दूसरे को मार कर खाइये ये विकृति हैं ,
वो अपना खाये मैं अपना खाऊ ये प्रकृति हैं,
लेकिन वो खा सके इसकी चिन्ता करके मैं खाऊ
ये संस्कृति हैं ।
- डॉ॰ कुमार विश्वास
@DrKumarVishwas
कामवासना के समान कोई रोग नहीं। मोह से बड़ा कोई शत्रु नहीं। क्रोध जैसी कोई आग नहीं और ज्ञान से बढ़कर इस संसार में सुख देने वाली कोई वस्तु नहीं।
- आचार्य चाणक्य
कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, इस देश में राजा कौरव हो या पांडव। जनता तो बेचारी द्रौपदी है। कौरव राजा हुए तो चीर हरण के काम आएगी और पांडव राजा हुए तो जुए में हार दी जाएगी।
- सुरेंद्र शर्मा
धर्म से बड़ा देश होता है। मातृभूमि होती है। सिख धर्म में बाल कटवाना वर्जित है, लेकिन अपने देश के लिये मैं बाल तो क्या गर्दन भी कटवा सकता हूँ।
- शहीद भगत सिंह
सुनिए महादेवी वर्मा बता रही हैं कि निराला के अंतिम क्षणों में भी उन्हें ओढ़ने के लिए एक साफ चादर तक नहीं मिली। और आज हिंदी के एक प्रतिष्ठित लेखक विनोद कुमार शुक्ल महीने के कुछ 1k पर जी रहे हैं। ये क्रम कब टूटेगा? शुक्ल जी के लिए न्याय माँगेंगे? आवाज उठायेंगे? या आज भी चुप रहेंगे?
मैं तुम्हें सलाह दे रहा हूँ तो इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि मैं तुमसे ज़्यादा जानता हूँ, बस इसका मतलब इतना ही है कि मैंने ज़िंदगी में तुमसे ज़्यादा ग़लतियाँ की है।
- अज्ञात
एक बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने धन के नष्ट होने को, मानसिक दुख को, घर के दोषों को, किसी व्यक्ति द्वारा ठगे जाने और अपना अपमान होने की बात किसी को भी न बताए।
- चाणक्य
पुरुष परेशान दिखे तो उसे अकेला छोड़ दो, उस वक़्त उसे बात करना नहीं पसंद होता , वो अपनी परेशानी का हल खुद ढूँढ निकालना चाहता है। ठीक इसके विपरीत महिला जब परेशान होती है तो वो चाहती है कि कोई उसकी परेशानी सुने, उससे बात करे।
- डॉ. अबरार मुल्तानी