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ISLAM MOHAMMAD BHARTIYA
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Aaj didi k account se ek fraud ne lic agent bankar 28000 Rs thag liye @cyberabadpolice @Uppolice @CMOfficeUP @myogiadityanath Kindly provide urgent support Kindly block all money from UPI address 6367619578@ptaxis
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देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी के निधन से गहरा दुख हुआ। उन्होंने अप��े नेतृत्व और आर्थिक सुधारों से भारत की अर्थव्यवस��था को नई दिशा दी। उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। कुदरत उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। #ManmohanSingh
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@garrywalia_ बाला साहब ठाकरे ने नितिन गडकरी जी मुँह पर बोला थे ये चड्डी छाप है इसको गोमूत्र और गोबर चाहिए...👇👇👇
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आपको मनीष ज़ी की ये शानदार पोस्ट पढ़नी चाहिए
ये फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा है।फ़ारसी में लिखी इबारत कहती है.. ईसा ने कहा- दुनिया एक पुल है, इसके पार जाओ। पर इसमें घर ना बनाना। जो एक पल की आशा करता है, वह अनंत की आशा भी करता है। ये दुनिया तो बस एक क्षण है, इसे प्रार्थना में खर्च करो। ●● 13 की उम्र में जब बाप की मौत की खबर मिली, अकबर, पंजाब के कलानौर में था। वहीं किसी खेत में उसका राज्याभिषेक हुआ। दुश्मन चढ़े आ रहे थे। डी फैक्टो रूलर बैरमखां ने युद्ध किया, एलायंस बनाये, साम्राज्य स्थिर किया। जल्द ही अकबर ने सत्ता खुद सम्हाली।साम्राज्य बढाया, बाप के खोये इलाके हासिल किए। अब वो शक्तिशाली बादशाह था। पर दुखी था। सन्तान न थी। कहते है कई कोस पैदल चलकर वह सीकरी गया, सलीम चिश्ती के पास.. उस दरवेश ने दुआ क़ी। अकबर को बेटा हुआ, त��� नाम सलीम रखा गया। फिर उसी सीकरी गांव में, अकबर ने अपनी राजधानी बनाई। यह नया शहर, फतेहपुर सीकरी था। ●● हिंदुस्तान ने तमाम बादशाह देखे है। खास तौर पर 11वी सदी के बाद दिल्ली में बैठे सारे सुल्तानों और बादशाहो के बीच, अकबर अलहदा किंग था। आप उसे राजर्षि क�� सकते हैं। एक सुन्नी, जो शिया स्कॉलर्स के बीच बैठता। एक मुस्लिम, जो हिन्दू धर्मग्रंथों को सुनता। जो सीकरी के पंचमहल की छत पर सुबह सूर्य को प्रणाम करता, और तिलक लगाकर दरबार की ओर प्रस्थान करता। जिसने विधवाओ, अपाहिजों और ब्राह्मणों को जजिया से मुक्त किया। जिसने हिन्दू राजाओ को जीता, हराया पर गुलाम नहीं, दोस्त और रिश्तेदार बनाया। अपनी शामे इबादतखाने में गुजारी। जिसकी रुचि सुफिज्म और हिंद��इज्म की ओर रही। जिसने यूरोप के राजाओं को क्रिश्चियन पादरी भेजने को खत लिखे, कि वह उस धर्म को भी समझ सके। उन सारे धर्मो का निचोड़, भाईचारा और प्रेम और भक्ति को मानते हुए, एक नया दीन बनाने की कोशिश की। उसने एक हाथ मे धर्म, दूसरे में राजनीति रखी। लेकिन दोनों में मिलावट से परहेज किया। ●● उसने एक आइ�� (कॉन्स्टिट्यूशन) तजवीज की। जिसे आप आइन-ए-अकबरी में देखते हैं। याने वो अपने राज्य को सुगठित नियमो, कायदों के तहत चलते देखना चाहता था। जो दरबार मे बाइज्जत तानसेन और बैजू को बुलाकर सुनना चाहता है। जिसका मसखरा सलाहका�� बीरबल उसे छका देता है। जिसके नवरत्न अबुल फजल और फैजी श्रीकृष्ण की शान में फ़ारसी में कलाम लिखते है। गीता का अनुवाद करते हैं। जिसके टोडरमल ने जमीन की नाप और लगान की जो व्यवस्था ��ी, वो कमोबेश आज तक चल रहा है। ●● हिंदुस्तान में दो दौर, इतिहास के स्वर्णयुग हुए। एक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य.. दूसरा अकबर.. जिसके दौर में कहा जाता है कि दुनिया की GDP का 25% भारत मे होता। गर्वीले आज जिस सोने की चिड़िया की बात करते हैं, वो वही दौर है, जिसे हिस्ट्री मुगलकाल कहती हैं। ●● पर अकबर सबसे मजबूत, सबसे मैजेस्टिक मुगल तो न��ी था। विस्तार, धन, दौलत, वकार और रसूख हिंदुस्तान में किसी बादशाह का था.. तो वो औरँगजेब था। धर्मपरायण, ईमानदार, मेहनती, सफल, जिंदा पीर तो औरंगजेब था। पर उसे कभी महान नही माना गया। स्वर्णयुग तो अकबर का दौर है। ●● राजनीति और धर्म का साथ हर युग मे रहा।हर बादशाह, हर रूलर ने इन्हें अपने बिलीफ और अपने आदर्शों पर कसने की कोशिश की। लेकिन याद वही किये गए, जिन्होंने प्रजा की धार्मिक सांस्कृतिक धारा को तलवार के जोर पर गंदा करने से परहेज किया। जिसने सबको आजादी दी, इज्जत दी, प्रजा प्रजा में भेद न किया। जिसने अपनी अतुलित ताकत पर अनुशासन रखा। तो याद रखा जाने वाला वही सुलेमान है, सॉलोमन है, एलेग्जेंडर, अशोक, अकबर है। अपनी सोच और दुराग्रह थोपने वाले अखनाटन और औरंगजेब की लिगेसी तो कबकी नष्ट हो गयी। ●● अकबर की धारा लम्बी चली। उसने केवल अपने दोस्तों पर ही असर न डाला, बल्कि दुश्मन ��ी उसकी नीति पर चले। वो हकीम खां सूर के बूते हल्दीघाटी लड़ने वाले राणा प्रताप हो। या मुगलों को गहरी चोट देने वाले शिवाजी। जिनकी नेवी, फौज, तोपची, और खुद की सुरक्षा तक मुसलमानो के हाथ थी। क्या कहें, कि शिवाजी के पिता दो भाई थे- शाहजी, और शरीफजी। इसलिए कि वे सूफी संत शाहशरीफ के आशीर्वाद से जन्मे थे। ●● यह मिली जुली तहजीब 1857 तक अजस्र बहती है। फिर अंग्रेज हमे दो धड़ो को बांटकर, राज करने की योजना बनाते है। पहले दिल बंटता है, फिर देश.. हम सबक सीखते है। तो फिर से स्वर्णयुग आता है। 60 सालो का शन्तिकाल। राख से यह देश खड़ा होता है। नीव बनती है, हम दुनिया पर छाने को तैयार हैं.. कि वही दुर्भाग्य, वही बांटने और राज करने की नीति। ●● दिल फिर बंट रहे है, तो देश भी बंटेगा। क्योकि बादशाह अपनी बुलन्दी के जोश में भूल गया है- ये दुनिया ��क पुल है, इसके पार जाना है। पर वो.. यहां घर बनाने की कोशिश में है।
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सत्य या अर्धसत्य??
निपूतों के गैंग को आपके बच्चे चाहिए.. मोहन भागवत का कहना है कि तीन बच्चे पैदा करने की जरूरत है। वरना समाज खतरे में आ जायेगा। ●● हां, खतरे तो बहुतेरे हैं इस समाज पर। बेरोजगारी, घटती डिस्पोजेबल इनकम, महंगी रोटी दाल, दवा, कपड़े, घर और कर्ज। लेकिन सबसे बड़ा खतरा इस समाज पर कोई है, तो वो मि. भागवत का संगठन है जिसने ऑक्टोपस की तरह, समाज का गला चौतरफा दबा रखा है। याने प्रशासन, राजनीति, संस्कृति की कोमलता, ��सकी पवित्रता नष्ट करने वाला, जिस चीज को छुए, उसे भस्म कर देने वाला। युवा, आबाल वृद्ध के मानस में जहर भरने वाला हजार मुख का दैत्य, भागवत जिसके शीर्षमुख हैं। ●● विश्वास नही। आसपास देखिए। हर वो चीज जिस पर दस साल पहले आपको सामान्य भरोसा था। आज कैसा देखते हैं उसे?? टीवी अखबार ?? जज ज्यूडिशियरी?? पुलिस प्रशासन ?? यूपीएससी, पीएससी?? नीट आईआईटी रिजल्ट? सर्वे?? एग्जिट पोल?? ठेके? ट्रेनों की समय सारणी?? श��क्षको, सेलेब्रिटियों की सीख?? मामाजी का फारवर्ड??अपना भविष्य?? पढ़ा गया इतिहास?? एनसीईआरटी की किताब? चुनाव आयोग?सुप्रीम कोर्ट? बड़े बड़े जज?? कौन सी चीज है, जो अधोगामी,पथभ्रष्ट नही हो गयी। ●● दस साल पहले आप इनके निर्णयों और काम और भरोसा करते थे। आज इनमे से किस पर भरोसा है? दूसरो की छोड़िए, क्या खुद ��र भरोसा है?? तब हमें सम्विधान, और अपने जनता होने की ताकत भरोसा था। मोमबत्ती लेकर बैठे पांच हजार लोग सरकार हिला लेते थे। जंतर मंतर पर 10 दिन तख्ती लेकर बैठा शख्स भी सत्ता के कंगूरों तक अपनी बात पहुँचा लेता था। सत्ता लचीली थी, झुकती थी। ज्ञापन लेती थी। कम से कम सुनवाई का उपक्रम करती थी। समाधान का आश्वासन तो देती थी। ●● राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, स्पीकर, तमाम संवैधानिक पद, उस पर बैठे लोग, हर व्यक्ति.. या कहिये संस्थान पर एक भरोसा था। कि कोई एक गलत करे, तो दूसरा बाधा बनेगा। तब उचित और अनुचित में संघर्ष होगा। कोई न कोई सत्य को अपहेल्ड करेगा। आज क्या हाल है इस विश्वास का? ●● साफ पता है कि सरकार झूठ बोलती है, नकली आंकड़े देती है, प्रोपगंडा करती हैं, ठगती है। लालच देती, अतथ्य से कन्फ्यूज करती हैं। बेईमानी, छल, हेकड़ी से काम करती है। पकड़ी जाती है, तो व���वाद करती है, प्रहार करती है। और नजीर पेश करती है। समाज का श्रेष्ठ वर्ग जो करता दिखता है, दूसरे हिस्से उसकी कॉपी करते हैं। तब ये नाली नीचे तक बहती है। संसद से चौपाल से घर के ड्राइंग रूम तक, विवाद, हेठी, झूठ, डाइवर्जन बह रहा है। वर्कप्लेस, सिनेमा, किताबे, बातें, न्यूज, जहर से अटे पड़े हैं। फाल्सी, अतथ्य, बेईमानी, ठगी, आपके गिर्द घेरा बनाये हैं। चाहे अनचाहे, समर्थन विरोध में आप इस जहर से लथपथ हैं। इ��� दौर की सचाई यही है। ●● और यह आरएसएस की देन है। ये जहर, ये भ्रंश इसकी कुशिक्षा और इसके दूषित डीएनए से सने लोगो की मुख्यधारा पर कब्जे का नतीजा है। एक संगठन जिसने जो फासिज्म को धर्म के चोले में पेश करता है। उसके बूते राजनीति करता है। छिपकर, पीछे रहकर.. बिना दिखे, पर हर जगह दिखकर। सदा से झूठी फुसफुसाहटो पर अपना विस्तार करता आया है। छल, डबल स��पीक, वादाखिलाफी, भ्रम, भय और षडयंत्र से समाज पर कब्जा, नियंत्रण करता गया है। हमारे दिमाग से खेलता है। रोज झूठ का नया जाल रचता है। ●● वरना जिन लोगो ने बैन हटाने के लिए राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहने कान पकड़ने का लिखित वचन दिया था। आज वह संगठन अपने चेले चपाटियो को सर्वोच्च पदों तक पहुचाने में ���ैसे कामयाब है? वह भी इलेक्टोरल पॉलिटिक्स के रास्ते। सोचिये जरा। ●● ऐसा नही कि गलतियां, बेईमा���ी पहले न थी। पर हमारी सोच में गलत, कम से कम "गलत" तो होता था। सत्य खुल जाए तो शर्म का, इस्तीफों का, आलोचना का बायस होता था। पर आज गलत ही सही है। "सत्य-मेरे ठेंगे पर" यही हमारे समाज को इस संगठन का कॉन्ट्रिब्यूशन है। दरअसल आरएसएस ने इस देश को, इसकी संस्कृति को, सर के बल खड़ा कर दिया है। ●● 110 करोड़ के समाज मे बड़ा हिस्सा अब दंगाई, गालीबाज, हेकड़ीबाज, मूर्ख, द��नकारी और अंहकारी मानसिकता का शिकार हो चुका है। आरएसएस ने इस देश के यूथ को जॉम्बी बना दिया है। लेकिन यह अभी नाकाफी है। फौज और बड़ी चाहिए। भूखे, नंगे, लड़ाकुओं, मरजीवड़ों के दस्ते चाहिए। तो भागवत को लगता है कि जो इनकी सुनते हैं, उनकी मानते हैं, उन्हें संख्या बढ़ानी चाहिए। ●● पागलपन घटा, पागल लोग घटे.. तो पागलपन की यह फैक्ट्री खतरे में आ जायेगी। जिन निपूतो को बच्चो की मौतों का कभी फर्क नही पड़त���, उन्हें अपनी सनक की अग्नि में झोंकने को आहूति चाहिए। इसलिए, साहबान, कदरदान, मेहरबान.. निपूतों के गैंग को आपके बच्चे चाहिए।
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धार्मिक व्यक्ति हर जीव हर व्यक्ति की भावनाओं की इज़��ज़त करता है मै गारंटी के साथ कह सकता हूँ कि इनमे से कोई धार्मिक नहीं
ये मस्जिद के सामने "उनकी मा�� का भोंसड़ा" बजाना कौन सी धार्मिक स्तुति है? यह कौन सा मंत्र है? यह पद्धति किस ग्रन्थ में है? इसका पूजा पाठ, त्योहार या धर्म से क्या लेना देना है? यह करके हिन्दू धर्म बचाओगे राक्षसों? सत्ता के पालतू डिजिटल दंगाई पूछते हैं कि हर हिन्दू त्योहार पर उपद्रव क्यों होता है? यह वीडियो उसी का जवाब है। आग खाओगे तो अंगार ही हगोगे। अगर अपनी आस्था, अपनी देवी, अपने देवता का इस्तेमाल दूसरों को गाली देने के लिए ���रोगे, तो तुम मानवता पर कलंक हो। तुम समाज के लिए जहर बन चुके हो। यूपी के बाराबंकी में दुर्गा मूर्ति विसर्जन के दौरान यह गाली बजाई जा रही है। यह भीड़ माता की मूर्ति और दशहरा जैसे पावन पर्व की आड़ में यह दुष्कृत्य कर रही है। आरोप है कि यात्रा को मस्जिद के बाहर रोककर आपत्तिजनक गाने चलाए गए। इस दौरान मस्जिद पर गुलाल फेंका गया। मामले में 3 गिरफ्तार ��ुए, 40 से ज्यादा पर FIR हुई है। हिंदू युवकों को दंगाई भीड़ में बदला जा रहा है। वे हर त्योहार पर यही करते हैं। मस्जिद पर चढ़ जाना, मुसलमानों के घर में घुस जाना, कहीं भी हरा झंडा उतार कर भगवा फहराना, उन्हें चिढ़ाना... यह सब धर्म की आड़ में हिंदुओं से करवाया जा रहा है। अगर कोई रोकता है तो दंगा होता है। इनका समर्थन करने वाले राक्षसों से पूछो कि यह करके वे कौन सी धार्मिक महानता हासिल करना चाहते हैं? अगर आ��का नवरात्रि, व्रत, पूजा और धर्म से थोड़ा भी वास्ता होगा तो आपको शर्म आएगी कि आपकी आस्था को दंगे का औजार बना दिया गया है। खतरा मुसलमानों से नहीं, उन सियासी खूंखार जानवरों से है जो आपके धर्म को कलंकित कर आपके बच्चों को दंगाई बना रहे हैं। (उनके शब्द यहां लिखने के लिए माफी चाहता हूं।)
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इस समाज विभाजन की सीम�� क्या है??? एक वाजिब सवाल क्यों कि सरकार ने थान लिया है आपको बाँटने का... अब आपको निर्णय लेना है कि आप मिलकर रहे... 🙏🏻
@JaikyYadav16 @dhruv_rathee संदीप चौधरी ने क्या धोया है 🔥🔥 जिसने रीट्वीट लाइक दोनों ना किया उसको तुरंत ब्लॉक 😁
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बुरा मत मानना पर विश्लेषण ठीक ठाक है एक बार सोंचियेगा अवश्य कि इतना पैसा आ कहा से रहा है?
मतलब नही महंगाई से बेपरवाह बेरोजगारी से.. कभी सोचा आपने, की मोदी सरकार कभी महंगाई और बेरोजगारी को एड्रेस क्यो नही करती?? इसके दो पहलू है। ●● पहला- पैसा!!! भाजपा, पैसों की लालची पार्टी है। एक दौर में बनियों का दल कहलाने वाले दल की बेसिक तासीर यही है- चुपचाप स्वीकार कर लीजिए। पैसा हर मर्ज की दवा है। और मोदी ब्रांड राजनीति में इसकी जरूरत असीम हैं। साल में 5 शानदार चुनाव लड़ने के लिए, मीडिया खरीदने के लिए, होर्डिंग, पोस्टर, पैम्फलेट से देश को पाट देने के लिए, सांसद विधायक खरीदने के लिए, रिजॉर्ट बुक करने के लिए... बूथ मैनेजमेंट के लिए, रैलियां करने के लिए, तगड़ा धरना प्रदर्शन करने के लिए, कार्यकर्ताओ की विशाल फौज को लगातार एंगेज्ड रखने को छोटे छोटे कार्यक्रम ऑर्गनाइज करने के लिए... पैसा एसेंशियल है। यह मजदूरी करके नही आता। ●● आरएसएस से लेकर बजरंग दल तक, विवेकानंद फाउंडेशन से लेकर वनबंधु परिषद तक, भाजपा के हजारों आनुषंगिक संगठन हैं। और जिस मजबूत संगठन के आप कसीदे पढ़ते हैं, दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के उन कार्यकर्ताओं का काम, चना फांक कर नही चलता। ●● 70 साल सत्तावान रही कांग्रेस के पास, आपके शहर में एक किराए की झोपड़ी है। भाजपा के ऑफिस में तीन तल्ले हैं। सैंकड़ो कम्यूटर हैं, वर्कर है, डेटा है, कालिंग है, सॉफ्टवेयर है, मोन���टरिंग है, कंसल्टेंट हैं, सर्वे है, कभी खत्म ब होने वाला काम है। कांग्रेस के पास बूथ पर वर्कर नही, भाजपा की छतरी हर जगह है। एक बूथ पर एक दिन टीम बिठाने का का खर्च लाख रुपये होना, सस्ता एस्टिमेट हैं। इसमे रात को वोटरों में बंटे पैसे शामिल नही। ●● आईटी सेल है, कम्युनिकेशन प्रोपगेंडा की टीम है, कण्टेट क्रियेटर हैं। खरीदा और कब्जाया हुआ डेटा है।इलेक्शन कमीशन से जुगाड़े गए, और दवा दुकानों, रेस्ट्रोरेंट की चेन, होटलों, बिग बाजारों में बिलिंग के समय लिखवाए गए आपके फोन नंबर्स हैं। आपके धार्मिक-पोर्न- पॉलीटकल ग्रुप में फार्वर्ड भेजने वाले वर्कर हैं।ये वेतनभोगी लोग हैं। आपकी पोस्ट पर ट्रोल करने आई फर्जी आईडी को उस कमेंट के लिए महज 2 रुपये मिले। अब सोशल मीडिया पर हर दिन किये गए कमेंट्स का खर्च जोड़िये। ●● कौन देगा इतना पैसा- कारपोरेट क��यूँ देगा- बिजनेस पाने के लिए मुनाफे के लिए, कम से कम इन्वेस्टमेंट में ज्यादा से ज्यादा कमाने के लिए। फ्री लैंण्ड, टैक्स छूट, सस्ता कर्ज, कर्ज की माफी पाने के लिए। फेयर कॉम्पटीशन के लिए नही, वह मोनोपॉली के लिए पार्टी को पैसे देगा। बैक डोर ठेके के लिए देगा। 2रु की दवा, राशन, कपड़े, कॉमेंटिक्स, सुविधा, सेवा को 200 में बेचने के लिए देगा। ●● सरकार महंगाई कन्ट्रोल करे, तो कारपोरेट का मुनाफा कम होगा। फे��र कम्पटीशन को बढ़ने दे, तो मुनाफा कम होगा। ऑटोमेशन और ठेके की जगह जॉब्स बढाने की पॉलिसी बढ़ाये- कारपोरेट का मुनाफा कम होगा। हर वो नीति, हस्तक्षेप, जो जनता की जेब में पैसा बचाएगी, उतना पैसा, उस कारपोरेट की जेब मे जाने से रह जायेग। यह उसका नुकसान है। इस नुकसान के लिए वह पार्टी को फंड तो करेगा नही। और जिस तरह का "प्रभावी सांगठनिक कौशल" बीजेपी का है, वह फंड के बगैर शून्य है। एक बार सोचकर देखिए। ज��तने पैसे में कोई दल, पूरे जिले की सब सीटें लड़ लेता है, भाजपा उतना एक सीट पर खर्च करती है। यह सिर्फ इलेक्शन के वक्त दिखा, भाजपा इसे 24X7 बेसिस पर चालू रखती है। ●● सिम्पल ऑब्जर्वेशन है। आपकी आंखों देखी है। लेकिन लोग सोचते नही। कायदे से, बढ़ती महंगाई और घटते रोजगार का बेरोजगार का नजला, तो चुनावो में मिलना चाहिए। पर आप वोट बेरोजगारी और महंगाई पर नही देते। राम, मुसलमान और पाकिस्तान पर देते हैं।काफी पैसे खर्च कर, आपको सीखा दि���ा गया है कि सिर्फ रामद्रोही, पाकिस्तानी, और मुसलमान ही भाजपा के खिलाफ हो सकते हैं। काफी पैसा खर्च कर आपको रटाया गया कि कारपोरेट फंड्स पर सवाल उठाने वाले वामपन्थी हैं। पूंजी विरोधी है, रूसी चीनी नक्सली हैं। और फिर पाकिस्तानी, चीनी, नक्सली आप नही है, इसलिए भाजपा को वोट करते हैं। हिन्दू हैं, रामभक्त हैं, बीजेपी को वोट देंगे ही। ●● भाजपा को इसलिए न महंगाई की चिंता है, न बेरोजगारी की। उसे अपना संगठन पालना है, आपके बच्चे नही। उसकी प्राथमिकता, महंगाई बढ़ाए रखना है। मुनाफा, फंडिंग बढ़ाये रखना है। और आपको पगलाए रखना है। ●● इस पोस्ट के नीचे भी ऐसे कमेंट करने वाले आएंगे, जिन्हें मिलने वाले 2 रुपये, उसी मुनाफे से मिल रहे है.. जो उनके बापो को रोटी, कपड़ा, तेल, दवा - बेजा कीमत पर बेचकर वसूला गया था। इन जैसो क, ऐसे वोटरों के रहते, मोदी बहुमत या अल्पमत में शपथ लेते रहेंगे। और ठसके से कहेंगे। मतलब नही महंगाई से बेपरवाह हूँ बेरोजगारी से..
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Respect his every words
द क्राउन प्रिंस ऑफ बीजेपी?? ऐसा नही की भाजपा में एकाध नफरती और जाहिल नेता है। यहां पूरी पौध ही जहरीली है। कभी सुषमा स्वराज, अटल बिहारी, यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह जैसो को देखकर लगता था कि 1947 की राजनीति से यह झुंड, अब दूर निकल आया ��ै, शायद मेच्योर जो गया है, मॉडर्नाइज और मोडरेट हो गया है। मगर हो मगर बकौल गोविंदाचार्य- वो लोग महज मुखौटा थे। ●● सत्ता मिली, तो सचाई बाहर आई। चंद सलोने मुखौटो के पीछे का असली चेहरे सिर्फ उन्माद और ध्वंस के है। संस्कृति, धर्म, देशभक्ति के चोले में यही इनका मूल कार्यक्रम है, विजन ��ै, बेसिक तासीर है। तो देश भर के बिगोट, ढोंगी, बतोलेबाज जिन्हें किसी सभ्य देश मे सार्वजनिक जीवन से बैन कर दिया जाना चाहिए, वे हमारे समाज के अलंबरदार बने हैं। लीडर हुए है, बादशाह है, क्राउन प्रिंस हैं। ●● अगर इतिहास से कोई सीख मिलती है, तो साफ कहता हूँ- इस तरह का समाज, ऐसा देश, विश्वगुरु तो दूर, अपना अस्तित्व भी शीघ्र खोने को अभिशप्त होता है। तो कांग्रेस की छोड़ दीजिए। वह चुनाव जीत भी जाये, तो इस जहर को समाज से निकालने के लिए जो करना पड़ेगा, वह भी देश के लिए बहुत अच्छी चीज तो नही होगी। सँघर्ष और प्रतिकार उस हाल में भी होगा। जो गहरा घाव देगा। आपकी इंद्रियां सुन्न न हो चुकी हो, तो महसूस कीजिए। यह दौर, एक और टूट की ओर बढ़ते कदमो की पदचाप से गूंज रहा है। ●● और यह दौर है, जब देश और हिन्दुओ के उत्थान का बीड़ा उठाये घूम रहे जाहिलो के झुंड को, इ��बाल का वो शेर याद कर दिला देना चाहिए.. जो उन्होंने पाकिस्तान की अवाम के लिए, ऐसे ही मोड़ पर, 60 बरस पहले लिखा था। वतन की फिक्र कर नादां, मुसीबत आने वाली है तिरि बरबादीयो के मशवरे है आसमानों में..
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@RebornManish गज़बे ढा दिए भैया बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दिए है अब ये जानकारी मंच से जनता तक पंहुचा दी जाएगी 🤝🏻
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