कामकाजी महिलाएं🫅
चूल्हा -चौका, फाइल, बच्चे,
दिन भर उलझी रहती हैं।
वो घर में और दफ्तर में,
अब आधी आधी रहती हैं।
मिल कर बैठें, सुख-दुख बांटें
इतना हमको वक्त कहां...
दिन उगने से रात गए तक,
आपाधापी रहती है।
फिर भी है मुस्कान ओढ़नी...
जो इन सब को छुपाए रहती है....