Prabhu Ram Siddhu
2 months
नदी से पानी नहीं, रेत चाहिए.
पहाड़ से ओषधि नहीं, पत्थर चाहिए.
वृक्ष से छाया नहीं, लकड़ी चाहिए.
खेत से अन्न नहीं, नक़द फ़सल चाहिए.
उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,
काट दिए वृक्ष, तहस-नहस कर दी मेड़ें;
बूँद-बूँद बिक रही जल की।
साँस लेने हवा भी बिकेगी,
कल्पना करें उस कल की! 🙏