चेहरा याद आते ही, आत्मा में भगत सिंह ने प्रवेश कर लिया। हर किसी के जीवन में एक ना एक दिन भगत सिंह का प्रवेश होना तय होता है, और वो एक दिन उस दिन था। छात्रों के साथ जब बाहर निकला, विरोध किया तो dm साहब के थप्पड़ पड़े। कई जानकारियां देने के बाद भी आयोग ने, ये नहीं माना कि पेपर लीक हुई थी। फिर हमने आंदोलन किया, वो आंदोलन जिसमें हमारे शरीर में जैसे बर्फ जम गया हो, इतनी ठंड में आंदोलन, और उस आंदोलन में पानी की बौछार, और लाठियों की बारिश। वो लाठियां जब मेरे पीठ में पड़ी तो गुस्सा आया उन कोचिंग वालों पर जिसने लाठियां सहने की तैयारी नहीं कराई थी, मैं भागते जा रहा था और पुलिस डंडे से हमारे पीछे, मै कभी दुकान तरफ भागता तो कभी सड़क पर , ये सोच कर कि कोई दुकान वाला तो होगा जो हमें इन लाठियों से बचा सके। फिर माहौल शांत हुआ। पटना की भीड़ भरी सड़कों पर मैं लाठियों का बोझ लिए अकेले टहल रहा था। इस टहलते हुए शरीर के अंदर एक आत्मा थी जो अभी भी इस देश के सिस्टम पर भरोसा कर रही थी, एक शर्मनाक चेहरा था मेरा जो पिताजी के संघर्षों को उसी खेत के मिट्टी में मिला दिया था जहां वो मिट्टी का होली खेलते थे। एक पुलिस वाला था जो हमें देख मुस्कुरा रहा था, उसकी मुस्कान देख कर चंद पैसों के लिए अंग्रेजों के सेना में कुछ भारतीय दिखाई दिए जो अपने ही देश के लोगों पर गोलियां चलाते थे। फिर आखिर में फ़ोन बजा, स्क्रीन पर पिताजी का नंबर था। पिताजी कह रहे थे " सुने पटना में लाठीचार्ज हुआ है, तुम सही तो हो ना!" मैंने पिताजी को कहा" आप उनसे जवाब मांगिए जिसे आपने वोट दिया था।" पूछिए उनसे कि मेरे हक़ मांगते बेटों पर लाठियां क्यों चलाई गई, पूछिए नीतीश कुमार से। तुम्हारे राज्य का एक युवा
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RT @chayisquerajnit: प्रिय नीतीश कुमार। @NitishKumar दिल्ली के इस मुंह छिपाने लायक कमरे से ये पत्र लिख रहा हूं, पत्र लिखते हुए सोचा कि तु…
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@chayisquerajnit @Pawankhera @Jairam_Ramesh @SupriyaShrinate अहा! कितना प्यारा लिखा। इंदिरा एक शेरनी❤️🙏
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@chayisquerajnit @Jaspritbumrah93 @IrfanPathan @vikrantgupta73 @cricketaakash Boom boom ❤️ क्या खूब लिखा❤️
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प्रिय BPSC, इन सर्द रातों में पटना के किसी सड़कों पर टहल रहा हूं, कमीजें भीगी हुई है, बालों से पानी की बूंदे इस सड़क पर पसीने से ज्यादा कीमती बन कर गिर रही है। शरीर ठिठुर सा गया है, इतनी भयंकर सर्दी में जब पुलिस वालों ने पानी की फुहार मारी तो, ऐसा लगा कि कोई अंग्रेज, शरीर पर किसी जुर्म के लिए कोड़े मार रही है, और वो जुर्म ऐसा हो कि हमने भारत की भूमि में बसे उनके इलाकों पर लात रख दी हो, जिस इलाके के बाहर बैनर था " Dogs and Indians are not allowed." इंडियंस! BPSC अब देखो, इस धरती पर ना कोई अंग्रेज है और ना अंग्रेजों का राज लेकिन फिर भी इस धरती पर आज भी हम भारतीयों को विरोध करने पर पानी की बारिशों के रूप में कोड़े बरसाए जा रहे है। इस कोड़े की तपती रस से अब हम जैसे हजारों छात्रों का शरीर गलने लगा है। गलने की प्रथा आज से शुरू नहीं हुआ है, गलने की प्रथा तब से है जब बाबू जी ने ईंटों के भट्टो पे मजदूरी कर अपने छिले हुए हाथों से मुझे सपनों का एक शहर दिखाया था, आत्मनसम्मान का शहर! SDM का शहर। इस सरकारी नौकरी नामक शहर का किरायेदार बनने के लिए मेरे बाबू जी ने कंधे पर 50 ईंटे ज्यादा रख ली थी , ताकि मुझे पटना के किसी शहर का किरायेदार बना सके, वो पटना जिसके माहौल में sdm का एक शहर बसता है। उसी बसते हुए शहर में, मैंने कई रातें भूख से गुजारी, लाइब्रेरी मेरा दूसरा घर और किताबें मेरी अर्धांगिनी बन गई। इस अर्धांगिनी के संविधान के अनुच्छेदों को समझते - समझते, मैं रातों को मैपों की दुनिया में भूगोल को सिंदूरदान करता था। इस सिंदूरदान की कथा जब मेरे मन में चलती तो याद आता कि घर में एक छोटी कुंवारी बहन है, जो इस आश में है कि भैया sdm बनकर लौटेंगे और मैं किसी राजा की रानी बन सिंदूरदान की कथा लिखूंगी। कथा, परिश्रम और तप से लिखी जाती है। वो तप जो मैंने सालों से की थी, रात भर जग कर, मुसीबतों से लड़कर। जब इसी मुसीबतों को लड़ - लड़ तपस्वी हुआ तो तुम्हारे आयोग का फॉर्म भर दिया मैंने। इस फॉर्म की भी कहानी बहुत दर्द भरी है, मुझे याद है कि मेरी मां ने मुझे इस फॉर्म को भरवाने के लिए घर में रखे गेहूं के बोरियों का तिरस्कार किया था, ये कह कर कि " साल भर रोटी की जगह चावल खा लेंगे तो मर थोड़ी जाएंगे।" उसी फॉर्म पे मेरी मां की चूड़ियों की झंकार थी जो रोटियां बेलते वक्त उसके हाथों से आती थी। इन हाथों के खेल से ही ये इतिहास खड़ा हुआ है। इसी इतिहास के सहारे जब एक्जाम देने के लिए मैं भरे हुए रेलवे के डिब्बों में लटका तो आवाज आई " बस लास्ट बार, फिर sdm बन रिजर्वेशन करा के सफर करेंगे।" आखिर ऐसी रेलवे से तो देश के बापू महात्मा गांधी भी सफर किया करता थे, और आज उनको याद करना इसलिए भी तो ज्यादा जरूरी हो गया था कि मेरा सेंटर " बापू परीक्षा भवन" जो पड़ा था। इसी परीक्षा भवन से मेरे घर की रोशनियां गुलज़ार होने वाली थी। लेकिन जब समय होने के 15 मिनट बाद भी परीक्षा हॉल में पेपर नहीं बांटी गई तो, ऐसा लगा कि कोई अमीर जादे मुझे पीछे से धक्का दे रहा। फिर पेपर का खुला होना और हम जैसे गरीब बच्चों के हाथ में फिर से एक साल और तप करने का सर्टिफिकेट पकड़ाए जाने का आभाष हुआ तो, ये बापू परीक्षा भवन, महात्मा गांधी बन विरोध मचा गया। इसी मचाते विरोध ने देश के नौकर कहे जाने वाले एक ias ने हम में से एक बच्चे पर थप्पड़ का प्रहार किया, वो प्रहार इतना गहरा था कि हमारे मन में बैठ गया कि, क्या हम यहीं अधिकारी बनना चाहते है।? इसी विरोध में जब पेपर लीक की चर्चाएं उड़ी तो आजाद भारत के गुलाम तुम जैसे ��योग ने सिर्फ बापू परीक्षा भवन की परीक्षाएं रद्द कर फिर से कराने का फैसला किया। राज्य के कई जिलों में सैकड़ों विद्यार्थियों द्वारा, पेपर लीक की बात की गई, सबूत भेंट की गई लेकिन तुम नहीं माने। तुम्हारे इसी ना मानने की ढीठ ने हम छात्रों को यहां आने को मजबूर किया क्योंकि हमारी बहनें अब और सिंदूरदान के लिए वक्त नहीं बचा सकती, हमारी माएं अब और एक साल का गेहूं और कानों की बालियां नहीं बेच सकती, हमारे बाबू जी ईट के भट्टो पर 50 ईंटे ज्यादा अब नहीं उठा सकते। इसलिए इस एक साल की दूरी को खत्म करने के लिए, हम तुमसे गुहार लगाने को यहां इकठ्ठा हुए थे। इस गुलाम शासन ने हमपर लाठियां बरसाई, आज इस सर्द में पानी की बौछार की गई। इसी बौछार के एक - एक कतरे की कसम, हमें अधिकारी बनने की बहुत जरूरत है ताकि कोई अधिकारी , आंदोलन कर रहे बच्चों पर थप्पड़ ना बरसाए। तुम्हारा अभ्यर्थी। चाय इश्क राजनीति।
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