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Tribhuvan_Official
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A journalist here to unravel the craft of political language—engineered to cloak lies in truth, dignify violence, and lend weight to empty air.
Jaipur
Joined November 2024
This earth is not the possession of a few individuals or any one nation; it is the shared home of all humanity. Every person holds the inherent and fundamental right to journey across its lands, dwell where their heart finds peace, and wander freely beneath its boundless sky. @realDonaldTrump @elonmusk
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आज बहुत सर्द सुबह जयपुर में था और अब अचानक अपने आपको बहुत गुनगुने समय में मैंने अपने आपको जोधपुर में पाया! इस शहर का हुस्न इक दिलरुबा हुकूमत है और इसका इश्क़ इक क़ुदरती अफ़साना! #Jodhpur #जोधपुर
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राजस्थान की राजनीति और राजेश पायलट (२.) आज अगर सचिन पायलट जैसा नेता राजस्थान में है तो उस शाम की वजह से है, जब राजेश पायलट को भरतपुर चुनाव लड़ने के लिए भेजा गया। राजेश पायलट और उनकी पत्नी रमा के लिए भरतपुर एक नया इलाक़ा था और इसका नाम भी ठीक से उन्होंने नहीं सुना था। राजनीति का सूर्य अब अब नया रथ लेकर तैयार था और एक नए चेहरे को ला रहा था। अपने युवा काल में संसद में गरजने और अपने तर्कों से सरदार पटेल जैसे नेता को भारतीय संविधान सभा में पराभूत करने वाले राजबहादुर के साथ भी यही समस्या हुई कि वे राजनीति से समय पर संन्यास नहीं ले पाए और काँग्रेस हाईकमान के लिए बड़ी समस्या बन गए। आख़िर हाईकमान को टिकट काटनी पड़ी तो राजस्थान से कोई नेता तैयार नहीं हुआ। वह इलाक़ा ब्रजेश्वरसिंह और नत्थीसिंह जैसे नेताओं के दबदबे से आक्रांत था। राजेश पायलट राजेश्वर प्रसाद के रूप में जयपुर पीसीसी आए तो पीसीसी चीफ जगन्नाथ पहाड़िया ने पहचाना नहीं। राजेश पायलट ने भरतपुर से उम्मीदवार होने के बारे में कहा तो पहाड़िया और दूसरे नेताओं ने उपहास किए। लेकिन जब एक सामान्य जगन्नाथ को सीएम पहाड़िया बनाने वाले संजय गांधी ने ही फ़ोन किया तो पहाड़िया कुछ पसीजे और उन्होंने अपनी गांधी टोपी संभालते हुए पायलट को बैठने के लिए कहा। वैसे ��ाजस्थान की राजनीति में नए और नौजवानों के प्रति असहिष्णुता का भाव बहुत गहरा है। राजेश पायलट ने नामांकन भरा तो उसे किसी चूक से रद्द करवाने और नामांकन पत्र में कोई गंभीर त्रुटि रखवा देने वाले काम भी शुरू हो गए। राजेश पायलट को संजय गांधी ने इन सब बातों के बारे में समय पर नहीं चेताया होता तो उस दौर के काँग्रेसी पायलट को बहुत पहले वापस भेज देते। लेकिन गांधी-नेहरू परिवार इस सबको लेकर हमेशा ही सजग रहा है। उस समय उनकी कुचालों कामयाब हो जातीं तो शायद जनता दल के नेता नत्थीसिंह निर्विरोध ही चुनाव जीत जाते। लेकिन जैसा कि कहते हैं, वह जन मारे नहीं मरेगा। नहीं मरेगा। जो जीवन की आग जला कर आग बना है। ऐसा राजेश पायलट के साथ ही नहीं, बहुत सी शख़्सियतों के साथ होता है। भले वे किसी भी दल या विचार में हों या किसी भी क्षेत्र में। राजेश पायलट को आम कार्यकर्ताओं ने चुनाव जितवाया और राजस्थान की एक धारा में बहती राजनीति को बदल दिया। 1984 में भरतपुर नवलकिशोर शर्मा आ गए तो पायलट दौसा शिफ़्ट किए गए। और इसके बाद इस लोकसभा सीट के आरक्षित होने तक पायलट यहाँ आजीवन सदस्य रहे और उनके बाद रमा पायलट और सचिन पायलट सदस्य बने। इसके बाद की कहानी संभवत: राजस्थान के सब लोगों को पता है। राजेश पायलट को राजनीति में आने की तब सूझी जब कृषि मंत्रालय के हेलीकॉप्टर से किसानों की फ़सलों पर पेस्टीसाइड का छिड़काव कर रहे थे। मुझे याद है, मैं घमूड़वाली में छठी कक्षा में था तो वे घमूड़वाली, बींझबायला और 36 एलएनपी के बीच के इलाके़ में हेलीकॉप्टर से पेस्टीसाइड छिड़काव के लिए वे आए थे तो हमारा पूरा स्कूल वहीं आ गया था। उस समय उन्होंने बहुत बच्चों से हाथ मिलाया, बातचीत की और सबसे अच्छा पढ़कर आगे बढ़ने का एक पूरा लेक्चर ही दे दिया था। उन्होंने सबको हेलीकॉप्टर के बारे में बताया। राजेश पायलट ने जब हेलीकॉप्टर से किसानों की फ़सलों पर से उड़ान भरी तो उन्होंने देखा कि किसानों के हालात कितने बदतर हैं। ये हालात कैसे सुधरें और इसी जन्म में, इस जीवन में कैसे सुधरें तो इसका रास्ता राजनीति से होकर ही आता है। जिन लोगों ने खेती नहीं की, पशुपालन नहीं किया और जिन्होंने सिर्फ़ बेचना और ख़रीदना ही सीखा है, उस संस्कृति से निकले लोग अगर राजनीति में भी जाएंगे और सत्ता भी हासिल करेंगे तो किसानों की समृद्धि को सुसंस्कृत राह पर लाने के बजाय इसे मौत की राह पर डालकर मुनाफ़े की चमक दिखाएंगे। राजेश पायल को किसान और जवान से बहुत प्रेम था और उनकी राजनीति उस राह पर एक अंतिम गंतव्य तक पहुंचती, उससे पहले वे एक दु:खद दुर्घटना में चले गए। राजस्थान की राजनीति में विभिन्न दलों में लोकतांत्रिक युग में जो बेहतरीन नेता हमें मिले हैं, उनमें राजेश पायलट एक थे। दमकते नक्षत्र सी उस शख़्सियत को सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल की इन पंक्तियों के साथ असीम प्रणाम : हम जिएँ न जिएँ दोस्त तुम जियो एक नौजवान की तरह, खेत में झूम रहे धान की तरह, मौत को मार रहे बान की तरह। हम जिएँ न जिएँ दोस्त तुम जियो अजेय इंसान की तरह मरण के इस रण में अमरण आकर्ण तनी कमान की तरह! #RajeshPilot #SachinPilot @SachinPilot #RajasthanPolitics
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और इंदिरा गांधी ने ऐसे बना दिया राजेश पायलट का रिश्ता राजस्थान से आज राजेश पायलट की जयंती है। वे हमारे बीच होते तो अस्सी बरस पार कर चुके होते। कल्पना करिए कि अस्सी पार के राजेश पायलट कैसे लगते और किस तरह के भाषण दे रहे होते। एक बेहद निर्धन परिवार में पले-बढ़े राजेश्वरप्रसाद इतने ब्रिलिएंट स्टूडेँट थे कि उन्होंने उस सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज में एडमिशन ले लिया, जहाँ से नूरूद्दीन अहमद, अमिताव घोष, गोपाल कृष्ण गांधी, सुचेता कृपलानी, राजमोहन गांधी, रामचंद्र गुहा, निर्मल वर्मा, गोपीचंद नारंग जैसी शख़्सियतें निकलीं। राजेश पायलट का मूल नाम राजेश्वरप्रसाद था और उन्होंने भरतपुर संसदीय क्षेत्र का टिकट मिलने के बाद संजय गांधी की सलाह पर यह नाम बदला था। राजेश पायलट के जीवन की कहानी बहुत ही दिलचस्प और प्रेरणादायी है। ख़ासकर उन युवक-युवतियों के लिए, जिनके पास पैसा नहीं है और वे इसके बावजूद राजनीति में आकर देश के लिए कुछ करना चाहते हैं। लेकिन दु:खद है कि राजेश पायलट के प्रेरक जीवन को किसी अच्छे राजनीतिक लेखक ने शब्दों में नहीं पिरोया है। उनकी एक हृदयस्पर्शी जीवनी कुछ साल पहले उनकी सहधर्मिणी रमा पायलट ने लिखी थी, जिसमें कई दिलचस्प घटनाएं और जीवन के दु:खदर्द और संकटों को बहुत ही शालीन तरीके से पिरोया गया है। लेकिन एक पत्नी अपने पति के बारे में लिखे तो उसकी अपनी आंतरिक और बाहरी सीमाएं होती हैं। आज हम ऐसे युग में ��ैं, जब नैतिक रूप से गिरे हुए लोगों को प्रेरक और सफल रूप से प्रस्तुत किया जाता है और लोग उनके संपर्क में होने से गर्व महसूस करते हैं। यही वजह है कि आज राजनीति, कला, संंस्कृति और मीडिया की वीथिकाओं में पतनशीलता भी गर्वीले एहसास के साथ टहलती है। राजेश पायलट जीवन की धूल चाट कर बड़े हुए थे। उस धूल में गोधूलि के उन कणों का अंबार था, जिनसे किसी भी खेतिहर और पशुपालक परिवार के जीवन का सुनहरा भविष्य बन���ा है। जिस व्यक्ति ने गायें नहीं पालीं, वह नहीं जानता कि जीवन और उसमें गोधूलि की क्या महत्ता है। जो गाय नहीं पालते और गाय को सिर्फ़ और सिर्फ़ पवित्र पशु मानते हैं, उन्हें गोधूलि की महत्ता स्वप्न में भी पता नहीं चल सकती। मेरे अपने पिता और माँ गाएँ और भैंसें तो पालते ही थे; लेकिन उनका पारिवारिक काम पीढ़ियों से घोड़े पालने का था। गायों और भैंसों का सारा दूध घोड़ों को पिलाया जाता था और खेत से आने वाले जौ और चने घोड़ों को ही खिलाए जाते थे। मैं समझ सकता हूँ कि राजेश पायलट के जीवन में गौ पालन से लेकर सेंट स्टीफ़न तक जाने के दौरान कैसी चुनौतियां रही होंगी। रमा पायलट ने इसके कई कोमल और हृदयस्पर्शी संस्मरण अपनी पुस्तक में लिखे हैं। राजेश पायलट तूफ़ानों से लड़े, कई बार गिरे और बार-बार खड़े हुए। वे मिट्टी से सोना खोदने वाले और इस्पात मोड़ने वाली शख़्सियत साबित हुए थे। एक अकल्पनीय क़ामयाबी पाने वाले राजेश्वर प्रसाद ने जब वायु सेना से पायलट की असाधारण नौकरी छोड़कर राजनीति में आना चाहा और इस दौरान इंदिरा गांधी से हुई मुलाकातों की बातें इंदिरा गांधी और संजय गांधी का एक अलग ही चेहरा प्रस्तुत करती हैं। वे क्या लोग थे, जिनसे मिलना इतना आसान था। राजेश पायलट इंदिरा गांधी से आशीर्वाद लेने गए और कहा कि वे प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह के ख़िलाफ़ बागपत चुनाव लड़ना चाहते हैं तो उन्होंने उन्हें नौकरी न छोड़ने और बाद में किसी दिन अपनी पत्नी को भेजने के लिए कहा। रमा पायलट जब इंदिरा गांधी से मिलने गईं तो वे उनकी मॉडर्न वेशभूषा देखकर एकबारगी अवाक् रह गईं और उन्हें पहचान नहीं पाईं। इंदिरा गांधी ने समझा था कि गुर्जर परिवार के इस युवक की पत्नी की वेशभूषा ठेठ ग्रामीण होगी। इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप के बावजूद 1980 में राजेश पायलट को बाग़पत से टिकट नहीं मिला। इसकी एक लॉजिकल वजह भी थी। इस सीट पर रामचंद्र विकल की दावेदारी थी, जो गुर्जर ही थे और आर्यसमाज के बहुत बड़े सुधारक रहे थे। महात्मा गांधी की हत्या ने विकल को इतना झकझोर दिया था कि उन्होंने अपना पूरा जीवन काँग्रेस को समर्पित कर दिया था। उन्होंने काफ़ी भूमि भी निर्धनों को दे दी थी। लेकिन चरणसिंह के सामने वह चुनाव विकल बुरी तरह हार गए थे। बागपत का टिकट घोषित होने के बाद निराश राजेश पायलट और रमा पायलट अपने स्कूटर से एयरपोर्ट पर जाकर हैदराबाद उड़ान भरती इंदिरा गांधी से मिले तो उन्होंने मुस्कुराकर दोनों को देखा और हुँम्ममम के साथ अभिवादन का जवाब देकर चली गईं। उसी शाम संजय गांधी ने राजेश पायलट को टेलीफ़ोन करके बुलवाया और इसके बाद जो हुआ, उसने राजस्थान की राजनीति की एक नई इबारत लिख दी। (१.) (अगले ट्वीट में २.) @SachinPilot
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सुचिंतित और सुविचारित विश्लेषण, हमेशा की तरह। इतनी ईमानदारी और ऐसी नफ़ासत से कॉंग्रेस और भाजपा के नेता क्यों नहीं बोलते?
#ResultsOnIndiaToday | Is it the end of the road for 'INDIA' alliance? @_YogendraYadav, Co-founder of Swaraj India, says if AAP and Congress worked together they would have done much better. #DelhiElectionResults #BJP #NewsToday | @SardesaiRajdeep
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Our great democracies still tend to think that a stupid man is more likely to be honest than a clever man, and our politicians take advantage of this prejudice by pretending to be even more stupid than nature made them. Bertrand Russell, New Hopes for a Changing World *** हमारे महान लोकतंत्र अभी भी यह सोचते हैं कि एक चतुर व्यक्ति की तुलना में एक मूर्ख व्यक्ति के ईमानदार होने की अधिक संभावना होती है और हमारे राजनेता मूल रूप से बनाए गए से भी अधिक मूर्ख होने का दिखावा करके इस पूर्वग्रह का फायदा उठाते हैं। बर्ट्रेंड रसेल, बदलती दुनिया के लिए नई उम्मीदें
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RT @jitubagria: ये सिस्टम इतना लचर कब और कैसे हो गया देखते ही देखते?? वीडियो, चिकित्सक, मीडिया, जनता, सब चीख चीख कर बता रहे हैं की दोषी कोन…
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The Hypocrisy of Borders: Why Billionaire CEOs Move Freely While Ordinary Citizens Are Restricted During Trump’s presidency, the US govt deported thousands of immigrants as part of its aggressive immigration policies. Stricter visa rules, mass deportations, nd travel bans disproportionately affected students, skilled workers, and refugees frm developing countries. Meanwhile, in the same world, billionaire CEOs from multinational corporations continued to move freely, securing deals, expanding their businesses, and living as "global citizens" with no such restrictions. This stark contrast exposes a harsh truth: borders and immigration laws are not designed to regulate movement equally. They exist to control the powerless while giving the wealthy unrestricted access to the world. The Two-Tiered System of Mobility The CEOs of tech giants and multinational corporations can land in any country at will, secure multi-billion-dollar deals, set up operations, and exploit global markets—all without facing the humiliating visa rejections or bureaucratic red tape that the average person endures. Meanwhile, a talented engineer from a developing nation struggles for years to obtain a work visa, and a student with a scholarship faces endless scrutiny before being allowed entry into a Western nation. This system is not accidental; it is a carefully maintained hierarchy designed to benefit the rich and powerful while keeping the rest of the world’s population under control. The same governments that speak of "freedom" and "opportunity" impose severe restrictions on movement—except for those who hold economic power. The Hypocrisy of Globalization The West preaches about free markets and open economies, yet it imposes draconian immigration laws on skilled workers, students, and refugees. If globalization is truly about interconnectedness, why does it only apply to the movement of capital and not to people? Why can a company relocate its operations to a foreign land with ease, but a struggling entrepreneur from a developing country faces endless hurdles to obtain a business visa? This hypocrisy is particularly evident when powerful nations enforce stringent travel restrictions on citizens of the Global South while their own billionaires roam the world unrestricted. The so-called "developed world" welcomes wealth but rejects people. It happily takes resources, talent, and profits from poorer nations but denies their citizens the right to move freely. The Exploitative Nature of Immigration Policies The entire system of visas and passports has been turned into a tool of economic control. Western nations restrict migration when it threatens their job markets but open the doors when they need cheap labor or specialized talent. Tech companies lobby for relaxed visa policies only when they require engineers from India or China but remain silent on broader immigration reforms. Meanwhile, the ultra-rich buy "golden visas" or citizenships in tax-haven nations, escaping taxes and accountability while the common man is bound by nationality and bureaucracy. If an ordinary worker overstays a visa, they are criminalized and deported. But when a billionaire exploits loopholes, they are hailed as "global citizens." The Need for a New Global Mobility Framework If globalization is to be fair, mobility should be a right, not a privilege. Every person should have the freedom to seek opportunities across borders, just as corporations do. The world must rethink its outdated visa and passport systems, which serve only to protect the interests of the elite while suppressing the aspirations of millions. The hypocrisy must end. Either nations embrace true freedom of movement for all, or they admit that globalization is nothing more than a tool for the powerful to dominate the powerless. Until then, the dream of an equal world remains an illusion—reserved only for those who can afford it.
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दुनिया पोलर बियर के बिछड़े शिशु को मिलाने के लिए कुछ भी कर सकती है; लेकिन भारतीय दूतावास के हृदयहीन अधिकारी एक नवजात शिशु को वीजा नहीं देते। RPG समूह के चेयरमैन @hvgoenka ने आज एक मार्मिक वीडियो शेयर किया तो मुझे हाल ही छपी एक ख़बर याद आ गई, जिसमें एक शिशु के अपनी माँ से बिछड़ने की कहानी है। अपने आपको दुनिया का सबसे सभ्य मुल्क कहने वाले हम क्या वाक़ई मानवीय संवेदना के मानदंड पर यूरोपीय देशों के नागरिकों का मुक़ाबला करेंगे?
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RT @akhileshsharma1: कांग्रेस ने वही किया जो उसे करना था। चाहे तथाकथित लिब्रल आँसू बहा रहे हों कि कांग्रेस ने आप का खेल बिगाड़ दिया और इससे…
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RT @MANJULtoons: इस चुनाव से पहले केजरीवाल जी ने इस्तीफा देकर आतिशी जी को मुख्यमंत्री बना दिया। आतिशी पूरे समय ये कहती रहीं कि उनका लक्ष्य…
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@hvgoenka Sir, I humbly beg your pardon. I fear that, from an ethical standpoint, this tweet may not quite align with the high standards one might rightfully expect from your esteemed personage.
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यह धरती कुछ व्यक्तियों या किसी एक राष्ट्र की संपत्ति नहीं है; यह संपूर्ण मानवता का साझा घर है। प्रत्येक व्यक्ति को इसकी भूमि पर यात्रा करने, जहाँ उनका हृदय शांति पाता है वहाँ निवास करने, और इसके असीम आकाश के नीचे स्वतंत्र रूप से घूमने का अंतर्निहित और मौलिक अधिकार है। #साझीधरती #मानवाधिकार #स्वतंत्रता #एकता #यात्रा
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