अच्छी थी, पगडंडी अपनी।*
*सड़कों पर तो, जाम बहुत है।।*
फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो।*
*सबके पास, काम बहुत है।।*नहीं जरूरत, बूढ़ों की अब।*
*हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है।।*
*उजड़ गए, सब बाग बगीचे।*
*दो गमलों में, शान बहुत है।।*मट्ठा, दही, नहीं खाते हैं।*
*कहते हैं, ज़ुकाम बहुत है।।*