कितना कुछ
अधूरा ही रह
गया इस दुनिया में...
सुबहें नहीं देख सकी शाम का चेहरा,
सूरज भी ढल गया देखे बिना चाँद को.....
जैसे कि तुम ! नहीं मिल सकोगे कभी पूर्णतः मुझे.....
नहीं मिल पाएंगे कभी हम दोनों,
जानते हुए भी समीप रखा तुम्हें...❤️❤️
अधूरापन......!!♥️
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया,
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया...।
(नोट- यह बात सभी पुरुषों पर लागू नही होता है बल्कि उनपे लागू होता है जो इस प्रजाति के हैं सभी पुरुष घटिया नहीं होते हैं....)
लोग पहले वादा करेंगे
फिर मुकर जाएंगे,
गलतियां करके बोलेंगे
हम सुधर जाएंगे,
उम्मीद की राहें दिखा कर
ना जाने किधर जाएंगे,
रुकने का भरोसा देकर
फिर निकल जाएंगे,
उन्हें फ़र्क भी नही पड़ेगा
और आप बिखर जाएंगे....😌
आँखों से आँसू बहाकर देख लिया
इश्क़ में खुद को भुला कर देख लिया
छोडने वाले छोड़ जाते हैं
हमने तो जान लुटाकर देख लिया
हर कोई यहाँ मरहम नहीं होता
जमाने में चोट खाकर देख लिया
सुनो हर पत्थर यहाँ खुदा नहीं होता
ये खुद ही आजमाकर देख लिया... 💔
बदनसीब स्त्री को प्रेम में हार के अलावा कभी
कुछ नहीं मिला.....
मिला है तो सिर्फ प्रेम के बदले
दुत्कार, फटकार, नजरअंदाज, बेइज्जती और तरह तरह के गाली...💔
ज़रूरी नहीं, जिन्हें हम अपना मान रहे हैं, जिनकी परवाह कर रहे हैं वो भी हमें अपना मान रहे हों. हम अक्सर जज़्बात में, अपनापन में दूसरों की ज़्यादा फिक्र कर लेते हैं। लेकिन हम ठोकर खाने के बाद समझते हैं कि हमारी ज़रूरत उनको नहीं.. हम बस इक विकल्प थे..... 🍁✨🖤
तू कैसा भीष्म पितामह है,
लाज तुझे ना आती है।
तेरी भरी सभा में निश दिन,
बेटी नोची जाती है।।
अपनी करूण व्यथा को वो,
शिशक शिशक बतलाती है।
तेरी धर्म न्याय की सत्ता,
रातों रात जलाती है।।
#copy
#ManipurViolence
#मणिपुर_में_हैवानियत
#मणिपुर_द्रोपदी_चीरहरण #मणिपुर_हिंसा
एक #स्त्री की #वेदना....
बचपन में खाना मनपसंद न हो तो मां दस और ऑप्शन देती।
अच्छा घी-गुड़ रोटी खा लो, अच्छा आलू की भुजिया बना देती हूं। मां नखरे सहती थी, इसलिए उनसे लडियाते भी थे। लेकिन बाद में किसी ने इस तरह लाड़ नहीं दिखाया। मैं भी अपने आप सारी सब्जियां खाने लगीं....!!
तेरी अकेले की गलती नहीं ये सबकी आदत है,
कश्ती किनारे लगते ही समंदर भूल जाते हैं,
तू एक बार बिछड़ कर भूल गया मुझे इस तरह,
जैसे जनवरी में लोग दिसम्बर भूल जाते हैं..!!🖤🍁