कल पासपोर्ट के पुलिस वेरिफ़िकेशन के लिए पुलिस वाले आए। मैंने उन्हें कुछ देने की पेशकश की तो बोले कि आपका घर किताबों से भरा है। मुझे कुछ किताबें दे दीजिए। मैं इतना ख़ुश हुआ कि मैंने उनको आठ किताबें दे दी। आख़िर पहली बार किसी पुलिस वाले ने किताब माँगी थी।
आज मैं अपने पुराने सैलून में बाल कटवाने गया था। वहाँ सब एनडीटीवी देख रहे थे। मैंने कहा कि और किसी चैनल पर भी न्यूज देखो तो क्या चल रहा है। बाल काटने वाले ना कहा कि सर अब कोई और चैनल देखा भी नहीं जाता।
@umashankarsingh
कल दो घटनाएँ एक साथ हुई। एक तुक्कड़ फ़िल्मी गीतकार ने तुलसीदास की कविता की बेहूदा पैरोडी लिखी। दूसरी घटना गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ का इंटरनेशनल बुकर प्राइज़ की शॉर्ट लिस्ट में आना रहा। हिंदी की दुनिया में ज़्यादा हल्ला उस तुक्कड़ कवि की पैरोडी की रही बुकर की नहीं!
हिंदुस्तान टाइम्स समूह की पत्रिकाएँ नंदन और कादम्बिनी बंद हो गई। बचपन में मैं नंदन का शौक़ीन था और पिताजी कादम्बिनी ज़रूर पढ़ते थे। उनको मेरे लेखक होने की उपलब्धि उस दिन समझ आई जिस दिन उन्होंने मेरी किताब की समीक्षा कादम्बिनी में पढ़ी। लगता है जैसे जीवन का एक हिस्सा खत्म हो गया।
आज फ़ास्ट बोलर मुनाफ़ पटेल के बारे में पढ़ा कि कोरोना से लड़ाई में अपने गाँव में जागरूकता फैलाने के लिए वे किस तरह अप्रैल से काम कर रहे हैं। उनके बारे में कहीं कुछ नहीं छपता।
चार दिन बाद दिल्ली में चुनाव है और आज टाइम्स नाऊ के सर्वे में
@AamAadmiParty
को 54-60 सीटें दी गई हैं। लगता है दिल्ली कि जनता नफ़रत को प्यार से हराने का फ़ैसला कर चुकी है।
मध्य प्रदेश चुनाव के बाद के रुझानों से लग रहा है कि कांग्रेस को डेढ़ सौ से भी अधिक सीटें मिल सकती हैं। सबसे बुरा लगता है ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र तोमर के साथ होने वाला है। मुझे लगता है कि भाजपा नेतृत्व विधानसभा चुनाव के बहाने इनको निपटाना भी चाहता था।
हिंदी वालों की मुश्किल यह है कि वे चाहते हैं कि उनकी भाषा में विश्वस्तरीय पुस्तकें आएं। लेकिन कीमत 100 रुपये से अधिक न हो। इतना सस्ता तो पॉप कॉर्न भी नहीं आता!
आजकल नितिन गडकरी को सुनना अच्छा लगने लगा है। बहुत उदारता से बात करते हैं। एनडीटीवी पर बातचीत में उन्होंने इंदिरा गांधी की 1971 की जीत का हवाला दिया जब तमाम विरोधियों को हराकर इंदिरा जी ने अपनी पार्टी को बहुमत दिलवाया था। भाजपा के मरुस्थल में वे मरूद्यान की तरह लगते हैं।
आज टाइम्स ऑफ़ इंडिया में पढ़ा कि यूपी में हिंदी में लाखों बच्चों के फेल होने का कारण यह है कि वे हिंदी में अंग्रेज़ी शब्द लिखने लगे हैं। कोन्फ़िडेंस, डिजिज, गुड, रूल जैसे शब्द उनको याद थे लेकिन इनके हिंदी वे भूल चुके थे।
क्या अंग्रेज़ी हिंदी को विस्थापित कर देगी?
धीरे धीरे हिंदी अख़बार इतवार के दिन साहित्य शून्य होते जा रहे हैं। एक जमाने तक
@omthanvi
जी ने जनसत्ता को साहित्यिक बहसों के केंद्र में बनाए रखा था। अब वह भी साहित्य शून्य हो गया है। हिंदी अख़बार राजनीतिक खबरों और मनोरंजन में सिमट चुके हैं। विचार ग़ायब हो रहा है।
आगरा में हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री को सम्मानित किए जाने के कार्यक्रम को वापस लिए जाने की खबर अंग्रेज़ी अख़बारों में प्रमुखता से छपी है। हिंदी अख़बारों में छपी भी है तो पीछे के पन्ने पर। यह हिंदी पत्रकारिता का वर्तमान है।
राष्ट्रहित, प्रदेशहित, जनहित एवं समाज हित की भावनाओं के साथ आज से नए अध्याय का प्रारंभ करने जा रहा हूँ। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी के नेतृत्व में चल रहे राष्ट्र सेवा के भगीरथ कार्य में छोटा सा सिपाही बनकर काम करूँगा।
यह गणेश शंकर विद्यार्थी को याद करने का समय है। आज पत्रकार समाज में वैमनस्य फैलाने में लगे हैं।जबकि गणेश शंकर विद्यार्थी ने साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए अपनी जान दे दी। सादर नमन
आज रवीश कुमार का पूरा व्याख्यान सुना। अंत में जब उन्होंने जय हिंद के साथ अपना व्याख्यान समाप्त किया तो उनकी आवाज़ में आवाज़ मिलाकर जय हिंद कहने का मन हुआ। प्रायोजित राष्ट्रवाद के दौर में सच्चा राष्ट्रवादी वही है जो जनजन की आवाज़ बन गया है।
कभी कभी मुझे लगता है कि प्रेमचंद साहित्य के गांधी हैं। जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है उनकी व्याप्ति बढ़ती जा रही है। न गांधी को मिटाया जा सकता है न प्रेमचंद को। दोनों भारत के अमर प्रतीक हैं।
हिंदी पट्टी में चाकर वृत्ति प्रधान है। आप अगर स्वतंत्र रूप से कोई कामकाज करते हैं, फ्रीलांसिंग करते हैं तो लोग आपको खाली समझते हैं। हमारे यहाँ नौकरी करने को ही काम समझा जाता है। स्वतंत्र होने को नहीं।
जिस उपन्यास का फ़्रेंच अनुवाद भी एक प्रमुख पुरस्कार की सूची में रहा, अंग्रेज़ी अनुवाद इंटरनेशनल बुकर की शॉर्ट लिस्ट में है, उस उपन्यास को उसकी मूल भाषा हिंदी में क्या मिला? यह घटना अपने आप में यह बताती है कि हिंदी में बौद्धिकता का कितना क्षरण हुआ है!
दस पंद्रह साल पहले जिस एकाग्रता के साथ किताबें पढ़ लेता था अब उस एकाग्रता को पाना मुश्किल होता है। सोशल मीडिया, फ़ोन एक अच्छी किताब की रीडिंग को बार-बार बाधित करते हैं।
आज सुबह टहलते हुए एक आदमी को फ़ोन पर बात करते सुना- ‘घर में दो सिलेंडर ऑक्सिजन रखवा लिए हैं। चिंता की कोई बात नहीं।’
ऑक्सिजन की क़िल्लत का एक कारण यह भी है। लोग स्वस्थ हैं लेकिन ऑक्सिजन ख़रीद कर जमा कर रहे हैं।
'पत्रकारिता में अगर एक तथ्य भी गलत हो तो वह पूरे लेख को संदिग्ध बना देता है. इसके विपरीत उपन्यास में अगर एक तथ्य भी सही हो तो वह पूरी कृति को वैध बना देता है.'
-गैब्रियल गार्सिया मार्केज़
(जयंती पर नमन)
देश में ग़ज़ब शिक्षा विरोधी माहौल बनता जा रहा है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों को बूढ़े विद्यार्थी कहा जा रहा है। यह बात लोगों के अंदर बिठाई जा रही है कि शिक्षा वहीं तक होनी चाहिए जिससे नौकरी मिल जाए। बाक़ी पढ़ाई लिखाई करके लोग अर्बन नक्सल बन जाते हैं।
बोधगया में उमड़ा जनसैलाब।
बिहार इस बार अच्छी शिक्षा, उत्कृष्ट स्वास्थ्य, प्रभावशाली विधि व्यवस्था, चहुँमुखी विकास, महिला सशक्तिकरण, नौकरी और रोजगार के लिए मतदान करेगा।
हार देख कुछ लोग अब मुद्दों को भटकाने का असफल प्रयास करेंगे लेकिन युवाओं-महिलाओं को नौकरी और सुरक्षा चाहिए।
गीतांजलि श्री की जगह अगर किसी भारतीय अंग्रेज़ी लेखक की किताब बुकर अवार्ड के लिए शॉर्टलिस्ट होती तो आज ट्विटर पर ट्रेंड कर रही होती। यही सच्चाई है। हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिल जाए तब भी अपने देश में उसका दर्जा वही का वही रहना है!
आज इंदौर में राहत इंदौरी साहब से मुलाकात हुई। मित्र चित्रकार सीरज सक्सेना की चित्र प्रदर्शनी का उन्होंने उदघाटन किया। आज पता चला कि राहत साहब बड़े अच्छे चित्रकार भी हैं।
@rahatindori
अनुवाद एजेंसियाँ अनुवादकों को रोबोट समझती हैं। कल एक एजेंसी से फ़ोन आया, बोले साठ पेज है कल शाम तक दे देना। मैंने कहा, भाई गूगल से करवा लो। उसके अलावा एक दिन में साठ पेज अनुवाद कोई और नहीं कर सकता। आपके पैसे भी बच जाएँगे।
उन्होंने कहा- आप जैसे बहुत मिल जाएँगे! :)
केशवदास तुलसीदास के समकालीन थे. तुलसी ने 'रामचरितमानस' तो उन्होंने 'रामचंद्रिका' लिखी। बादशाह अकबर ने केशवदास को दरबार में बुलाकर पूछा मेरे राज्य का सर्वश्रेष्ठ कवि कौन है? केशवदास- मैं. बादशाह बोले कि सब कहते हैं तुलसीदास और तुम अपना नाम ले रहे? केशवदास - वह भक्त है मैं कवि!
मेरे एक मित्र ने ध्यान दिलाया कि पत्रकार मित्र लोग नीरव मोदी-नरेन्द्र मोदी का अनुप्रास तो मिला रहे हैं लेकिन मुकेश अम्बानी-विपुल अम्बानी के अनुप्रास को मिलाने से कतरा रहे हैं.
कुछ मतलब समझ में आया क्या? :)
जो बात सबसे दुखद है वह यह कि मुज़फ़्फ़रपुर में मर रहे बच्चों को लेकर देश के अलग अलग हिस्सों में लोग दुखी हैं, सोशल मीडिया पर आक्रोश दिखा रहे हैं लेकिन मुज़फ़्फ़रपुर में कहीं कोई प्रतिरोध नहीं है। यह डराने वाली बात है। बिहार का एक ऐतिहासिक शहर मर रहा है।
बर्तिल फाक की लिखी 'दि फ़ॉर्गोटेन गांधी' फ़िरोज़ गांधी की जीवनी है जिसमें फ़िरोज़ गांधी की तमाम बुराइयों की चर्चा है लेकिन यह कहीं नहीं है कि उन्होंने गांधी उपनाम बाद में अपनाया, कि वे खान थे। बहुत शोधपूर्ण किताब है। लेकिन संघी लोग ज्ञान के नहीं अज्ञान के पुजारी हैं।
आज से 73 साल पहले आज के दिन महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। इन 73 सालों में उनको मिटाने की बार बार कोशिश हुई लेकिन वे उतनी ही मज़बूती से उभरे। विद्वान पुरूषोत्तम अग्रवाल
@puru_ag
ने सही ही कहा है- मज़बूती का नाम महात्मा गांधी।
आपके जीवन के दो सबसे महत्वपूर्ण दिन होते हैं, एक वह दिन जब आप पैदा होते हैं और दूसर वह जिस दिन आपको यह पता चल जाता है कि आप क्यों पैदा हुए हैं’- मार्क ट्वेन।
मुज़फ़्फ़रपुर से एक युवा ने फोन पर बताया कि आपको लोग मुज़फ़्फ़रपुर का लेखक नहीं मानते, 'कोठागोई' लिखने के बावजूद, जो वहाँ की संगीत परम्परा पर है। मैंने कहा कि मुझे सीतामढ़ी के लोग भी अपना लेखक नहीं मानते और मुझे दिल्ली का लेखक भी नहीं माना जाता।
आख़िर कोई लेखक कहाँ का होता है?
हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर के बारे में लिखा है कि वे ज्ञान के हाथी पर सवार थे। आज कल कतिपय विद्वान ज्ञान के कुत्ते पर सवार होकर सब पर भौंकते रहते हैं!
#कंगना_को_दिलजीत_पेल_रहा_है ट्विटर पर नंबर वन पर ट्रेंड कर रहा है । क़रीब चालीस हज़ार ट्वीट हुए हैं।सोच रहा हूँ कि क्या हिंदी इसी तरह की भाषा में नंबर वन बन पाती है।
मेरे घर के पास तीन सब्ज़ी वाले आते थे कल दो आए, आज एक। आज जो आया वह पूरा मोदीभक्त है। लेकिन जब मैं सब्ज़ी लेने गया तो बोला, 'सर मोदी जी को अब थोड़ा झुक जाना चाहिए। हमारे रोज़गार पर असर पड़ रहा है।' पुरानी कहावत याद आ गई- पीठ पर लात मारो पेट पर नहीं!
मन करता है एक महीने के लिए पहाड़ पर जाकर कोई किताब लिखूँ। लेकिन हिंदी का लेखक हूँ, अगर फुल टाइम लेखक बनने का रिस्क लिया तो सड़क पर आ जाऊँगा। हिंदी में इसी कारण तात्कालिक लेखन अधिक और सार्वकालिक लेखन कम होता है क्योंकि वह पहले कमाता है फिर लेखन करता है। लिखकर कमाने की नहीं सोचता।
बहुत तटस्थ होकर देखें तो नरेंद्र मोदी ने प्रेस कोनफ़्रेंस में चुप रहकर जितनी चर्चा बटोर ली राहुल गांधी बोलकर नहीं बटोर पाए। मीडिया का सारा ध्यान मोदी पर लग गया। राहुल जी ने क्या कहा किसी को याद नहीं मोदी का चुप रहना याद रह गया। मीडिया वार में तो मोदी जीत गए।
बेटी ने एक नया ज्ञान दिया कि नौंवी कक्षा में जब स्कूल में फ़्रेंच और हिंदी में एक भाषा चुनने का मौक़ा आता है तो अधिकतर बच्चे इसलिए फ़्रेंच चुन लेते हैं क्योंकि हिंदी बहुत डिफिकल्ट भाषा है। राहत की बात यह रही कि उसने हिंदी भाषा चुनने का फ़ैसला लिया क्योंकि पापा से पढ़ लेगी।
दस साल बाद मेरी कहानियों का संग्रह आया है- ‘एक्स वाई का जेड’। दस साल पहले मेरा संग्रह प्रकाशित किया था मित्र लेखक गिरिराज किराड़ू के प्रतिलिपि बुक्स ने। इस संग्रह को प्रकाशित किया है मित्र लेखक पंकज सुबीर ने शिवना प्रकाशन से।
@subeerin
नंदकिशोर आचार्य को हिंदी में साहित्य अकादेमी पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है। वे आज भी उतने ही सक्रिय हैं जितने 50 साल पहले थे। प्रचार प्रसार से दूर वे लेखन में लगे रहते हैं। यह उनकी साधना को मिला पुरस्कार है।
हिंदी में राजकमल और वाणी प्रकाशन के स्टॉल पर बहुत भीड़ है लेकिन असली भीड़ पेंगुइन इंगलिश में दिखती है। लोग अंदर जाने के लिए लाइन लगाकर खड़े दिखे। हर साल मेले में इस दुःख को समझना पड़ता है कि अंग्रेज़ी की किताबें हिंदी की किताबों से कई गुना अधिक बिकती हैं।
कुछ किताबें पढ़ी नहीं जाती इतिहास की तरह आपके दिलो-दिमाग़ पर दर्ज हो जाती हैं। विनोद कापड़ी
@vinodkapri
की किताब ‘1232 km: कोरोना काल में एक असम्भव सफ़र’ एक ऐसी त्रासदी की बयानी है जिसे न याद रखा जाता है न भुलाया जाता है!
मुझे साँप से
डर नहीं लगता
अंधेरे से डर नहीं लगता
काँटों से
बुझती लालटेन से
डर नहीं लगता
पर सज्जनो,
मुझे क्षमा करना
मुझे सज्जनता से
डर लगता है!
-केदारनाथ सिंह
दिल्ली में अब सुबह ठंड जैसा महसूस होने लगा है। सुबह सुबह चिड़ियों का कलरव कम हो रहा है। कौवे तो बिलकुल नहीं बोलते। गिलहरी अब सुबह सुबह नहीं, धूप निकलने पर आती है। बदलाव की हल्की बयार बहने लगी है।