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Chandan Yadav
@chandanjnu
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National Secretary, INC (i/c Madhya Pradesh), IYC & NSUI, Phd JNU, Khagaria, Bihar.
Joined December 2012
Manusmriti and Constitution both discuss Caste, but from diametrically opposite viewpoints. History bears witness to the number of champions of social justice who have shunned their upper caste origin to fight against this unfair division of our society. My article in TOI for your kind feedback. @RahulGandhi
@kharge @kcvenugopalmp @priyankagandhi
@INCIndia
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लंबे समय तक दुनिया भर में भारतीयों की शांतिप्रिय, मेहनती और मेधावी की छवि रही इसलिए हर देश में भारतीय लोगों का स्वागत होता था। इसी वजह से आज भारत का प्रवासी समुदाय चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा समुदाय है। कहीं कहीं भारतीय लोगों को भेदभाव का भी सामना करना पड़ता था फिर भी वे उदार बने रहे और प्रगति की सीढ़ियां चढ़ते रहे। फिर भारत में कट्टरता और धर्मांधता की खेती बढ़ने लगी, विदेशों में अस्मितावादी संगठन बनाये जाने लगे, घरेलू लड़ाई विदेश में लड़ी जाने लगी। इससे न केवल भारत की घरेलू राजनीति प्रभावित हो रही है बल्कि भारतीय प्रवासी समुदाय के प्रति भी विदेशियों में शंका उत्पन्न होने लगी है। यह सब देशी राजनीति का प्रतिबिम्ब है। भारतीय यदि तरक्की करना चाहते हैं, वैश्विक ��्तर पर उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाना चाहते हैं तो उन्हें ऐसे विचारों से दूरी बनानी होगी जो फसाद और कट्टरपंथी संघर्ष की ओर ले जाते हैं।
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15 फरवरी को मध्यप्रदेश के सागर में आयोजित हो रहे बहुजन इंटेलेक्ट समिट- 2025 में बतौर अतिथि और वक्ता शामिल होऊंगा। भाजपा-आरएसएस ने संविधान को ठंढे बस्ते में डाल दिया है। संवैधानिक संस्थाएँ संविधान नहीं बल्कि पूंजीपतियों की मंशा के अनुरूप काम कर रही हैं। सरकार केवल व्यवस्थापक की भूमिका में है। ऐसे में बहुजन समिट ने 'संविधान विहीन भारत' जैसे विषय पर कार्यक्रम रखकर साहस और दूरदर्शिता का परिचय दिया है। आमंत्रण के लिए बहुजन समिट, सागर के संयोजकों को धन्यवाद।
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जननायक श्री @RahulGandhi जी के वादे को पूरा करते हुए तेलंगाना कांग्रेस की @revanth_anumula सरकार ने जातिगत जनगणना कराई। उससे मिले आंकड़ों के आधार पर सामने आया कि ओबीसी जातियों की संख्या कुल आबादी का 56% से अधिक है। ऐसे में यह आवश्यकता थी कि आबादी के अनुपात में ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाया जाय। आज उपमुख्यमंत्री श्री मल्लू भट्टी ने घोषणा कर दी है कि ओबीसी आरक्षण बढ़ाकर अब 42% किया जाएगा। सामाजिक न्याय के इतिहास में कांग्रेस का यह फैसला मील का पत्थर साबित होगा।
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तमाम सीमाओं के बावजूद बॉलीवुड वैचारिक खुलेपन, प्रगतिशील मूल्यों, मानवतावाद और भारतीयता के वैश्विक रूप को प्रोत्साहित करती रहा है। अच्छी फिल्में यही करती हैं। यही वे कारण हैं जिससे दुनिया भर के कट्टरपंथी फ़िल्म विधा के खिलाफ रहे हैं। मौजूदा शासन तंत्र जहाँ प्रचारू और झूठ फैलानेवाली फिल्मों को उत्साहित कर रहा है वहीं कलाकारों की स्वाधीनता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचल रहा है। डरे हुए लोग अच्छी फिल्में नहीं बना सकते हैं। ऐसे में जया बच्चन जी के इस सवाल पर गौर किये जाने की जरूरत है। बॉलीवुड ने दुनिया में भारत की पहचान बनाई है। उसे हर जरूरी प्रोत्साहन और उसकी स्वतंत्रता के लिए आवाज़ उठाना हमारा कर्तव्य है।
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3-0 से #TeamIndia ने इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज जीत ली है। पूरी सीरीज क्या शानदार प्रदर्शन की गवाह बनी!
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मोदी जी निजी लाभ-हानि को केंद्र में रखकर विदेशनीति निर्धारित करते हैं। भारत में जैसी आपत्तिजनक राजनीति वे करते हैं और अडानी के हितों का विदेशों में संरक्षण करते हैं उससे उनके लिए देश से पहले खुद को रखना मजबूरी बन जाता है। एक कमजोर और लगभग निष्क्रिय विदेशमंत्री उन्होंने इसीलिए रखा है ताकि उनके हित ध्यान में रखकर ही भारत की विदेश नीति तय हो। इन 11 वर्षों में दुनिया ने देख लिया है उनकी कार्यशैली। इसलिए दुनिया के नेता उन्हें वह सम्मान नहीं देते हैं जिसके लिए भारत का प्रधानमंत्री हकदार होता है। मोदी जी अपनी सेटिंग प्लाटिंग में ही लगे रहते हैं जबकि भारत उनके नेतृत्व में भयंकर रूप से पीछे जा रहा है। नारे वे जो भी दें लेकिन भारत विदेशों में न केवल अलग थलग पड़ा है बल्कि उसकी विश्व नेता की भूमिका भी खत्म हो गयी है। मोदीजी ट्रम्प को खुश रखना चाहते हैं इसलिए उसकी किसी भी ज्यादती पर चुप रहते हैं। ताजा खबर यह है कि स्टील और एल्युमिनियम पर ट्रम्प शासन ने 25% की टैरिफ लगा दी है। जिसका स्पष्ट मतलब यह है कि अब भारत से इनके आयात पर आयातक तो अतिरिक्त कर देना पड़ेगा जिससे भारत का निर्यात हतोत्साहित होगा।
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क्रांतिकारी समाज सुधारक, स्वराज के प्रथम उद्घोषक, आर्य समाज के संस्थापक, दार्शनिक और सत्यार्थ प्रकाश के रचयिता स्वामी दयानंद सरस्वती जी की पुण्यतिथि पर शत शत नमन। आपने वर्णव्यवस्था, छुआछूत, कर्मकांड, अंधविश्वास, ज्योतिष, सतीप्रथा, बालविवाह का खंडन करके मानव की समता का मंडन किया। आपके द्वारा स्थापित आर्य समाज भारत में बुद्धिवाद, प्रगतिशीलता और सामाजिक न्याय का स्तम्भ बना रहा है। जाति उन्मूलन नामक डॉ आंबेडकर का प्रसिद्ध भाषण लाहौर के जिस जाति-पांति तोड़क मंडल में होना था वह मंडल आर्य समाजी ही था। इससे पता चलता है कि आर्य समाज लंबे समय तक किस तरह जाति व्यवस्था को समाप्त करने में सक्रिय रहा। आपका दर्शन आज भी मानवता का मार्गदर्शन करता है।
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बनारस में रहकर पढ़ाई कर रही बिहार की बेटी स्नेहा कुशवाहा के साथ वैसा ही हुआ जो हाथरस की बेटी के साथ हुआ था। बनारस में स्नेहा कुशवाहा को बलात्कार के बाद मार दिया गया, शव का पोस्टमार्टम भी नहीं होने दिया, घर वालों को शव को छूने तक नहीं दिया और आनन फानन में उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया ! ऐसी हड़बड़ी और लापरवाही क्यों? जाहिर है बनारस प्रशासन अपराधी को बचा रहा है या फिर यूपी में जंगलराज है जहाँ कुछ भी हो सकता है।
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कांग्रेस पार्टी सड़क से लेकर संसद तक विचारधारा की लड़ाई लड़ रही हैं। जननायक राहुल गांधी जी, हमारे अध्यक्ष आदरणीय मल्लिकार्जुन खड़गे जी देश को संविधान को बचाने के लिए वंचित वर्गों के अधिकार,न्याय,प्रतिनिधित्व, और भागीदारी के लिए जिसमें सामान्य वर्ग के गरीब लोग, महिला, अल्पसंख्यक, ओबीसी, एससी एसटी सहित शामिल सभी वर्गों के लिए हक की लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। #bihar
#khagaria
#beldaur
@rahulgandhi @INCIndia @priyankagandhi @kcvenugopalmp
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तिलका माँझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को ग़ुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेज़ों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी। इसके बाद ही मंगल पांडे सरीखे महान लोगों ने भारत आजादी की आजादी के लिए सिपाही विद्रोह 1857 में शुरू किया था और उनकी शहादत हुई थे ! तिलकामांझी की स्मृति में भागलपुर(बिहार ) में कचहरी के निकट उनकी एक मूर्ति तिलकामांझी चौक में स्थापित की गयी है। इसके अलावा भागलपुर विश्व विद्यालय का नाम बिहार सरकार ने उनके सम्मान में तिलकामांझी भागलपुर विश्व विद्यालय कर दिया है! आज तिलका माँझी का जन्म दिवस है ! उनका जन्म- 11 फ़रवरी, 1750, सुल्तानगंज, बिहार में हुआ था औ��� शहादत- 1785, भागलपुर में ही ! वे भारतीय स्वाधीनता संग्राम' के पहले शहीद थे। इन्होंने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध एक लम्बी लड़ाई छेड़ी थी। संथालों द्वारा किये गए प्रसिद्ध 'संथाल विद्रोह' का नेतृत्त्व भी तिलका माँझी ने किया था। तिलका माँझी का नाम देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्रामी और शहीद के रूप में लिया जाता है। अंग्रेज़ी शासन की बर्बरता के जघन्य कार्यों के विरुद्ध उन्होंने जोरदार तरीके से आवाज़ उठायी थी। इस वीर स्वतंत्रता सेनानी को 1785 में गिरफ़्तार कर लिया गया और फिर फ़ाँसी दे दी गई। जन्म तथा बाल्यकाल: तिलका माँझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में 'तिलकपुर' नामक गाँव में एक संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम 'सुंदरा मुर्मू' था। तिलका माँझी को 'जाबरा पहाड़िया' के नाम से भी जाना जाता था। बचपन से ही तिलका माँझी जंगली सभ्यता की छाया में धनुष-बाण चलाते और जंगली जानवरों का शिकार करते। कसरत-कुश्ती करना बड़े-बड़े वृक्षों पर चढ़ना-उतरना, बीहड़ जंगलों, नदियों, भयानक जानवरों से छेड़खानी, घाटियों में घूमना आदि उनका रोजमर्रा का काम था। जंगली जीवन ने उन्हें निडर व वीर बना दिया था। अंग्रेज़ी अत्याचार: किशोर जीवन से ही अपने परिवार तथा जाति पर उन्होंने अंग्रेज़ी सत्ता का अत्याचार देखा था। अनाचार देखकर उनका रक्त खौल उठता और अंग्रेज़ी सत्ता से टक्कर लेने के लिए उनके मस्तिष्क में विद्रोह की लहर पैदा होती। ग़रीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासक अपना अधिकार किये हुए थे। जंगली आदिवासियों के बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों को अंग्रेज़ कई प्रकार से प्रताड़ित करते थे। आदिवासियों के पर्वतीय अंचल में पहाड़ी जनजाति का शासन था। वहां पर बसे हुए पर्वतीय सरदार भी अपनी भूमि, खेती की रक्षा के लिए अंग्रेज़ी सरकार से लड़ते थे। पहाड़ों के इर्द-गिर्द बसे हुए ज़मींदार अंग्रेज़ी सरकार को धन के लालच में खुश किये हुए थे। आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई रह-रहकर अंग्रेज़ी सत्ता से हो जाती थी और पर्वतीय ज़मींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का खुलकर साथ देता था।
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उच्च शिक्षा का सर्वनाश और बचे खुचे मुर्दा ढांचे पर कब्जा आरएसएस और भाजपा का जन्मजात लक्ष्य रहा है। सहायक प्रोफेसरों को पीएचडी और एमफिल के लिए क्रमशः 5 और 2 इंक्रीमेंट मिलते थे। यह उच्च शिक्षा को प्रोत्साहन देने और प्रतिभाओं को उच्च शिक्षा से जोड़ने के लिए था जिसे कांग्रेस ने शुरू किया था। अब भाजपा ने इसे बंद कर दिया है। इसका अर्थ है कि सहायक प्रोफेसरो को प्रतिमाह कम से कम 6-7 हजार वेतन कम मिलेंगे। पीएचडी और नॉन पीएचडी शिक्षकों में अब कोई अंतर नहीं बचा है। फिर कौन पीएचडी करेगा? कौन जिंदगी के 5 साल लगाकर समाजोपयोगी शोध करेगा? ज्ञान की पूंजी कैसे बढ़ेगी? यह शुद्ध रूप से पैसा बचाने के लिए है। सरकार सारा धन अडानी के हवाले कर रही है। उसके पास धन नहीं है उच्च शिक्षा को बढ़ाने के लिए।
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श्रीमती सोनिया गांधी जी ने जनगणना में देरी का सवाल उठाया है। 2021 में जनगणना हो जानी चाहिए थी लेकिन 2025 तक नहीं हो पाई है। जनगणना इसलिए नहीं कराई जा रही है ताकि जातिगत जनगणना के सवाल को ठंढे बस्ते में डाला जाए। जनगणना होगी तो जातिगत जनगणना की बात भी उठेगी इसलिए समाधान यही है कि जनगणना मात्र ही न हो।
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