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अक्षरा

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मधुकर मधु माधव की बानी..

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@Akshara75u
अक्षरा
5 months
"रामनाम्न: परो मंत्रो न भूतो न भविष्यति।" 'राम' इस शब्द में रकार रसातल लोक से, अकार भूमंडल से एवं मकार मह:लोक से आया है, इसी कारण यह त्रिवर्णात्मक राममन्त्र है। श्रीरामचंद्र जी रकार के द्वारा भवसिंधु से अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। अकार से भक्तों को
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8 months
साधना के विघ्न बहुत से हैं, उनमें से कुछ;
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अक्षरा
7 months
सब मासों में चैत्र मास श्रेष्ठ है, चैत्र मास में शुक्ल पक्ष श्रेष्ठ है। शुक्ल पक्ष में भी प्रतिपदा से लेकर नवमी तक की तिथियाँ श्रेष्ठ हैं। उनमें भी नवमी तिथि सर्वप्रधान तिथि है। नवमी तिथि को धर्म की स्थापना के लिए भगवान राम का जन्म हुआ था
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अक्षरा
9 months
श्यामाभिरामं नयनाभिरामं गुणाभिरामं वचनाभिरामम्। विश्वप्रणामं कृतभक्तकामं श्रीरामचन्द्रं सततं नमामि।। (श्रीशिव उवाच) 🙏
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अक्षरा
10 months
भगवान शंकर भी संध्योपासना करते हैं। उत्तर मुख हो शंभु भगवान जब न्यास तथा जप कर चुके तो भगवान विष्णु ने पूछा – "जिन्हें समस्त देवगण नमस्कार करते हैं, जिनकी सब अर्चना करते हैं और सकल यज्ञों में जिनको आहुतियाँ दी जाती हैं वे देव (आप) किस चीज का जप करते हैं? आप किसको प्रणाम करते हैं?
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अक्षरा
4 months
एक बार काशी के योग्य विद्वान ने करपात्री महाराज से कहा कि दुर्गाजी की चांदी की आँख चोरी हो गई,वे अपने ही आँख की रक्षा न कर पाईं तो हम सबकी रक्षा कैसे करेंगी?एक व्यक्ति ने शिवजी पर चढ़े फलों को ले जाती हुई मूषिका को देखकर समझ लिया कि मूर्तिपूजा व्यर्थ है। करपात्री महाराज का उत्तर:
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3 months
समस्तपापनाशक स्तोत्र: जब मनुष्यों का चित्त परस्त्रीगमन, परस्वापहरण एवं जीवहिंसा आदि पापों में प्रवृत्त होता है, तो निम्नलिखित प्रकार से भगवान श्रीविष्णु की स्तुति करने से प्रायश्चित होता है। किसी भी पाप के हो जाने पर इस स्तोत्र का जप करे। -आग्नेय महापुराण, अध्याय १७२
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अक्षरा
1 year
श्री नित्ये! बगलामुखी! प्रतिदिनं कल्याणि तुभ्यं नम:। दश महाविद्याओं में से एक (“पृष्ठस्तव या देवी बगला शत्रुसूदिनी”) भगवती ‘बगलामुखी’ (वलगामुखी, बगला, पीताम्बरा, वल्गामुखी) ही श्रुति में वर्णित ‘कृत्या-वल्गा’, ‘वलगहन’ हैं।
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1 year
(आनंद रामायण) माता सीता पृथ्वी में समा रहीं थीं, तभी श्रीराम ने पृथ्वी से प्रार्थना की कि आपने विवाह के समय कन्यादान नहीं किया, सो अब कर दीजिए। जब पृथ्वी ने विनय को अनसुना कर दिया तो भगवान राम ने पृथ्वी को उनके दुराग्रह का दण्ड देने के लिए धनुष पर बाण चढ़ाया।
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2 years
करिष्यामि व्रतं मातर्नवरात्रमनुत्तमम्। साहाय्यं कुरु मे देवि जगदम्ब ममाखिलम्।। 🙏🙏💐🌹🌺
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11 months
'हर' का 'सिंगार' है इसलिए 'हरसिंगार' है। धैर्य, प्रेम, मृत्यु का प्रतीक जिसे पारिजात, शेफाली अथवा शिउली भी कहा जाता है।
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अक्षरा
11 months
"कृतयुग में ब्रह्मा पूजित होते हैं, त्रेता में यज्ञ, द्वापर मे विष्णु और मैं (महेश्वर) चारों युग में पूजित रहता हूँ।" ब्रह्मा, विष्णु और यज्ञ ये काल की तीन कलाएं या अंश हैं, किन्तु चार मूर्ति वाले महेश्वर (काल) सभी कालों में हैं। -वायु पुराण
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अक्षरा
1 year
महाभारत में माँ उमा ने पूछा – "भगवन! कुछ मनुष्य सौभाग्यशाली होते हैं जो रूप और भोग से हीन होने पर भी नारी को प्रिय लगते हैं, किस कर्म-विपाक से ऐसा होता है?"
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6 months
हरिरूप: शंकरात्मा मारुति: कपिसत्तम:। पर्यायैरुच्यतेवऽधीश: साक्षाद्विष्णु: शिव: पर:।। 🙏💐 प्रत्येक कल्प में अपनी इच्छा से रूप धारण करने वाले भगवान हनुमान शिव के आज्ञाकारी, रामभक्त तथा महाबलवान हैं।
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7 months
भगवान राम व्यासजी से कहते हैं- हे मुनिसत्तम! मैंने अपने लिए तीन नियम बना लिए हैं, १. एक बार मेरे मुख से जो बात निकल जाए, वह ध्रुव होती है। प्राण संकट आने पर भी बात नहीं बदलेंगे। २. सीता को छोड़कर संसार की समस्त स्त्रियाँ मेरे लिए कौसल्या माता के समान हैं।
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10 months
देवर्षि! आयु का आधा भाग निद्रा में चला जाता है, भोजन आदि में कितना अंश बीत जाता है। शैशव और बुढ़ापे में कितना व्यर्थ समय बीत जाता है, कितना अंश विषय-भोग में ही नष्ट हो जाता है। तो बताओ धर्माचरण कब करोगे? इसलिए युवावस्था में ही धर्माचरण करो। -सनक ऋषि नारदीय पुराणम्
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7 months
संसार के सभी बलों से संकल्प का बल श्रेष्ठ है। जो दूसरों में शुभ का अनुसंधान करता है, उसके विचारों (संकल्प) में बल आता है। जो दूसरों के लिए अनिष्ट चिन्तन करता रहता है, उसके विचार निर्वीर्य हो जाते हैं।
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2 years
Several churches in Goa were erected on the ruins of temples (destruction of 280 temples are documented), they even used the materials of the temples and melted scared images of Hindu gods to make ornaments of churches.
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2 years
'Christianity in India wasn’t always imposed. Just look at its Portuguese art' Anirudh Kanisetti @AKanisetti , author and public historian, writes in his column #ThinkingMedieval
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1 year
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरांशुमान् | मरीचिर्मुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी॥ (श्रीमद्भगवद्गीता १०.२१) “मैं अदिति के पुत्रों में विष्णु (वामन), प्रकाशमान वस्तुओं में किरणों वाला सूर्य हूँ। मैं मरुतों का तेज और नक्षत्रों का अधिपति चन्द्रमा हूँ।”
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9 months
गरुड नाम की व्युत्पत्ति: ये आकाश में उड़ने वाले सर्पभोजी पक्षिराज भारी भार (पर्वताकार हाथी, महान मेघखण्ड के समान कछुआ को अपने पंजों में तथा वालखिल्य महर्षियों की रक्षा हेतु विशाल शाखा को चोंच में) लेकर उड़े हैं; इसलिए (गुरुम् आदाय उड्डीन इति गरुड:), ये गरुड कहलाये। -महाभारत
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2 years
त्रिवृद् वेद: सुपर्णाख्यो यज्ञं वहति पुरुषम्। - श्रीमद्भागवत महापुराण तीनों वेदों का ही नाम सुपर्ण (गरुड) है, वे ही अंतर्यामी परमात्मा का वहन करते हैं। विष्णु सहस्त्रनाम में श्रीविष्णु के नाम वेद, वेदवित्, वेदांग, सुपर्ण, नर (आत्मा, जिससे नार अर्थात जल आदि उत्पन्न हुए) हैं।
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अक्षरा
1 year
पुराण संहिता को १८ भागों (अष्टादश पुराण) में किस आधार पर विभाजित किया गया? आधिदैविक सृष्टि किस प्रकार हुई (उक्थभेदा:-६ पुराण), आध्यात्मिक सृष्टि के मत (उक्थमतभेदा:-४ पुराण), सृष्टि के अवांतर कारणों के प्रतिपादक (अवतारभेदा:-६ पुराण), प्रतिसृष्टि (१ पुराण) व ..
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अक्षरा
7 months
ऊधौ! मन न भए दस बीस...
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3 months
जब सत्त्वगुण की वृद्धि होती है, तभी जीव को मेरे भक्तिरूप स्वधर्म की प्राप्ति होती है। निरन्तर सात्त्विक वस्तुओं के सेवन से ही सत्त्वगुण की वृद्धि होती है। -श्रीकृष्ण भगवान (हंसगीता)
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2 years
आत्मा से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से ओंकार, ओंकार से व्याहृति, व्याहृति से गायत्री (व्याहृतितो गायत्री भवति), गायत्री से सावित्री (गायत्र्या: सावित्री भवति), सावित्री से सरस्वती (सावित्र्या: सरस्वती भवति), सरस्वती से वेद, व वेद से लोक हुए। (गायत्री हृदयम)
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1 year
प्रतिवर्ष "विजयदशमी" पर्व को आयोजनमात्र समझकर मनाते रहते हुए भारतीय प्रजा इसके मूलार्थ और मूलप्रयोजन को भूलती जा रही है। नवरात्रि में शक्ति उपासना करके शक्तियुक्त होकर दशमी को विजययात्रा, धर्म प्रचार आदि के लिए निकलना बस इतिहास व शास्त्रों तक सीमित रह गया है।
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9 months
नारायण नाम की व्युत्पत्ति न + अर् + अयन (वायु पुराण) ‘अर्’ धातु अनेकत्व तथा शीघ्रत्व को प्रकट करता है, एकार्णव होने पर जलराशि शीघ्रता से नहीं चलती, अतः उसका नाम ‘नार’ पड़ा। महान भगवान प्रजापति अपनी रात्रि में आत्मा में सभी जंगम स्थावर आदि जीवों व जगत को समेट कर महान एकार्णव
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5 months
सुवर्ण अग्नि की प्रथम संतान है। भूमि भगवान विष्णु की पत्नी है तथा गौएं भगवान सूर्य की कन्याएँ हैं, अतः जो कोई सुवर्ण, गौ और पृथ्वी का दान करता है, उसके द्वारा तीनों लोकों का दान सम्पन्न हो जाता है। -महाभारत
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अक्षरा
1 year
शतपथ ब्राह्मण में दिया है – सृष्टि की आरंभिक अवस्था क्या थी? उत्तर देते हैं, आदि में सारा सृष्टि प्रपञ्च असत था। असत क्या था? ऋषि। ऋषि का स्वरूप क्या था? प्राण। अर्थात प्राण ही ऋषि कहे जाते हैं।
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अक्षरा
9 months
श्री हरि रूपरहित होकर भी मायामयरूप से प्राणियों के कल्याण के लिए अस्त्र व भूषण धारण करते हैं। (विष्णु पुराण) इस जगत के निर्लेप, निर्गुण, निर्मल आत्मा को कौस्तुभमणि रूप से धारण करते हैं। श्रीवत्स चिन्ह प्रकृति का रूप है। बुद्धि गदारूप से स्थित है।
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1 year
वर्षों की तपस्या, समाधि, अत्यधिक प्रयत्न व अनन्य भक्ति से भी ईश्वर के दर्शन हो जाएं, यह दुर्लभ है। उदाहरण स्वरूप श्रीयोगवासिष्ठ के अनुसार एक बार श्रावण मास में ब्रह्मर्षि वसिष्ठ को कैलास-वन में साक्षात महादेवजी के भगवती व गण नंदी सहित शुभ दर्शन कैसे हुए:
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2 years
प्रलयकाल में भगवान रुद्र के नृत्य का अनुकरण करती हुई उनके शरीर से एक छाया निकलती है, सूर्यों के अभाव में महान अंधेरे से परिपूर्ण आकाश में छाया कैसे? यह छाया ही कालरात्रि रूपी माँ भगवती महाकाली हैं।
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9 months
तंडुल अथवा चावल को अक्षत क्यों कहा जाता है? वायु पुराण के अनुसार 'सूर्यदेव अपनी सुषुम्न किरण द्वारा चन्द्रमा को बढ़ाते हैं, उस अमृतरूपी किरण को पितर स्वधा समझकर और देवगण कव्य समझकर पीते हैं। सूर्य की किरणों से ही जल उत्पन्न होता है, वृष्टि से औषधि और अन्न उत्पन्न होते हैं।
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4 months
सुमेरु कन्या मेनका गर्भ से माँ गङ्गा का जन्म हुआ। इसके बाद वे ब्रह्माजी के कमंडलु में अदृश्य रूपेण स्थित होकर सुरगण द्वारा स्वर्ग ले जायी गईं। तत्पश्चात साक्षात शिव भगवान की पत्नी होकर कुछ काल के उपरांत भगीरथ की तपस्या के कारण द्रवमयी होकर भगवान विष्णु के चरणों से भूतल पर...
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अक्षरा
8 months
यत्फलं मम पूजायां वर्षमेकं निरंतरम्। तत्फलं लभते सद्यः शिवरात्रौ मदर्चनात्॥ (शिवमहापुराण) एक वर्ष तक निरंतर मेरी (भगवान शिव) पूजा करने पर जो फल मिलता है, वह सारा फल केवल शिवरात्रि को मेरा पूजन करने से मनुष्य तत्काल प्राप्त कर लेता है। नमः शिवाय 🙏🙏
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11 months
भगवान शंकर के स्वर कैसे हैं? वायु पुराण के अनुसार उनके स्वर दुंदुभि के एवं बादलों की गड़गड़ाहट के समान भीषण व गंभीर थे। जब भगवान ने अट्टहास किया तो उससे आकाशमंडल व्याप्त हो गया। उनके उस भीषण नाद से भगवान विष्णु व ब्रह्मा भयभीत हो गए।
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अक्षरा
10 months
महारामायण (श्रीयोगवासिष्ठ) नामक शास्त्र क्यों श्रेष्ठ है? महर्षि वसिष्ठ श्रीरामचन्द्रजी से कहते हैं – यदि आप सज्जनसंगति और सत् शास्त्रों के अभ्यास में तत्पर हो जाएं, तो कुछ महीनों में, नहीं-नहीं कुछ दिनों में परम पद को प्राप्त हो जाएंगे।
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अक्षरा
5 months
जब माँ गंगा को गिरिवर कन्या कहते हैं, तब उनके स्वामी शिव हैं। जब स्वर्ग की देवनन्दिनी कहें, तब ये अग्निभार्या एवं स्कन्दमाता हैं। जब ये विष्णुपद से उद्धृत कही जाएं तब ये अपनी गतिलाभ करती हैं। ये जह्नुकन्या होकर राजपत्नी (शान्तनु की) तथा भीष्मजननी हो जाती हैं।
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अक्षरा
3 months
मनोवेगी सदायोगी संसार-भयनाशनः। 🙏
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अक्षरा
4 months
नारायण दोऊ एक हैं रूप रंग तिल रेख। उनके नयन गंभीर हैं इनके चपल विशेख॥
@sambhashan_in
संभाषण - एक वार्तालाप
4 months
अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् । श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥
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अक्षरा
5 months
नेताजी को पद्म विभूषण देते समय बीजेपी रामद्रोही नहीं हुई थी, लेकिन अवधेश प्रसाद के जीतते ही अयोध्या की जनता रामद्रोही हो गयी। 👌
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1 year
यदि किसी कार्य में सफलता चाहिए तो सर्वप्रथम अपने वाक् व्यवहार पर नियंत्रण करें। “वागवै यज्ञ:।”(श. ब्राह्मण) वाक् ही यज्ञ है। “वागेवास्य ज्योतिर्भवति।” (बृ.उपनिषद ४.३.५) आदित्य के अस्त होने पर, चंद्रमा के अस्त होने पर, अग्नि के शान्त होने पर यह पुरुष वाक् ज्योति वाला होता है।
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5 months
मनुस्मृति - स्त्री क्षेत्ररूप है और पुरुष बीजरूप है। क्षेत्र तथा बीज के संसर्ग से सब प्राणियों की उत्पत्ति होती है। “बीजस्य चैव योन्याश्च बीजमुत्कृष्टे” अर्थात बीज तथा क्षेत्र में बीज ही श्रेष्ठ कहा जाता है। अतएव सब जीवों की संतान बीज के लक्षणों से युक्त ही उत्पन्न होती है। +
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@Akshara75u
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11 months
वृक्षों में सबसे पहले आँवला उत्पन्न हुआ इसलिए इसे 'आदिरोह' कहा जाता है, यह विष्णु भगवान को अत्यंत प्रिय है। आँवले का स्मरण मात्र गोदान का फल देता है, दर्शन से इसका दुगना पुण्य मिलता है और फल खाने से तिगुना पुण्य मिलता है। घर में आँवला अवश्य रखें। अक्षय नवमी की शुभकामनाएं। 🙏
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अक्षरा
11 months
'मुनिन्ह प्रथम हरि कीरत गाई।' माँ सरस्वती जिसके मुखमंडल में कवित्वशक्तिरुपा निवास करती हैं, वही कवि होता है और विविध शास्त्रों की रचना करता है। ब्रह्माजी देवी सरस्वती से कहते हैं- “भव त्वं कविताशक्ति: कवीनां वदनेषु ह…ते प्रकुर्वन्तु शास्त्राणि धर्म: सञ्चरतां तत:”।
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1 year
आहार की शुद्धि से ही अन्तःकरण की शुद्धि होती है और चित्त शुद्ध होने पर ही धर्म का प्रकाश होता है। अशुद्ध व अभोज्य खाद्य के लिए व्यक्ति कितने भी बहाने बना ले, उसके चित्त में न तो शास्त्रों के अर्थ प्रकाशित होते हैं और न ही धर्म का प्रकाश होता है।
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3 months
जो व्यक्ति गायों को जूठा अन्न खिलाता है, उसे गोहत्या का पाप लगता है। -देवीभागवत पुराण
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1 year
श्रीमद्भागवत महापुराण की गुरु परंपरा – सृष्टि के आदिकाल में जब ब्रह्माजी श्रीनारायण के नाभिकमल पर विराजमान थे, प्रलय के समुद्र में उन्होंने व्यंजनों के सोलहवें एवं इक्कीसवें अक्षर को ‘तप: तप:’ इस प्रकार दो बार सुना।
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1 year
"त्राहि विष्णो जगन्नाथ मग्नं मां भवसागरे।" 🙏 "अदो यद्दारु प्लवते सिन्धो: पारे अपूरुषम्।" (ऋग्वेद १०/१५५/३) 'दारूमयं पुरुषोत्तमाख्यं देवताशरीरं' (सायण भाष्य)। वेद भगवान के दारुविग्रह को देवता शरीर कहते हैं और उनकी उपासना से इस संसार को पार करने..
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@Akshara75u
अक्षरा
3 months
"सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्।" 🙏🙏 आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक वर्षा का समय है। इन चार महीनों में पृथ्वी के अग्निप्राण तथा सौर इन्द्रप्राण दोनों आपोमय रहते हैं,
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@Akshara75u
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1 year
कलियुग में होने वाले महादेव के अवतार- (कूर्म पुराण के अनुसार) वैवस्वत मन्वन्तर के पहले कलियुग में विप्रों के हित के लिए अतितेजस्वी देवाधिदेव शंकर “श्वेत” नाम से हिमालय के रमणीय छगल नामक शिखर पर अवतरित हुए। उनके चार शिष्य अमित प्रभाव वाले ब्राह्मण थे।
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@Akshara75u
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2 years
"इदं भागवतं नाम पुराणं ब्रह्म सम्मितम्।" (श्रीशुकदेवजी, श्रीभागवत पुराण) 'ब्रह्मसम्मितम्' पद का श्रीधरस्वामीपाद जी ने दो अर्थ किए हैं, ब्रह्म पद का अर्थ – वेद सम्मितम् पद का अर्थ – तुल्य अतः भागवत वेदतुल्य ग्रंथ व वेदों का प्रतिनिधि स्वरूप ग्रंथ है।
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1 year
चतुर्थी तिथि तीन प्रकार की होती है – शिवा, शान्ता, और सुखा। (शिवा शान्ता सुखा राजंश्चतुर्थी त्रिविधा स्मृता।) भाद्रपद मास की शुक्ला चतुर्थी का नाम ‘शिवा’ है (मासि भाद्रपदे शुक्ला शिवा लोकेषु पूजिता)। इस दिन गणपति की कृपा से स्नान, दान, उपवास, जप आदि का फल सौ गुना हो जाता है।
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@Akshara75u
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4 months
हे कृष्ण जगतां नाथ भक्तानां भयभञ्जन। प्रसन्नो भव मामीश देहि दास्यं पदाम्बुजे॥ 🙏
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@Akshara75u
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11 months
प्राक् शिर:शयने विद्याद्धनमायुश्च दक्षिणे। पश्चिमे प्रबला चिन्ता हानिमृत्युरथोत्तरे॥ (ऋषि मार्कण्डेय) पूर्व की ओर सिर करके सोने से विद्या, दक्षिण की ओर सिर करके सोने से धन और आयु की वृद्धि होती है। पश्चिम की ओर सिर करके सोने से प्रबल चिन्ता होती है,
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@Akshara75u
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2 years
(महाभारत) माँ उमा - स्वर्गलोक में अनेक प्रकार के सर्वगुणसम्पन्न निवासस्थान है, उन सबको छोड़कर आप भगवान शिव श्मशान-भूमि में कैसे रमते हैं?
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@Akshara75u
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3 months
नमो नारायणायेति मन्त्रः सर्वार्थसाधक:। (लिङ्गमहापुराण) 'नमो नारायणाय' मंत्र सभी कामनाओं को सिद्ध करने वाला है।
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@Akshara75u
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1 year
“अनिर्वचनीयं प्रेमस्वरूपं।” - श्री नारद भक्तिसूत्र/५१ रस, प्रेम और भगवान एक हैं और नित्य सिद्ध हैं। अब यदि यह कहिए कि बिना दो के प्रेम नहीं होता, अतएव प्रेम और भगवान भी दो वस्तु होनी चाहिए। किन्तु विचार करने पर पता लगता है कि भगवत प्रेम के लिए दो की अपेक्षा नहीं है,
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@Akshara75u
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3 months
स्त्रीणां द्विगुण आहारः प्रज्ञा चैव चतुर्गुणा। षड्गुणो व्यवसायश्च कामश्चाष्टगुणः स्मृतः॥ (गरुड़ पुराण) पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का आहार दुगुना, बुद्धि चौगुनी, कार्य की क्षमता छःगुनी और कामवासना आठगुनी अधिक मानी गई है।
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@Akshara75u
अक्षरा
1 year
जो पुरुष दयालु बनकर कुबुद्धि लोगों के दु:ख को दूर करने के लिए प्रवृत्त हुआ, वह सारे आकाश को अपने छाते से तापरहित करने के लिए परिश्रम करता है। अर्थात कुबुद्धियों के दु:ख को दूर करना असंभव है। संसार में पशु-पक्षी सरीखे लोगों को उपदेश देना उचित नहीं है। -योगवासिष्ठ
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@Akshara75u
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4 months
जगद्गुरु शंकराचार्य ब्रह्मलीन श्रीकृष्णबोधाश्रम जी महाराज - घर में नित्य प्रति हनुमानजी महाराज की पूजा करने से भूत-प्रेत नहीं सताते। जो भी प्रसाद चढ़ाया जाए, वह शुद्ध घी में शुद्धतापूर्वक घर पर बनाया हुआ होना चाहिए। यदि ऐसे प्रसाद की व्यवस्था न हो सके तो भोग लगाये ही नहीं।
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@Akshara75u
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2 years
खाये हुए अन्न का सूक्ष्म अंश, मन हो जाता है। पीये हुए जल का सूक्ष्म भाग, प्राण होता है। भक्षण किये हुए तेज का जो सूक्ष्म भाग है, वह वाणी होता है। इसलिए मन अन्नमय है, प्राण जलमय है और वाणी तेजोमय है। (छान्दोग्योपनिषद ६/६)
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6 months
व्रज की कुमारियों ने माँ कात्यायनी की पूजा और व्रत किया था। उनके व्रत का उद्देश्य श्रीकृष्ण को पति रूप में पाना था। कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देविपतिं मे कुरु ते नमः।। (श्रीमद्भागवत महापुराण) 🙏🌼🌺
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2 years
आज कल कुछ लोग कहते हैं कि मूर्ति पूजा जैन मत ने आरंभ किया, कुछ कहते हैं यह बौद्धों द्वारा आरंभ की गई है, और उपासना के शाब्दिक अर्थ को भी दरकिनार करते हुए मूर्ति पूजा के विरोधी बन बैठे हैं। महाभारत को हुए कम से कम ५००० वर्ष तो हो गए हैं...
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9 months
चित्त के शुद्ध हो जाने पर शरीर में आनंद ऐसे बढ़ता है, जैसे पूर्णचंद्रमा के उदित होने पर इस भुवन में निर्मलता। अन्तःकरण की शुद्धि से प्राणवायु अपने क्रम से बहते हैं और अन्न का परिपाक करते हैं, इससे सब व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। -श्रीयोगवासिष्ठ
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2 years
मनुवाद का अर्थ है, "गुण-कर्म-योग्यता के श्रेष्ठ मूल्यों के महत्त्व पर आधारित विचारधारा"।
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7 months
महिषासुर वध के लिए सभी देवताओं के तेज से कल्याणकारी देवी का आविर्भाव हुआ। भगवान शंकर ने भगवती को एक शूल दिया, विष्णु ने चक्र, वरुण ने शंख और पाश, अग्नि ने शक्ति, वायु ने धनुष तथा बाण से भरे दो तरकस दिए, इन्द्र ने वज्र तथा घंटा दिया,यमराज ने कालदण्ड, प्रजापति ने स्फटिकाक्ष की माला
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6 months
आधि (वासनामय मानसिक दु:ख) से व्याधि (शारीरिक दु:ख) उत्पन्न होती है और आधि के अभाव से व्याधि भी नष्ट हो जाती है। अज्ञान ही इन दोनों का मूल कारण है, तत्त्वज्ञान होने पर इनका नाश अनिवार्य है। -महारामायण
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3 months
बृहदारण्यक उपनिषद: पहले एक आत्मा ही था। उसने कामना की कि मेरे स्त्री हो, फिर मैं प्रजारूप से उत्पन्न होऊँ। मेरे पास धन हो, फिर मैं कर्म करुँ। बस इतनी ही कामना है,इच्छा करने पर इससे अधिक कोई नहीं पाता। वह जब तक इनमें से एक-एक को प्राप्त नहीं करता,तब तक अपने को अपूर्ण मानता है।
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1 year
भारत में वैदिक धर्म की प्रतिष्ठा, वेदों के प्रति श्रद्धा, ज्ञान के प्रति आदर, सारे भारत को आध्यात्मिक सूत्र से बांध करके संगठित कर एकता का रूप देना, इन सब का श्रेय भगवान शिवअवतार आदिगुरु शंकराचार्य जी को है।
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2 years
ऋचा का अर्थ होता है- ‘चरणयुक्त मन्त्र’। ऋचाएं वेदों में ही मिलती हैं। अनुष्ठेय अर्थप्रकाशन के प्रयोजक वाक्यों को ‘मन्त्र’ शब्द से कहा जाता है (जैमिनीय सूत्र)। अर्थात अनुष्ठान, स्तुतिपरक, आमंत्रण में विनियुक्त ऋचाएं ‘मन्त्र’ कही जाती हैं।
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6 months
दुर्गमे दुस्तरे कार्ये भय-दुर्गविनाशिनि। प्रणमामि सदा भक्त्या दुर्गां दुर्गति-नाशिनीम्॥ 🙏🌺🌺 भगवान शिव भी जिनकी कृपा से सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं, जिनकी अनुकम्पा से उनका आधा शरीर देवी का हुआ, उ��� माँ सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने के लिए हम निरंतर प्रयत्नशील रहें।
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4 months
जो दूसरों को दु:खी जानकर अपने उचित और प्रिय वचनों से ढाढस बँधाता है वही मानवरूप में विष्णु हैं, क्योंकि वह परोपकार में लीन है। जो दूसरे के दु:ख को देखकर दु:खी होता है और सुखी देखकर स्वयं सुखी होता है वह मनुष्य नहीं प्रत्युत मनुष्यरूपधारी संसार के पालक हरि हैं। -नारदीय पुराण
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1 year
"चन्द्रमा के किरणसमूहों सा भासमान कैलासनामक एक पर्वतों का राजा है। वह अपनी ऊँचाई से आकाश को भी पार कर गया है और वह है - गौरीरमण भगवान श्रीशंकर का एक मन्दिर। वहाँ पर चन्द्रकला धारण किये हुए स्वयंप्रकाशमान भगवान महादेवजी रहते हैं।" (श्री योगवासिष्ठ)
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6 months
ब्रह्माजी का अपने पुत्री के अवलोकन से चतुर्मुख होने का आख्यान पुराणों में मिलता है। किन्तु एक अत्यंत रोचक आख्यान बृहद्ध��्मपुराण में भी मिलता है। अन्य पुराणों में ब्रह्माजी ने प्रकृति के मनोहर रूप तथा सौन्दर्य को देखा था, किन्तु बृहद्धर्मपुराण में प्रकृति के वीभत्स शवरूप को देखा।
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5 months
हास्यं लक्ष्मीसूचकं हि हसितं सौख्यदायकं। -महर्षि वाल्मीकि हँसी लक्ष्मीसूचक है, हँसी सबको सुख देने वाली वस्तु है और हँसी मंगलमयी मानी गई है। हँसी से बढ़कर कोई चीज है ही नहीं। जिस घर में मुस्काती हुई नारी रहती है, वह घर देवमंदिर के समान पवित्र होता है और +
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5 months
जिस तरह मिट्टी की सेना मिट्टीमय है उसी तरह भगवान शिव का यह सारा संसार शिवमय है। जय देव महादेव शिव शंकर शम्भो।🙏
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4 months
आदिदेव जगन्नाथ जय शंकर भावन। जय कौस्तुभदीप्ताङ्ग जय भस्मविराजित॥ 🙏
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3 months
जो लोग अपने कर्तव्य से विमुख हैं, वे अवश्य ही नरक में जाते हैं और अपने कर्म का फल भोगते हैं। उनका जन्म भारतवर्ष में नहीं होता है। पुण्यभूमि भारतवर्ष में ही शुभ-अशुभ कर्मों की उत्पत्ति होती है, अन्यत्र नहीं। दूसरी जगह लोग केवल कर्मों का फल भोगते हैं। -देवीभागवत पुराण
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9 months
हिंदुओं को चिढ़ाने और नीचा दिखाने के लिए मंदिरों के हिस्सों को अपने ढाँचे बनाने में प्रयोग करने वाले आक्रान्ताओं को यह नहीं पता था कि एक दिन उनका अस्तित्व समाप्त होगा और यही करतूत उनके तथाकथित वंशजों के गले की हड्डी बन जाएगी।
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5 months
स्त्री जैसे गुण वाले (सद्गुण या दुर्गुण) पति के साथ विधिवत विवाहित होती है, वह समुद्र में मिली हुई नदी के समान वैसे ही गुणवाली हो जाती है। -मनुस्मृति
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2 years
"देह देही नाम नामी कृष्णे नाहि भेद"। 🙏
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10 months
"हे हरे! भूतल पर जो आपके अवतार होंगे, वे सबके रक्षक और मेरे भक्त होंगे। मैं उनका दर्शन करूँगा। वे मेरे वर से सदा प्रसन्न रहेंगे।" - श्रीशिव (शिव महापुराण)
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7 months
अपने धन-सामर्थ्य के अनुसार भगवती की पूजा करे किन्तु देवी के यज्ञ में धन की कृपणता न करे। नवरात्रि के पहले दिन किया गया पूजन मनुष्यों का मनोरथ पूर्ण करने वाला होता है। -देवी भागवत
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5 months
सुपात्र व्यक्ति (पुरुष) का सुपात्र (स्त्री) से सम्बन्ध हो जाए - इसमें उसके पुण्य का महान फल समझना चाहिए। -श्रीवराहपुराणम्
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7 months
जो मनुष्य जानबूझकर शास्त्रों की आज्ञा का पालन न करके शास्त्र के प्रतिकूल, अमर्यादित कार्य करता है और उसे प्रेम का नाम देकर दोषमुक्त होना चाहता है, वह अवश्य ही पतित होता है। जानबूझकर शास्त्र विहित कर्मों का त्याग करना प्रेम का आदर्श नहीं है, मोह है, उच्छृंखलता और स्वेच्छाचार है।
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2 years
जानामि राघवं विष्णुं लक्ष्मीं जानामि जानकीम्। (रावण, आध्यात्म रामायण) मैं राम को साक्षात विष्णु और जानकी को साक्षात भगवती लक्ष्मी जानता हूँ, और यह जानकर ही कि "राम के हाथ से मरकर उनका परमपद प्राप्त करूंगा" मैं जनकनन्दिनी को बलपूर्वक तपोवन से ले आया।
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9 months
जैसे इस लोक में सत्कर्म करने से सुख और दुष्कर्म करने से दु:ख होता है, उसी तरह परलोक में भी होता है। इस विश्वास को आस्तिकता कहते हैं। -शिव महापुराण
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1 year
पुराणों पर आक्षेप वे लोग लगाते हैं, जिन्होंने पुराणों को कभी पढ़ा ही नहीं। पुराणों को पढ़ते समय जो भी प्रश्न आपके मन में उठते हैं, उन सभी प्रश्नों का उत्तर पुराणों में ही दिया है। धैर्य से व श्रद्धा से पूरा पढ़ें, शास्त्र निर्मल मन से पढ़े जाने पर ही अपने अर्थ प्रकाशित करते हैं।
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4 months
यदि कोई मित्र, संतान, भवन, क्षेत्र, धन, अन्न, अपने कल्याण का नाश चाहता हो तो वह सर्वदा ईर्ष्या करे। -बृहन्नारदीय पुराण
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5 months
जब सभी देवगण नृसिंहभगवान के क्रोध को शान्त न कर सके तो ब्रह्माजी ने प्रह्लादजी को भेजा। भगवान के परम प्रेमी प्रह्लाद धीरे से भगवान के पास जाकर हाथ जोड़ पृथ्वी पर साष्टांग लेट गए। भगवान ने देखा नन्हा सा बालक चरणों के पास पड़ा हुआ है, उनका हृदय दया से भर आया।
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7 months
आधिभौतिक दु:ख को दया के द्वारा, आधिदैविक दु:ख को समाधि द्वारा, आध्यात्मिक दु:ख को प्राणायाम आदि योग के प्रभाव से तथा निद्रा को सात्त्विक आहार आदि के द्वारा दूर करे। -भागवत महापुराण
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4 months
अर्थ-काम परायण संसार अर्थ-काम के सम्पादन में तो अपना सम्पूर्ण पुरुषार्थ लगा देता है, परंतु धर्म और मोक्ष को दैव या प्रारब्ध पर छोड़ देता है।
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1 year
“व्रजनं व्याप्तिरित्युक्त्या व्यापनाद् व्रज उच्यते”। (श्रीमद्भागवतमाहात्म्यम् ) 'व्रज' शब्द का अर्थ है व्याप्ति। इस वृद्धवचन के अनुसार व्यापक होने के कारण ही इस भूमि का नाम 'व्रज' पड़ा है।
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8 months
यह शरीर शिवालय है, इसमें सच्चिदानन्द आप हो, बुद्धिरूप पार्वती जी हैं, आपके सहचर प्राण हैं, और जो भी विषय आनंद के लिए हम खाते पीते, देखते, सुनते, बोलते, स्पर्श करते हैं, यही आपकी पूजा है, निद्रा समाधि है, चलना आपकी प्रदक्षिणा है, वचन आपकी स्तुति हैं,
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1 year
निर्गुण, निराकार, निर्विकार सच्चिदानन्द ब्रह्म अशरीरी होने पर भी अपनी अचिन्त्य शक्ति से दिव्य शरीर से भी सम्पन्न हो जाते हैं। जैसे काष्ठगत अव्यक्त अग्नि निराकार रहता हुआ भी मन्थन आदि के द्वारा उसे अभिव्यक्त किया जाता है, जो तब दाहक, प्रकाशक कहलाता है।
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2 years
माया जीव को ढँकती है, हम जो गुणमय जीव हैं सब माया के अधीन हैं। माया के दो कार्य हैं - सत्य का आवरण और मिथ्या को प्रदर्शित करना। योगमाया भी आवरण करती है, किन्तु यह शक्ति माया से भिन्न कैसे है?
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4 months
सुंदर भोज्य पदार्थ भी उपलब्ध हो और भोजन की शक्ति भी हो। रूपवती स्त्री भी हो और सहवास करने की क्षमता भी हो तथा धन-वैभव भी हो और दान करने की सामर्थ्य भी हो- ये अल्प तप के फल नहीं हैं। -गरुड़ पुराण
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8 months
स्त्री का गुरु उसका पति होता है। पति कैसा भी हो तो भी गुरु है? नहीं, शास्त्र कहते हैं कि "यदि पति पतित नहीं है" (पतिरेव गुरु: स्त्रीणां यदि स्यात् पतितो न च), तब वही स्त्री का गुरु है।
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4 months
नमः शिवायै गङ्गायै शिवदायै नमो नमः। 🙏
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