kumble choudhary
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उस अंधेरी रात में, हाड़ कंपाती ठंडी में,
डरावने माहौल में, धोरों के कांटों में,, में निरंतर चला ही जा रहा था, कोई सुध बुध नहीं थी,
सिर्फ एक ही झलक थी, प्रेयसी को निहारने की ललक थी।
उसको पाने की तलब थी,
किसी का कोई भय नहीं 👉👉👉✍️ आगे की पोस्ट में अगली बात