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Ajay Chandel
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व्यंग्यकोण / सर्व तर्केभ्यः स्वाहा / सबसे सस्ते दिन / एक चुनाव की आत्मकथा / ट्वीविताएँ / साथ तुम्हारे पाना खोना /बनराकस /अर्बन-राकस/ चाहा बहुत समेटूं पल में
Joined May 2013
#बनराकस पुस्तक amazon, @PadhegaIndia_ और @sbhashatrust पर उपलब्ध है।
भेड़िये राजनीति में ही नहीं समाज में भी किसी न किसी रूप में उपस्थित होते हैं. समस्या तब विकराल हो जाती है जब...? #AjayChandel के @sbhashatrust से प्रकाशित कथा-संग्रह 'बनराकस' पर जानें वरिष्ठ पत्रकार @jai_shiven की राय.
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कुछ लंका संसद में दुबे जी ने लगाई है बाकी ऐसे थ्रेड लगा देंगे। दुबे जी ने बड़ा सही प्रश्न किया है - क्या USAID के कहने पर ही कांग्रेस के नेता जाति जनगणना का राग अलाप रहे हैं ताकि इसको किसी बड़ी अराजकता में बदला जा सके?
How USAID trained 75000 media persons in India (Expose) Indian media, education, arts, and culture are dominated by Left ideology But This didn't happen accidentally Everything was well planned. We were brainwashed, our generations were destroyed It's time to wake up now 1/16
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हसीनापुर माघ शुक्ल पक्ष द्वादशी,विक्रम संवत २०८१ आज नगर श्रेष्ठियों के पास कोई संदेश नहीं था। न किसी महत्वपूर्ण घोषणा का संदेश, न किसी महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस की सूचना। श्रेष्ठी पदीजरा के महल में शोक था। अन्य श्रेष्ठी भी जमा हुए थे। आज श्रेष्ठी नाच नहीं रहे थे। जीवन से रस नीचुड़ गया था। आज तो मोदीशमनमंत्र का जाप भी कष्टकारी लग रहा था। एक श्रेष्ठी ने पूछा – अब कोई महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं होगी क्या? "संभवतः नहीं।" "फिर हमारा क्या होगा? हमारा वेतन कहाँ से आएगा? हमने तो उनके भरोसे नौकरी भी छोड़ दी थी।" "पता नहीं।" "किन्तु यह हुआ कैसे! यह तो असंभव था। कैसे कैसे महारथी थे हमारे पास, फिर भी सब हार गए। कैसे?" "यह सोचो, अब महाराज क्या करेंगे?" स्वघोषित राष्ट्रकवि ने तंज कसते हुए कहा – "अनुदानित राज्य सभा की तलाश करेंगे और क्या? मुझे कोई संवेदना नहीं।" "हमने तो जी जान लगा दिया था, ऐसा एक दिन नहीं था जब महाराज का प्रचार न किया हो। फिर भी? ये सब क्या देखना पड़ रहा है?" "मैं तो निराशा के गर्त में जा रहा हूँ। लोगों ने शिक्षा क्रांति के जनक, स्वास्थ्य क्रांति के जनक, और राजनैतिक क्रांति के जनक समेत एकमात्र अभियंता को भी स्वीकार नहीं किया।" "और तो और हमारे अपने ही पराजय के बाद भी सड़कों पर नृत्य कर रहे हैं? हाय दुख देखा नहीं जाता।" तभी वहाँ शतोशुआ आ पहुंचे। बोले "हालांकि मुझे तो सभा से निष्काशित कर दिया गया था। लेकिन फिर भी मैं आपका हितैषी होने के नाते बिना मांगे सलाह देता हूँ। यह समय निराशा में डूबने का नहीं। महाराज के साथ आप सब बैठें और आत्ममर्दन करें।" श्रेष्ठी उसपर टूट पड़े और उसकी चोंच पकड़कर झकझोर दिया बोले – "विरोधियों ने कम मर्दन किया है जो अब आत्ममर्दन भी करें।" बड़ी मुश्किल से एक ने पैनी कलम मार मार के सबको भगाया और समझाया "वो आत्ममंथन कहना चाहते हैं।"
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RT @jagdish: क्यों हारेगा केजरीवाल इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में यहां मैं केजरीवाल के भ्रष्टाचार की, दिल्ली में हुए निक्कमेपन की और इनकी…
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RT @ShrrinG: Parvesh should be the CM.. He clicks all the brackets, caste wise, age wise and the way he conducted himself when he was not…
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यह देखना बहुत रोचक होगा कि दिल्ली की पिछली सरकार ने कहां कहां का पैसा रोककर किस किस जगह पर बहा दिया। बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके @BJP4Delhi @BJP4India को बिना लाग लपेट के पूरा आर्थिक ब्यौरा शुरू में ही सामने रख देना चाहिए। किन हालातों में उन्हें दिल्ली मिली है शुरू में सामने रख देना चाहिए। वरना केजरीवाल के ��िए हुए कर्ज और अन्य विभागों के रोके हुए पैसे चुकाते रह जाओगे और वह फिर घेर कर बैठ जाएगा। शासन आसान नहीं होगा।
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RT @Spoof_Junkey: ग्राउंड के कार्यकर्ताओं का एक संघर्ष जो शायद सभी लोगों तक पहुचना जरूरी है जिन सीटों पर मार्जिन कम था वहां बहुत काम किया,…
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RT @AnupamHB: बे चमन! वो जो कड़ाही में तला जा रहा है वो काज�� नहीं है, काजू की शेप की मठरी है. 😂😂
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१८ साल? पार्टी बनने से पहले से एडवांस में पार्टी को खून पसीना दे रहीं थीं?
"Why will I walk away from my party? For 18 years I have given my blood and sweat to this party (AAP)..," says AAP MP Swati Maliwal #ResultsonIndiaToday #DelhiElectionResults
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अगर एक पार्टी प्रत्याशी को वोट मांगने अपनी ही पार्टी के नेताओं के घर जाना पड़ता है तो इससे अपमानजनक और क्या हो सकता है। होना तो ये चाहिए था कि आप जिनके घर गए थे वो एक बार अपने घर से बाहर निकल कर गाड़ी से ही घूम लेती तो आपके और बेहतर वोट मिल सकते थे। नेतृत्व वो है जो अपने दल में चलने वालों को मार्ग दिखाए। न कि वो जो अपने दल में चलने वालों से मान मनौवल ��रवाए। अगर संदीप दीक्षित को यह समझ आ गया है तो वे कांग्रेस छोड़ देंगे। और अब भी लगता है कि उनका अपने ही नेताओं से वोट मांगकर जनता में अच्छा संदेश गया होगा तो बने रहें।
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