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harishankar parsai
@harish_parsai
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I only criticize the government irrespective of Political parties.
Joined November 2019
@kamleshksingh @ashishapathak ताऊ वो शो कई लोगों की उपस्थिति में ही होता है बंद कमरे में नहीं होता है वहां पब्लिक आती है तो उसने जो बोला वो पब्लिक में ही बोला
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भाई Freedom of speech ek अधिकार है, बेहूदा बकवास का लाइसेंस नहीं. Dark jokes aur vulgurity tab tak acceptable hai jab tak wo context aur creativity ke saath ho, warna bas attention ke liye cringe content banane ka koi matlab nahi. aur har bakwas ‘freedom of speech’ nahi hoti!"
Freedom of speech cannot be restricted as long as it does not promote violence or hatred. I’m not fan of anybody, but Full support to @RehSamay and His freedom of Expression and Comedy.
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समय से अपनी दोस्ती को मजबूत करने के लिए उसका अंग विशेष चाटते हुए श्याम मीरा सिंह @ShyamMeeraSingh
Freedom of speech cannot be restricted as long as it does not promote violence or hatred. I’m not fan of anybody, but Full support to @RehSamay and His freedom of Expression and Comedy.
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@biharimulla वो तो शुक्र मनाओ कि इसमें कोई मोहम्मद आफताब शामिल नहीं था वरना अब तक देश में भूचाल आ गया होता
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काफी गलत विचार हैं आपके @ShyamMeeraSingh
रणवीर अलाहबादिया और समय रैना विषय पर ————— लिखने और कहने की स्वतंत्रताऐं सदियों लड़ने के बाद मुश्किलों से आम लोगों तक पहुँची हैं। इसलिए तमाम नुक़सानों को उठाने के बावजूद भी मैं बोलने की स्वतंत्रता पर पाबंदी के पक्ष में नहीं हूँ। क्योंकि उतने जोखिम किसी फूहड़ता पर पाबंदी ना लगाने में नहीं हैं, उससे कई कई गुना ज़्यादा जोखिम किसी भी तरह की पाबंदी लगाने में हैं। फ्रीडम ऑफ़ स्पीच पर नैतिकता के नाम पर लगाई पाबंदियाँ शुरुआत में तर्कसंगत हो सकती हैं, लाभकारी भी, लेकिन समयांतर में ये क्रमिक पाबंदियाँ, नियंत्रण बनती हैं, और अंत में ग़ुलामी। जो पाबन्दियाँ- फूहड़ता के नाम पर, नैतिकता के नाम पर या संस्कृति की दुआई के नाम पर लगाई जाती हैं, वे एक दिन मनुष्य के ख़ुद के गले तक पहुँच जाती हैं। इसलिए मैं किसी भी स्त्री की अंगप्रदर्शन करने वाली रील्स पर पाबंदी लगाने का समर्थन नहीं करता। मैं उस स्त्री से सहमत नहीं होऊँगा, मगर यह मेरी स्वतंत्रता है कि मैं सहमत होऊँ या नहीं, मैं सहमत नहीं हूँ इसलिए उस स्त्री पर प्रतिबंध लगा दिया जाए, इसे मैं उचित नहीं मानता। यही मेरा मत सरकार विरोधी और दरबारी पत्रकार दोनों के लिए है। अगर कोई व्यक्ति सरकार प्रेम में जिव्या ही घिस दे रहा है तब भी मैं उसके लिखे या कहे पर पाबंदी के पक्ष में नहीं होऊँगा। मैं उस पत्रकार से असहमत होऊँगा। मगर बोलने दूँगा। कोई कला कितनी भी सुंदर हो, और कितनी भी निकृष्ट, तब भी कला के “होने” का अधिकार दोनों का समान होगा। फ्रीडम ऑफ़ स्पीच- नैतिकता, संस्कृति, सभ्यता और गुणवत्ता के अनुपात की वस्तु नहीं है। कोई कला कितनी भी गुणवान हो और कितनी भी स्तरहीन, उन दोनों कलाओं को जीने का हक़ दोनों का समान होगा। अर्जित सिंह का भी खेसारी लाल का भी। ऐश्वर्या राय का भी पूनम पांडेय का भी। सिनेमा का भी रील्स का भी। एक जंगल में कोयल भी हक़ है और एक कोवे को भी, और उस चिड़िया को भी जिसे गीत नहीं आते। @ReheSamay हों या @BeerBicepsGuy ।, मैं उनसे भले ही सहमत ना होऊँ, मगर आए दिन किसी कॉमेडियन की एक लाइन निकालकर जो सोशल मीडिया ट्रोलिंग की जाती है, या किसी लड़की की वीडियो निकालकर उसे संस्कृति का ज्ञान दिया जाता है। मैं उसके समर्थन में कभी नहीं हूँ। इसी देश में इस समाज को बचाने के लिए उससे भी अधिक गंभीर संकट हैं, जिन्हें सही कर हम और अच्छे नागरिक हो सकते हैं। इसलिए अगर हम इतने ही अच्छे हैं तो मोरल पोलिसिंग छोड़कर जो बचे हुए अच्छे काम हैं वे कर लें। इतने भर से भी दुनिया सुंदर हो सकती है, संस्कृति बच सकती है। लेकिन वो करोगे नहीं। सिर्फ़ संस्कृति और नैतिकता की दुआई देकर देश बचाओगे। ऐसा कोई काम दो समाजों, देशों, वर्गों के बीच वैमनस्यता फैलाता हो, या हिंसा फैलाता हो। उस स्थिति में उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है। अन्यथा नहीं।
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