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एस. कुमार
@kumarsambhav80
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इतिहास विषय पर UGC NET QUALIFIED बेरोजगार विधार्थी। फतेहपुर वाले।
Joined May 2021
अमेरिका,यूरोप और गल्फ नेशन की कमाई का इतना आकर्षण क्यों है ? भारत की कमाई का क्यों नहीं ? दोस्तों मैं एस.कुमार @kumarsambhav80 आप लोगों ने टॉपिक देख लिया है तो आज इसी पर चर्चा करते हैं। दोस्तों अभी हाल ही में अमेरिका ने 104 अवैध भारतीय प्रवासियों को जानवरों की तरह बेड़ियों में बांधकर अपमानित करके अपने सैन्य विमान से भारत वापस भेज दिया है।इसके पहले भी कई बार अवैध प्रवासियों को भारत भेजा गया है लेकिन ना तो उन पर हथकड़ी लगाई गई थी और ना ही उन पर बेड़ियां लगाई गई थी।आखिर क्या कारण है कि यह लोग भारत छोड़कर अमेरिका गए ? इसका सीधा सा उत्तर है रोजगार या कमाई। हम अमेरिका,यूरोप और गल्फ कंट्री सहित भारत की कमाई पर तुलनात्मक चर्चा करेंगे। देखते हैं इन देशों में क्या स्थिति है। गल्फ कंट्री में/कुवैत में कमाई दोस्तों कुवैत में लगभग 10 लाख भारतीय मजदूर काम करते हैं।कुवैत में एक साधारण भारतीय मजदूर को 1260 कुवैती दिनार प्रति माह वेतन के रूप में मिलता है।एक कुवैती दिनार भारत के लगभग 284 रुपये के बराबर होता है।इस प्रकार यदि हम 1260 कुवैती दिनार को भारतीय मुद्रा में बदलें तो यह प्रति माह 357840 रूपये हो जाता है।इसी को वर्ष में बदल दे तो यह 4119888 रुपये हो जाता है। मतलब भारत से कुवैत गया हुआ एक मजदूर एक वर्ष मे 4119888 रुपये कमा रहा है। यदि कुवैत में कोई मजदूर अपनी वार्षिक आय का 40% अपने रहन-सहन में खर्च कर दे तो बचत के रूप में उसके पास एक वर्ष में 2431932 रुपये होंगे इस प्रकार एक साधारण भारतीय मजदूर कुवैत में वर्ष में 2431932 रुपये की बचत कर लेता है। अमेरिका/संयुक्त राज्य अमेरिका में कमाई:- दोस्तों यदि हम अमेरिका की बात करें तो अमेरिका में 817000 भारतीय मजदूर कार्यरत हैं। इन्हें वेतन के रूप में 7.25 डॉलर प्रति घंटे मिलते है। यदि कोई मजदूर 8 घंटे कार्य करें तो उसे 58 डॉलर मिलता है।यदि इसे माह में बदल दें तो यह 1740 डॉलर प्रति माह हो जाता है। अमेरिका का 1 डॉलर भारत के 87 रुपये के बराबर है। इस प्रकार यदि हम 1740 डॉलर को भारतीय रुपये में बदल दे तो यह 151380 रुपये प्रति माह हो जाता है। यदि पूरे वर्ष में बदल दें तो 1816560 रुपये प्रतिवर्ष एक साधारण मजदूर कमाता है। यदि वह इसका 40% अपने रहन-सहन पर खर्च कर दे तो वर्ष में 1089936 रुपये की बचत करता है। इंग्लैंड/यूरोप में कमाई:- दोस्तों इंग्लैंड में 920000 भारतीय मजदूर कार्यरत हैं। यहां काम के बदले 12.60 पाउंड प्रति घंटे मिलता है। यदि एक मजदूर 8 घंटे काम कर ले तो उसे 100.8 पाउंड मिलेंगे। इस प्रकार एक महीने काम करने पर उसे 3024 पाउंड मिलेंगे। इंग्लैंड का एक पाउंड भारत के 109 रूपये के बराबर होता है। इस प्रकार वह एक माह में 329550 रूपये कमा रहा है। यदि इस वर्ष में बदलें तो ब्रिटेन में काम कर रहा है एक साधारण मजदूर एक साल में 3954600 रूपये कमा रहा है। यदि वह मजदूर अपनी वार्षिक आय का 40% अपने रहन-सहन में खर्च कर दे तो वर्ष में वह 2772760 रुपये की बचत करेगा। भारत में कमाई:- दोस्तों मैंने भारत के हरियाणा राज्य के गुरुग्राम के उद्योग विहार में साधारण मजदूर के रूप में काम किया है। वहां मुझे 336 रूपये प्रतिदिन के हिसाब से मिल रहा था। इस प्रकार मुझे माह में 10080 रुपये मिले। यदि मैं इसे पूरे वर्ष में बदल दूं तो मुझे एक साल में 120960 रूपये मिलेंगे। यह मेरी पूरे वर्ष की कमाई है यदि मैं इसका 40% अपने रहन-सहन पर खर्च कर दूं तो मेरी वार्षिक बचत 72560 रूपये होगी। दोस्तों यह हमने तुलनात्मक अध्ययन किया गल्फ कंट्री, यूरोप,अमेरिका और भारत में कमाई का अंतर।संक्षेप में एक सूची बनाता हूं जो चारो जगह पर वार्षिक कमाई की हैं:- गल्फ कंट्री/कुवैत=4119888 रुपये प्रतिवर्ष अमेरिका =1816560 रूपये प्रतिवर्ष यूरोप/इंग्लैंड=3954600 रूपये प्रति वर्ष भारत में=120960 रूपये प्रति वर्ष (आंकड़े वार्षिक है व भारतीय रूपये में हैं) ऊपर दिए गए आंकड़ों से जाहिर है कि हमारी वार्षिक आय अन्य जगहों की अपेक्षा बहुत कम है।संभवत जितना इंग्लैंड का कोई मजदूर 10 दिन में काम लेता है वह हमारे पूरे वर्ष की कमाई होती है।ऐसी स्थिति में गल्फ कंट्री, अमेरिका और यूरोप की कमाई के प्रति आकर्षण होना लाजमी है। दोस्तों एक और वजह है जिसकी वजह से भारतीय भारत छोड़कर गल्फ कंट्री अमेरिका या यूरोप जाना चाहते हैं।यह वजह है भारत में बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य व अच्छी जीवन शैली की कमी है। हमारा समाज जातिवाद, छुआछूत , ऊंच-नीच मेंबंटा हुआ है जबकि इन देशों में ऐसा नहीं है। मेरे विचारों को पढ़ने के लिए धन्यवाद। आपका एस.कुमार @kumarsambhav80 नोट - तस्वीरें गूगल और सोशल मीडिया से ली गई हैं।
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देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम: 1878/वर्नाकुलर प्रेस एक्ट। दोस्तों मैं एस कुमार @kumarsambhav80 अभी 2 दिन पूर्व उत्तर प्रदेश में एक न्यूज़ रिपोर्टर को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने एक घोटाले पर रिपोर्टिंग की थी। हालांकि स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा गया की रिपोर्टर को इसकी रिपोर्टिंग की वजह से गिरफ्तार किया गया है अपितु दूसरे आरोप में गिरफ्तार किए गया हैं। यह स्वतंत्र भारत है फिलहाल बात करते हैं परतंत्र भारत की। क्या था वर्नाकुलर प्रेस एक्ट ? वर्नाकुलर प्रेस एक्ट:1878 1857 के विद्रोह के पश्चात देसी समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार की आलोचना कर रहे थे। इस समय लॉर्ड लिटन भारत का वायसराय था, जिसकी साम्राज्यवादी नीति और अकाल में हुई लाखों लोगों की मृत्यु की ओर से बेपरवाही एवं 1877 के दिल्ली दरबार के आयोजन ने लोगों के असंतोष को चरम पर पहुंचा दिया था, जिसकी अभिव्यक्ति समाचार पत्रों के माध्यम से हुई।भारतीय समाचार पत्रों में उसकी जमकर आलोचना होने लगी। इन आलोचनाओं से परेशान होकर लॉर्ड लिटन ने समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1878 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जारी किया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि मजिस्ट्रेट भारतीय पत्रों के संपादकों से या तो वॉन्ड लिखवा ले कि वे आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे या छपने से पूर्व निरीक्षण के लिए प्रस्तुत प्रमाण पेश करें। मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा और इसके बाद अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा। इस अधिनियम को मुंह बंद करने वाला ( गैंगिंग ऐक्ट) अधिनियम कहा गया। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसे आकाश से होने वाला वज्रपात कहा। इस अधिनियम का सबसे घिनौना पक्ष यह था कि इसने देशी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के पत्रों में भेदभाव किया। इसके तहत सोम प्रकाश (ईश्वर चंद्र विद्यासागर) भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर, आदि पत्रों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए केवल पायनियर ने ही इस अधिनियम का समर्थन किया था। यह अधिनियम अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल था। भारतीय समाचार पत्रों की भाषा व प्रवृत्ति दोनों ही हल्की हो गई। भारत के नए सचिव लॉर्ड क्रेनबुक ने इस अधिनियम के पूर्व-पत्रेक्षण की धारा का विरोध किया। लॉर्ड लिटन के बाद उदारवादी सरकार ने लॉर्ड रिपन को भारत का वायसराय नियुक्त किया जिसने 1882 में इस वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया। अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी भारत में जिंदा है। उस लॉर्ड लिटन की विचारधारा से प्रभावित होकर आज भी भारत में सरकार मीडिया को को अपने कब्जे में करने का प्रयास करती हैं ,और वर्तमान में तो काफी हद तक सरकार सफल रही है कि मीडिया सरकार की भाषा बोले। वर्तमान मीडिया सिर्फ उतने मुद्दे उठाता है जितने उसे सरकार के द्वारा दिए जाते हैं। आज के भारत में तो मीडिया का तात्पर्य गोदी मीडिया से लिया जाता है।देश का मेन स्ट्रीम मीडिया सरकार के तलवे चाटने में लगा हुआ है। यदि भारत सरकार कह दे कि लोगों को जहर खाना चाहिए तो देश के जाने माने ईमानदार स्वतंत्र न्यूज एंकर में शामिल सुधीर चौधरी अंजना ओम कश्यप और रुबिका लियाकत जैसे पत्रकार जहर खाने के फायदे गिनाना शुरू कर देंगे। पढ़ने के लिए धन्यवाद। @kumarsambhav80 नोट- पहली तस्वीर गूगल से ली गई है दूसरी सोशल मीडिया से ली गई है तीसरी देश के सबसे ईमानदार न्यूज एंकर सुधीर चौधरी की है।
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@rajgarh_mamta1 बस एक सवाल क्या आपने भी वह वैक्सीन लगवाई थी जिसके प्रमाण पत्र में यमराज की फोटो लगी थी ?
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@rajgarh_mamta1 मैं प्रधानमंत्री नहीं बन सकता हूं क्योंकि मैंने एंटायर पॉलीटिकल साइंस से परास्नातक नहीं किया है,लेकिन मैंने इतिहास से परास्नातक किया है इसलिए मुझे दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया जाना। एक बात और मेरी तो डिग्री भी फर्जी नहीं है।
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@rajgarh_mamta1 मैं तो कहता हूं छोड़े सारे झंझट और मुझको बना दे दिल्ली का मुख्यमंत्री। बात खत्म
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देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम: 1878/वर्नाकुलर प्रेस एक्ट। दोस्तों मैं एस कुमार @kumarsambhav80 अभी 2 दिन पूर्व उत्तर प्रदेश में एक न्यूज़ रिपोर्टर को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने एक घोटाले पर रिपोर्टिंग की थी। हालांकि स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा गया की रिपोर्टर को इसकी रिपोर्टिंग की वजह से गिरफ्तार किया गया है अपितु दूसरे आरोप में गिरफ्तार किए गया हैं। यह स्वतंत्र भारत है फिलहाल बात करते हैं परतंत्र भारत की। क्या था वर्नाकुलर प्रेस एक्ट ? वर्नाकुलर प्रेस एक्ट:1878 1857 के विद्रोह के पश्चात देसी समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार की आलोचना कर रहे थे। इस समय लॉर्ड लिटन भारत का वायसराय था, जिसकी साम्राज्यवादी नीति और अकाल में हुई लाखों लोगों की मृत्यु की ओर से बेपरवाही एवं 1877 के दिल्ली दरबार के आयोजन ने लोगों के असंतोष को चरम पर पहुंचा दिया था, जिसकी अभिव्यक्ति समाचार पत्रों के माध्यम से हुई।भारतीय समाचार पत्रों में उसकी जमकर आलोचना होने लगी। इन आलोचनाओं से परेशान होकर लॉर्ड लिटन ने समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1878 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जारी किया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि मजिस्ट्रेट भारतीय पत्रों के संपादकों से या तो वॉन्ड लिखवा ले कि वे आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे या छपने से पूर्व निरीक्षण के लिए प्रस्तुत प्रमाण पेश करें। मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा और इसके बाद अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा। इस अधिनियम को मुंह बंद करने वाला ( गैंगिंग ऐक्ट) अधिनियम कहा गया। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसे आकाश से होने वाला वज्रपात कहा। इस अधिनियम का सबसे घिनौना पक्ष यह था कि इसने देशी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के पत्रों में भेदभाव किया। इसके तहत सोम प्रकाश (ईश्वर चंद्र विद्यासागर) भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर, आदि पत्रों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए केवल पायनियर ने ही इस अधिनियम का समर्थन किया था। यह अधिनियम अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल था। भारतीय समाचार पत्रों की भाषा व प्रवृत्ति दोनों ही हल्की हो गई। भारत के नए सचिव लॉर्ड क्रेनबुक ने इस अधिनियम के पूर्व-पत्रेक्षण की धारा का विरोध किया। लॉर्ड लिटन के बाद उदारवादी सरकार ने लॉर्ड रिपन को भारत का वायसराय नियुक्त किया जिसने 1882 में इस वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया। अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी भारत में जिंदा है। उस लॉर्ड लिटन की विचारधारा से प्रभावित होकर आज भी भारत में सरकार मीडिया को को अपने कब्जे में करने का प्रयास करती हैं ,और वर्तमान में तो काफी हद तक सरकार सफल रही है कि मीडिया सरकार की भाषा बोले। वर्तमान मीडिया सिर्फ उतने मुद्दे उठाता है जितने उसे सरकार के द्वारा दिए जाते हैं। आज के भारत में तो मीडिया का तात्पर्य गोदी मीडिया से लिया जाता है।देश का मेन स्ट्रीम मीडिया सरकार के तलवे चाटने में लगा हुआ है। यदि भारत सरकार कह दे कि लोगों को जहर खाना चाहिए तो देश के जाने माने ईमानदार स्वतंत्र न्यूज एंकर में शामिल सुधीर चौधरी अंजना ओम कश्यप और रुबिका लियाकत जैसे पत्रकार जहर खाने के फायदे गिनाना शुरू कर देंगे। पढ़ने के लिए धन्यवाद। @kumarsambhav80 नोट- पहली तस्वीर गूगल से ली गई है दूसरी सोशल मीडिया से ली गई है तीसरी देश के सबसे ईमानदार न्यूज एंकर सुधीर चौधरी की है।
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RT @rajgarh_mamta1: मोहन सिंह बिष्ट हो सकते है दिल्ली के अगले CM 5 बार विधायक जब 3 सीट थी बीजेपी की तब भी जीत कर आए थे काफ़ी सीनियर है !
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देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम: 1878/वर्नाकुलर प्रेस एक्ट। दोस्तों मैं एस कुमार @kumarsambhav80 अभी 2 दिन पूर्व उत्तर प्रदेश में एक न्यूज़ रिपोर्टर को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने एक घोटाले पर रिपोर्टिंग की थी। हालांकि स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा गया की रिपोर्टर को इसकी रिपोर्टिंग की वजह से गिरफ्तार किया गया है अपितु दूसरे आरोप में गिरफ्तार किए गया हैं। यह स्वतंत्र भारत है फिलहाल बात करते हैं परतंत्र भारत की। क्या था वर्नाकुलर प्रेस एक्ट ? वर्नाकुलर प्रेस एक्ट:1878 1857 के विद्रोह के पश्चात देसी समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार की आलोचना कर रहे थे। इस समय लॉर्ड लिटन भारत का वायसराय था, जिसकी साम्राज्यवादी नीति और अकाल में हुई लाखों लोगों की मृत्यु की ओर से बेपरवाही एवं 1877 के दिल्ली दरबार के आयोजन ने लोगों के असंतोष को चरम पर पहुंचा दिया था, जिसकी अभिव्यक्ति समाचार पत्रों के माध्यम से हुई।भारतीय समाचार पत्रों में उसकी जमकर आलोचना होने लगी। इन आलोचनाओं से परेशान होकर लॉर्ड लिटन ने समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1878 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जारी किया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि मजिस्ट्रेट भारतीय पत्रों के संपादकों से या तो वॉन्ड लिखवा ले कि वे आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे या छपने से पूर्व निरीक्षण के लिए प्रस्तुत प्रमाण पेश करें। मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा और इसके बाद अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा। इस अधिनियम को मुंह बंद करने वाला ( गैंगिंग ऐक्ट) अधिनियम कहा गया। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसे आकाश से होने वाला वज्रपात कहा। इस अधिनियम का सबसे घिनौना पक्ष यह था कि इसने देशी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के पत्रों में भेदभाव किया। इसके तहत सोम प्रकाश (ईश्वर चंद्र विद्यासागर) भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर, आदि पत्रों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए केवल पायनियर ने ही इस अधिनियम का समर्थन किया था। यह अधिनियम अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल था। भारतीय समाचार पत्रों की भाषा व प्रवृत्ति दोनों ही हल्की हो गई। भारत के नए सचिव लॉर्ड क्रेनबुक ने इस अधिनियम के पूर्व-पत्रेक्षण की धारा का विरोध किया। लॉर्ड लिटन के बाद उदारवादी सरकार ने लॉर्ड रिपन को भारत का वायसराय नियुक्त किया जिसने 1882 में इस वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया। अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी भारत में जिंदा है। उस लॉर्ड लिटन की विचारधारा से प्रभावित होकर आज भी भारत में सरकार मीडिया को को अपने कब्जे में करने का प्रयास करती हैं ,और वर्तमान में तो काफी हद तक सरकार सफल रही है कि मीडिया सरकार की भाषा बोले। वर्तमान मीडिया सिर्फ उतने मुद्दे उठाता है जितने उसे सरकार के द्वारा दिए जाते हैं। आज के भारत में तो मीडिया का तात्पर्य गोदी मीडिया से लिया जाता है।देश का मेन स्ट्रीम मीडिया सरकार के तलवे चाटने में लगा हुआ है। यदि भारत सरकार कह दे कि लोगों को जहर खाना चाहिए तो देश के जाने माने ईमानदार स्वतंत्र न्यूज एंकर में शामिल सुधीर चौधरी अंजना ओम कश्यप और रुबिका लियाकत जैसे पत्रकार जहर खाने के फायदे गिनाना शुरू कर देंगे। पढ़ने के लिए धन्यवाद। @kumarsambhav80 नोट- पहली तस्वीर गूगल से ली गई है दूसरी सोशल मीडिया से ली गई है तीसरी देश के सबसे ईमानदार न्यूज एंकर सुधीर चौधरी की है।
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RT @rajgarh_mamta1: मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, महारास्ट्र और अब दिल्ली यह सब राज्यो मे हारी है कांग्रेस क्या किसी ने भी जिम्मेदारी…
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देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम: 1878/वर्नाकुलर प्रेस एक्ट। दोस्तों मैं एस कुमार @kumarsambhav80 अभी 2 दिन पूर्व उत्तर प्रदेश में एक न्यूज़ रिपोर्टर को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने एक घोटाले पर रिपोर्टिंग की थी। हालांकि स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा गया की रिपोर्टर को इसकी रिपोर्टिंग की वजह से गिरफ्तार किया गया है अपितु दूसरे आरोप में गिरफ्तार किए गया हैं। यह स्वतंत्र भारत है फिलहाल बात करते हैं परतंत्र भारत की। क्या था वर्नाकुलर प्रेस एक्ट ? वर्नाकुलर प्रेस एक्ट:1878 1857 के विद्रोह के पश्चात देसी समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार की आलोचना कर रहे थे। इस समय लॉर्ड लिटन भारत का वायसराय था, जिसकी साम्राज्यवादी नीति और अकाल में हुई लाखों लोगों की मृत्यु की ओर से बेपरवाही एवं 1877 के दिल्ली दरबार के आयोजन ने लोगों के असंतोष को चरम पर पहुंचा दिया था, जिसकी अभिव्यक्ति समाचार पत्रों के माध्यम से हुई।भारतीय समाचार पत्रों में उसकी जमकर आलोचना होने लगी। इन आलोचनाओं से परेशान होकर लॉर्ड लिटन ने समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1878 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जारी किया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि मजिस्ट्रेट भारतीय पत्रों के संपादकों से या तो वॉन्ड लिखवा ले कि वे आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे या छपने से पूर्व निरीक्षण के लिए प्रस्तुत प्रमाण पेश करें। मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा और इसके बाद अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा। इस अधिनियम को मुंह बंद करने वाला ( गैंगिंग ऐक्ट) अधिनियम कहा गया। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसे आकाश से होने वाला वज्रपात कहा। इस अधिनियम का सबसे घिनौना पक्ष यह था कि इसने देशी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के पत्रों में भेदभाव किया। इसके तहत सोम प्रकाश (ईश्वर चंद्र विद्यासागर) भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर, आदि पत्रों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए केवल पायनियर ने ही इस अधिनियम का समर्थन किया था। यह अधिनियम अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल था। भारतीय समाचार पत्रों की भाषा व प्रवृत्ति दोनों ही हल्की हो गई। भारत के नए सचिव लॉर्ड क्रेनबुक ने इस अधिनियम के पूर्व-पत्रेक्षण की धारा का विरोध किया। लॉर्ड लिटन के बाद उदारवादी सरकार ने लॉर्ड रिपन को भारत का वायसराय नियुक्त किया जिसने 1882 में इस वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया। अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी भारत में जिंदा है। उस लॉर्ड लिटन की विचारधारा से प्रभावित होकर आज भी भारत में सरकार मीडिया को को अपने कब्जे में करने का प्रयास करती हैं ,और वर्तमान में तो काफी हद तक सरकार सफल रही है कि मीडिया सरकार की भाषा बोले। वर्तमान मीडिया सिर्फ उतने मुद्दे उठाता है जितने उसे सरकार के द्वारा दिए जाते हैं। आज के भारत में तो मीडिया का तात्पर्य गोदी मीडिया से लिया जाता है।देश का मेन स्ट्रीम मीडिया सरकार के तलवे चाटने में लगा हुआ है। यदि भारत सरकार कह दे कि लोगों को जहर खाना चाहिए तो देश के जाने माने ईमानदार स्वतंत्र न्यूज एंकर में शामिल सुधीर चौधरी अंजना ओम कश्यप और रुबिका लियाकत जैसे पत्रकार जहर खाने के फायदे गिनाना शुरू कर देंगे। पढ़ने के लिए धन्यवाद। @kumarsambhav80 नोट- पहली तस्वीर गूगल से ली गई है दूसरी सोशल मीडिया से ली गई है तीसरी देश के सबसे ईमानदार न्यूज एंकर सुधीर चौधरी की है।
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देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम: 1878/वर्नाकुलर प्रेस एक्ट। दोस्तों मैं एस कुमार @kumarsambhav80 अभी 2 दिन पूर्व उत्तर प्रदेश में एक न्यूज़ रिपोर्टर को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने एक घोटाले पर रिपोर्टिंग की थी। हालांकि स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा गया की रिपोर्टर को इसकी रिपोर्टिंग की वजह से गिरफ्तार किया गया है अपितु दूसरे आरोप में गिरफ्तार किए गया हैं। यह स्वतंत्र भारत है फिलहाल बात करते हैं परतंत्र भारत की। क्या था वर्नाकुलर प्रेस एक्ट ? वर्नाकुलर प्रेस एक्ट:1878 1857 के विद्रोह के पश्चात देसी समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार की आलोचना कर रहे थे। इस समय लॉर्ड लिटन भारत का वायसराय था, जिसकी साम्राज्यवादी नीति और अकाल में हुई लाखों लोगों की मृत्यु की ओर से बेपरवाही एवं 1877 के दिल्ली दरबार के आयोजन ने लोगों के असंतोष को चरम पर पहुंचा दिया था, जिसकी अभिव्यक्ति समाचार पत्रों के माध्यम से हुई।भारतीय समाचार पत्रों में उसकी जमकर आलोचना होने लगी। इन आलोचनाओं से परेशान होकर लॉर्ड लिटन ने समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1878 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जारी किया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि मजिस्ट्रेट भारतीय पत्रों के संपादकों से या तो वॉन्ड लिखवा ले कि वे आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे या छपने से पूर्व निरीक्षण के लिए प्रस्तुत प्रमाण पेश करें। मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा और इसके बाद अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा। इस अधिनियम को मुंह बंद करने वाला ( गैंगिंग ऐक्ट) अधिनियम कहा गया। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसे आकाश से होने वाला वज्रपात कहा। इस अधिनियम का सबसे घिनौना पक्ष यह था कि इसने देशी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के पत्रों में भेदभाव किया। इसके तहत सोम प्रकाश (ईश्वर चंद्र विद्यासागर) भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर, आदि पत्रों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए केवल पायनियर ने ही इस अधिनियम का समर्थन किया था। यह अधिनियम अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल था। भारतीय समाचार पत्रों की भाषा व प्रवृत्ति दोनों ही हल्की हो गई। भारत के नए सचिव लॉर्ड क्रेनबुक ��े इस अधिनियम के पूर्व-पत्रेक्षण की धारा का विरोध किया। लॉर्ड लिटन के बाद उदारवादी सरकार ने लॉर्ड रिपन को भारत का वायसराय नियुक्त किया जिसने 1882 में इस वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया। अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी भारत में जिंदा है। उस लॉर्ड लिटन की विचारधारा से प्रभावित होकर आज भी भारत में सरकार मीडिया को को अपने कब्जे में करने का प्रयास करती हैं ,और वर्तमान में तो काफी हद तक सरकार सफल रही है कि मीडिया सरकार की भाषा बोले। वर्तमान मीडिया सिर्फ उतने मुद्दे उठाता है जितने उसे सरकार के द्वारा दिए जाते हैं। आज के भारत में तो मीडिया का तात्पर्य गोदी मीडिया से लिया जाता है।देश का मेन स्ट्रीम मीडिया सरकार के तलवे चाटने में लगा हुआ है। यदि भारत सरकार कह दे कि लोगों को जहर खाना चाहिए तो देश के जाने माने ईमानदार स्वतंत्र न्यूज एंकर में शामिल सुधीर चौधरी अंजना ओम कश्यप और रुबिका लियाकत जैसे पत्रकार जहर खाने के फायदे गिनाना शुरू कर देंगे। पढ़ने के लिए धन्यवाद। @kumarsambhav80 नोट- पहली तस्वीर गूगल से ली गई है दूसरी सोशल मीडिया से ली गई है तीसरी देश के सबसे ईमानदार न्यूज एंकर सुधीर चौधरी की है।
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देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम: 1878/वर्नाकुलर प्रेस एक्ट। दोस्तों मैं एस कुमार @kumarsambhav80 अभी 2 दिन पूर्व उत्तर प्रदेश में एक न्यूज़ रिपोर्टर को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने एक घोटाले पर रिपोर्टिंग की थी। हालांकि स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा गया की रिपोर्टर को इसकी रिपोर्टिंग की वजह से गिरफ्तार किया गया है अपितु दूसरे आरोप में गिरफ्तार किए गया हैं। यह स्वतंत्र भारत है फिलहाल बात करते हैं परतंत्र भारत की। क्या था वर्नाकुलर प्रेस एक्ट ? वर्नाकुलर प्रेस एक्ट:1878 1857 के विद्रोह के पश्चात देसी समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार की आलोचना कर रहे थे। इस समय लॉर्ड लिटन भारत का वायसराय था, जिसकी साम्राज्यवादी नीति और अकाल में हुई लाखों लोगों की मृत्यु की ओर से बेपरवाही एवं 1877 के दिल्ली दरबार के आयोजन ने लोगों के असंतोष को चरम पर पहुंचा दिया था, जिसकी अभिव्यक्ति समाचार पत्रों के माध्यम से हुई।भारतीय समाचार पत्रों में उसकी जमकर आलोचना होने लगी। इन आलोचनाओं से परेशान होकर लॉर्ड लिटन ने समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1878 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जारी किया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि मजिस्ट्रेट भारतीय पत्रों के संपादकों से या तो वॉन्ड लिखवा ले कि वे आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे या छपने से पूर्व निरीक्षण के लिए प्रस्तुत प्रमाण पेश करें। मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा और इसके बाद अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा। इस अधिनियम को मुंह बंद करने वाला ( गैंगिंग ऐक्ट) अधिनियम कहा गया। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसे आकाश से होने वाला वज्रपात कहा। इस अधिनियम का सबसे घिनौना पक्ष यह था कि इसने देशी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के पत्रों में भेदभाव किया। इसके तहत सोम प्रकाश (ईश्वर चंद्र विद्यासागर) भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर, आदि पत्रों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए केवल पायनियर ने ही इस अधिनियम का समर्थन किया था। यह अधिनियम अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल था। भारतीय समाचार पत्रों की भाषा व प्रवृत्ति दोनों ही हल्की हो गई। भारत के नए सचिव लॉर्ड क्रेनबुक ने इस अधिनियम के पूर्व-पत्रेक्षण की धारा का विरोध किया। लॉर्ड लिटन के बाद उदारवादी सरकार ने लॉर्ड रिपन को भारत का वायसराय नियुक्त किया जिसने 1882 में इस वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया। अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी भारत में जिंदा है। उस लॉर्ड लिटन की विचारधारा से प्रभावित होकर आज भी भारत में सरकार मीडिया को को अपने कब्जे में करने का प्रयास करती हैं ,और वर्तमान में तो काफी हद तक सरकार सफल रही है कि मीडिया सरकार की भाषा बोले। वर्तमान मीडिया सिर्फ उतने मुद्दे उठाता है जितने उसे सरकार के द्वारा दिए जाते हैं। आज के भारत में तो मीडिया का तात्पर्य गोदी मीडिया से लिया जाता है।देश का मेन स्ट्रीम मीडिया सरकार के तलवे चाटने में लगा हुआ है। यदि भारत सरकार कह दे कि लोगों को जहर खाना चाहिए तो देश के जाने माने ईमानदार स्वतंत्र न्यूज एंकर में शामिल सुधीर चौधरी अंजना ओम कश्यप और रुबिका लियाकत जैसे पत्रकार जहर खाने के फायदे गिनाना शुरू कर देंगे। पढ़ने के लिए धन्यवाद। @kumarsambhav80 नोट- पहली तस्वीर गूगल से ली गई है दूसरी सोशल मीडिया से ली गई है तीसरी देश के सबसे ईमानदार न्यूज एंकर सुधीर चौधरी की है।
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@JaysinghYadavSP क्या आपने भी वह वैक्सीन लगवाई थी जिसके प्रमाण पत्र में यमराज की फोटो लगी थी ?
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देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम: 1878/वर्नाकुलर प्रेस एक्ट। दोस्तों मैं एस कुमार @kumarsambhav80 अभी 2 दिन पूर्व उत्तर प्रदेश में एक न्यूज़ रिपोर्टर को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने एक घोटाले पर रिपोर्टिंग की थी। हालांकि स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा गया की रिपोर्टर को इसकी रिपोर्टिंग की वजह से गिरफ्तार किया गया है अपितु दूसरे आरोप में गिरफ्तार किए गया हैं। यह स्वतंत्र भारत है फिलहाल बात करते हैं परतंत्र भारत की। क्या था वर्नाकुलर प्रेस एक्ट ? वर्नाकुलर प्रेस एक्ट:1878 1857 के विद्रोह के पश्चात देसी समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार की आलोचना कर रहे थे। इस समय लॉर्ड लिटन भारत का वायसराय था, जिसकी साम्राज्यवादी नीति और अकाल में हुई लाखों लोगों की मृत्यु की ओर से बेपरवाही एवं 1877 के दिल्ली दरबार के आयोजन ने लोगों के असंतोष को चरम पर पहुंचा दिया था, जिसकी अभिव्यक्ति समाचार पत्रों के माध्यम से हुई।भारतीय समाचार पत्रों में उसकी जमकर आलोचना होने लगी। इन आलोचनाओं से परेशान होकर लॉर्ड लिटन ने समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1878 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जारी किया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि मजिस्ट्रेट भारतीय पत्रों के संपादकों से या तो वॉन्ड लिखवा ले कि वे आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे या छपने से पूर्व निरीक्षण के लिए प्रस्तुत प्रमाण पेश करें। मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा और इसके बाद अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा। इस अधिनियम को मुंह बंद करने वाला ( गैंगिंग ऐक्ट) अधिनियम कहा गया। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसे आकाश से होने वाला वज्रपात कहा। इस अधिनियम का सबसे घिनौना पक्ष यह था कि इसने देशी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के पत्रों में भेदभाव किया। इसके तहत सोम प्रकाश (ईश्वर चंद्र विद्यासागर) भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर, आदि पत्रों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए केवल पायनियर ने ही इस अधिनियम का समर्थन किया था। यह अधिनियम अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल था। भारतीय समाचार पत्रों की भाषा व प्रवृत्ति दोनों ही हल्की हो गई। भारत के नए सचिव लॉर्ड क्रेनबुक ने इस अधिनियम के पूर्व-पत्रेक्षण की धारा का विरोध किया। लॉर्ड लिटन के बाद उदारवादी सरकार ने लॉर्ड रिपन को भारत का वायसराय नियुक्त किया जिसने 1882 में इस वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया। अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी भारत में जिंदा है। उस लॉर्ड लिटन की विचारधारा से प्रभावित होकर आज भी भारत में सरकार मीडिया को को अपने कब्जे में करने का प्रयास करती हैं ,और वर्तमान में तो काफी हद तक सरकार सफल रही है कि मीडिया सरकार की भाषा बोले। वर्तमान मीडिया सिर्फ उतने मुद्दे उठाता है जितने उसे सरकार के द्वारा दिए जाते हैं। आज के भारत में तो मीडिया का तात्पर्य गोदी मीडिया से लिया जाता है।देश का मेन स्ट्रीम मीडिया सरकार के तलवे चाटने में लगा हुआ है। यदि भारत सरकार कह दे कि लोगों को जहर खाना चाहिए तो देश के जाने माने ईमानदार स्वतंत्र न्यूज एंकर में शामिल सुधीर चौधरी अंजना ओम कश्यप और रुबिका लियाकत जैसे पत्रकार जहर खाने के फायदे गिनाना शुरू कर देंगे। पढ़ने के लिए धन्यवाद। @kumarsambhav80 नोट- पहली तस्वीर गूगल से ली गई है दूसरी सोशल मीडिया से ली गई है तीसरी देश के सबसे ईमानदार न्यूज एंकर सुधीर चौधरी की है।
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देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम: 1878/वर्नाकुलर प्रेस एक्ट। दोस्तों मैं एस कुमार @kumarsambhav80 अभी 2 दिन पूर्व उत्तर प्रदेश में एक न्यूज़ रिपोर्टर को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उसने एक घोटाले पर रिपोर्टिंग की थी। हालांकि स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा गया की रिपोर्टर को इसकी रिपोर्टिंग की वजह से गिरफ्तार किया गया है अपितु दूसरे आरोप में गिरफ्तार किए गया हैं। यह स्वतंत्र भारत है फिलहाल बात करते हैं परतंत्र भारत की। क्या था वर्नाकुलर प्रेस एक्ट ? वर्नाकुलर प्रेस एक्ट:1878 1857 के विद्रोह के पश्चात देसी समाचार पत्रों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, और अब वे अधिक मुखर होकर सरकार की आलोचना कर रहे थे। इस समय लॉर्ड लिटन भारत का वायसराय था, जिसकी साम्राज्यवादी नीति और अकाल में हुई लाखों लोगों की मृत्यु की ओर से बेपरवाही एवं 1877 के दिल्ली दरबार के आयोजन ने लोगों के असंतोष को चरम पर पहुंचा दिया था, जिसकी अभिव्यक्ति समाचार पत्रों के माध्यम से हुई।भारतीय समाचार पत्रों में उसकी जमकर आलोचना होने लगी। इन आलोचनाओं से परेशान होकर लॉर्ड लिटन ने समाचार पत्रों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 1878 का वर्नाकुलर प्रेस एक्ट जारी किया। इस एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि मजिस्ट्रेट भारतीय पत्रों के संपादकों से या तो वॉन्ड लिखवा ले कि वे आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित नहीं करेंगे या छपने से पूर्व निरीक्षण के लिए प्रस्तुत प्रमाण पेश करें। मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा और इसके बाद अपील करने का कोई अधिकार नहीं होगा। इस अधिनियम को मुंह बंद करने वाला ( गैंगिंग ऐक्ट) अधिनियम कहा गया। सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने इसे आकाश से होने वाला वज्रपात कहा। इस अधिनियम का सबसे घिनौना पक्ष यह था कि इसने देशी भाषा तथा अंग्रेजी भाषा के पत्रों में भेदभाव किया। इसके तहत सोम प्रकाश (ईश्वर चंद्र विद्यासागर) भारत मिहिर, ढाका प्रकाश, सहचर, आदि पत्रों के विरुद्ध मामले दर्ज किए गए केवल पायनियर ने ही इस अधिनियम का समर्थन किया था। यह अधिनियम अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल था। भारतीय समाचार पत्रों की भाषा व प्रवृत्ति दोनों ही हल्की हो गई। भारत के नए सचिव लॉर्ड क्रेनबुक ने इस अधिनियम के पूर्व-पत्रेक्षण की धारा का विरोध किया। लॉर्ड लिटन के बाद उदारवादी सरकार ने लॉर्ड रिपन को भारत का वायसराय नियुक्त किया जिसने 1882 में इस वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया। अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी विचारधारा आज भी भारत में जिंदा है। उस लॉर्ड लिटन की विचारधारा से प्रभावित होकर आज भी भारत में सरकार मीडिया को को अपने कब्जे में करने का प्रयास करती हैं ,और वर्तमान में तो काफी हद तक सरकार सफल रही है कि मीडिया सरकार की भाषा बोले। वर्तमान मीडिया सिर्फ उतने मुद्दे उठाता है जितने उसे सरकार के द्वारा दिए जाते हैं। आज के भारत में तो मीडिया का तात्पर्य गोदी मीडिया से लिया जाता है।देश का मेन स्ट्रीम मीडिया सरकार के तलवे चाटने में लगा हुआ है। यदि भारत सरकार कह दे कि लोगों को जहर खाना चाहिए तो देश के जाने माने ईमानदार स्वतंत्र न्यूज एंकर में शामिल सुधीर चौधरी अंजना ओम कश्यप और रुबिका लियाकत जैसे पत्रकार जहर खाने के फायदे गिनाना शुरू कर देंगे। पढ़ने के लिए धन्यवाद। @kumarsambhav80 नोट- पहली तस्वीर गूगल से ली गई है दूसरी सोशल मीडिया से ली गई है तीसरी देश के सबसे ईमानदार न्यूज एंकर सुधीर चौधरी की है।
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