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Babu Lal Meena
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*शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-3* विद्यार्थियों को कम बोलने वाला एवं अधिक सुनने वाला होना चाहिए। कम बोलने से तात्पर्य है कि केवल उचित अवसर पर ही बोलना चाहिए, अनुचित अवसर पर बोलने वाला विद्यार्थी हँसी का पात्र बनता है। अधिक बोलने वाला विद्यार्थी दूसरों की बातों को ध्यान से नहीं सुनता और अपनी ही बातों को ऊपर रखता है, जबकि कम बोलने वाला और अधिक सुनने वाला वि���्यार्थी दूसरों की अच्छी बातों को सुनता है। विद्यार्थी को दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। यदि विद्यार्थी में ये गुण हैं तो वह सबसे विशिष्ट अलग ही दिखाई देता है। विद्यार्थी में यह शिष्टाचार होना अत्यावश्यक है। जब यह शिष्टाचार होगा, तभी वह दूसरों का सम्मान भी करेगा। 🌹🙏🌹
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*शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-2* *विद्यार्थी को अपना कार्य स्वयं करना चाहिए, न कि अपने माता-पिता अथवा अभिभावक पर निर्भर होना चाहिए। जो विद्यार्थी अपना कार्य स्वयं करते हैं वे जीवन में कभी दूसरों पर निर्भर नहीं रहते। अपना कार्य स्वयं करने वाला विद्यार्थी आत्मनिर्भर बनता है; जबकि वह विद्यार्थी जो अपना कार्य स्वयं नहीं करता, वह दूसरों पर निर्भर रहता है। वह चाहे कक्षा में हों अथवा अन्य कहीं, इसी अवसर की तलाश में रहता है कि कब कोई ऐसा मिले जिससे अपना गृहकार्य अथवा अन्य कोई कार्य करवाए। यह अवगुण विद्यार्थी को भटकाता है और अनुचित मार्ग की ओर अग्रसर भी करता है। 🌹🙏🌹
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*नागरिक कर्तव्य एवं शिष्टाचार-15* *शिष्टाचार : एक परिचय-1* *शिष्टाचार मनुष्य के व्यक्तित्व का दर��पण होता है। शिष्टाचार ही मनुष्य की एक अलग पहचान करवाता है। जिस मनुष्य में शिष्टाचार नहीं है, वह भीड़ में जन्म लेता है और उसी में कहीं खो जाता है। लेकिन एक शिष्टाचारी मनुष्य भीड़ में भी अलग दिखाई देता है, जैसे पत्थरों में हीरा।* *शिष्टाचारी मनुष्य समाज में हर जगह सम्मान पाता है- चाहे वह गुरुजन के समक्ष हो, परिवार में हो, व्यवसाय में हो अथवा अपनी मित्र-मंडली में।* 🌹🙏🌹
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आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो. *नागरिक कर्तव्य एवं शिष्टाचार-14* *नागरिक कर्तव्यों के विषय में सब प्रकार के प्रचार प्रसार माध्यमों द्वारा विद्यालयों, महाविद्यालयों व अन्य संस्थान जहां बाल व युवा हों- वहां कर्तव्य बोध के विषयों पर अलग-अलग प्रकार की चर्चाएं, भाषण, नाटक, प्रस्तुतियां की जानी चाहिए। जिससे सामान्य जन में अपने कर्तव्यों के प्रति एक भावना खड़ी हो सके। और उनका अनुगमन और अनुपालन करते हुए सभी नागरिक भारत को विश्व का सिरमौर बनाने में अपनी अपनी भूमिका निभा सकें।* नागरिक कर्तव्यों के पालन हेतु हर क्षेत्र में व्यापक प्रचार-प्रसार अहम् भूमिका निभा सकता है।
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@1992royalyadav Good morning! Jai Bajrang Bali 🙏 Jai Jai Shree Ram 🙏 Wishing you a blessed and peaceful day ahead.
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There was a king who was very just, compassionate towards his subjects, and religious by nature. Every day, he would worship his deity with great devotion. One day, the deity, pleased with his devotion, appeared before him and said: "O King, I am very pleased with you. Ask for any boon you desire." The king, being devoted to his people, replied, "Lord, by your grace, I have everything. My kingdom is peaceful and prosperous. However, I have one wish—just as you have blessed me with your divine presence, please also bless my entire kingdom with your vision." Hearing this, the deity said, "This is not possible." The king, however, insisted. Ultimately, the deity agreed and said, "Very well, tomorrow, bring all your people to the hill, and I shall reveal myself to them." Overjoyed, the king thanked the deity. The king announced throughout the kingdom, calling everyone to gather at the hill the next day to witness the deity’s divine presence. The next morning, the king, along with all his people and family, set out for the hill. On the way, they saw a mountain of copper coins. Some of the people, unable to resist the temptation, ran towards it. Despite the king's warning that they were on their way to meet the Lord, many chose to collect the coins, thinking, "We can meet God later; let us take advantage of this opportunity first." Saddened, the king continued forward with the remaining people. A little further, they encountered a mountain of silver coins. This time, too, some of the people left the group, thinking, "Such a chance may never come again; God can wait." As the group proceeded further, they saw a mountain of gold coins. Even the king's family members and the remaining people abandoned the journey to gather the gold, believing it to be a once-in-a-lifetime opportunity. Now, only the king and his queen were left. The king said to the queen, "Look at the greed of these people! They do not understand the value of meeting the Lord. What is all the wealth in the world compared to Him?" The queen agreed and continued with him, but soon they came across a dazzling mountain of diamonds. Unable to resist their allure, even the queen ran towards it, collecting as many diamonds as she could, tying them into her clothes. Her clothes became heavy and started to fall off, yet her greed remained unfulfilled. The king, disheartened, proceeded alone. When he reached the hill, he found the deity waiting for him. Smiling, the deity asked, "Where are your people and your loved ones? I have been eagerly waiting for them." The king, filled with shame and sorrow, bowed his head. The deity then explained, "O King, those who value worldly possessions above me can never attain me. They remain deprived of my love and blessings. Only those who surrender their mind, intellect, and soul to me, renouncing all material desires, are worthy of my presence." The story teaches that only those who are free from worldly attachments and completely devoted to God can witness His divine presence.
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चमत्कारी ताबीज.................!!!!!!!!!!!!!!!!! किसी गांव में विनोद नाम का एक नवयुवक रहता था। वह बहुत मेहनती था, पर हमेशा अपने मन में एक शंका लिए रहता कि.. वो अपने कार्यक्षेत्र में ��फल होगा या नहीं! कभी-कभी वो इसी चिंता के कारण आवेश में आ जाता और दूसरों पर क्रोधित भी हो उठता। एक दिन उसके गांव में एक प्रसिद्ध महात्मा जी का आगमन हुआ। खबर मिलते ही विनोद, महात्मा जी से मिलने पहुंचा और बोला, “ महात्मा जी मैं कड़ी मेहनत करता हूँ, सफलता पाने के लिए हर-एक प्रयत्न करता हूँ; पर फिर भी मुझे सफलता नहीं मिलती। कृपया आप ही कुछ उपाय बताएँ।” महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए कहा- बेटा, तुम्ह���री समस्या का समाधान इस चमत्कारी ताबीज में है, मैंने इसके अन्दर कुछ मन्त्र लिखकर डालें हैं जो तुम्हारी हर बाधा दूर कर देंगे। लेकिन इसे सिद्ध करने के लिए तुम्हे एक रात शमशान में अकेले गुजारनी होगी।” शमशान का नाम सुनते ही विनोद का चेहरा पीला पड़ गया, “ लल्ल..ल…लेकिन मैं रात भर अकेले ��ैसे रहूँगा…”, विनिद कांपते हुए बोला। “घबराओ मत यह कोई मामूली ताबीज नहीं है, यह हर संकट से तुम्हे बचाएगा।”, महात्मा जी ने समझाया। विनोद ने पूरी रात शमशान में बिताई और सुबह होती ही महात्मा जी के पास जा पहुंचा, “ हे महात्मन! आप महान हैं, सचमुच ये ताबीज दिव्य है, वर्ना मेरे जैसा डरपोक व्यक्ति रात बिताना तो दूर, शमशान के करीब भी नहीं जा सकता था। निश्चय ही अब मैं सफलता प्राप्त कर सकता हूँ।” इस घटना के बाद विनोद बिलकुल बदल गया, अब वह जो भी करता उसे विश्वास होता कि ताबीज की शक्ति के कारण वह उसमें सफल होगा, और धीरे-धीरे यही हुआ भी…वह गाँव के सबसे सफल लोगों में गिना जाने लगा। इस वाकये के करीब 1 साल बाद फिर वही महात्मा गाँव में पधारे। विनोद तुरंत उनके दर्शन को गया और उनके दिए चमत्कारी ताबीज का गुणगान करने लगा। तब महात्मा जी बोले,- बेटे! जरा अपनी ताबीज निकालकर देना। उन्होंने ताबीज हाथ में लिया, और उसे खोला। उसे खोलते ही विनोद के होश उड़ गए जब उसने देखा कि ताबीज के अंदर कोई मन्त्र-वंत्र नहीं लिखा हुआ था…वह तो धातु का एक टुकड़ा मात्र था! विनोद बोला, “ ये क्या महात्मा जी, ये तो एक मामूली ताबीज है, फिर इसने मुझे सफलता कैसे दिलाई?” महात्मा जी ने समझाते हुए कहा- ” सही कहा तुमने, तुम्हें सफलता इस ताबीज ने नहीं बल्कि तुम्हारे विश्वा�� की शक्ति ने दिलाई है। पुत्र, हम मनुष्यो को भगवान ने एक विशेष शक्ति देकर यहाँ भेजा है। वो है, विश्वास की शक्ति। तुम अपने कार्यक्षेत्र में इसलिए सफल नहीं हो पा रहे थे क्योंकि तुम्हें खुद पर यकीन नहीं था…खुद पर विश्वास नहीं था। लेकिन जब इस ताबीज की वजह से तुम्हारे अन्दर वो विश्वास पैदा हो गया तो तुम सफल होते चले गए ! इसलिए जाओ किसी ताबीज पर यकीन करने की बजाय अपने कर्म पर, अपनी सोच पर और अपने लिए निर���णय पर विश्वास करना सीखो, इस बात को समझो कि जो हो रहा है वो अच��छे के लिए हो रहा है और निश्चय ही तुम सफलता के शीर्ष पर पहुँच जाओगे। “ विनोद महात्मा जी के बात को गंभीरता से सुन रहा था और उसे आज एक बहुत बड़ी सीख मिली थी कि यदि उसे किसी भी क्षेत्र में सफल होना है तो उसे अपने प्रयत्नों पर विश्वास करना होगा। यदि वह खुद पर विश्वास कर लेता है तो उसकी सफलता का प्रतिशत हमेशा बढ़ता चला जायेगा। *शिक्षा:-* बंधुओ सफलता का सीधा सम्बन्ध आपके अंदर के विश्वास से होता है। यदि आप खुद पर यकीन रखते हैं तो आपको हाथों में अलग-अलग पत्थरों के अंगूठियां पहनने की जरूरत नहीं, माला या ताबीज के साथ की जरूरत नहीं है। बस मन में विश्वास का होना जरूरी है कि आप कर सकते हैं, सफल हो सकते हैं और आप सफल हो जायेंगे।
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@RVLTWRA That's the spirit! Wishing Akashdeep an amazing day—let them shine and make it unforgettable!
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