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Vivekanand Yadav
@Vivekanand_Ydv1
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सामाजिक और राजनीतिक विश्लेषण में रुचि रखने वाला | विचारों का आदान-प्रदान | सच्चाई की खोज में | सामाजिकन्याय राजनीतिकचर्चा
Joined December 2021
"मैं हार गया हूं, मां..." मैं हार गया हूं, मां... कहीं अपनों से, तो कहीं अपने आप से। जिन्हें अपना समझा, उन्होंने पराया कर दिया, और जिन्हें अपनाना चाहा, उन्होंने ठुकरा दिया। तेरी गोद की वो गर्माहट अब भी याद आती है, पर इस बेगानी भीड़ में वो सुकून कहां से लाऊं? चेहरे तो कई दिखते हैं, मगर कोई अपना नहीं, सांसें चल रही हैं, पर जीने की वजह कहीं खो गई। मैंने लड़ाई लड़ी थी, हौसलों से भरी, पर अब ये थकान दिल को तोड़ने लगी। मां, काश तेरी ममता का एक आँचल फिर मिल जाए, इस दुनिया की बेरुखी से मुझे छुपा ले जाए। मैं हार गया हूं, मां… अब जीतने की ख्वाहिश भी नहीं रही।
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"खुशियों की महफिल और एक लड़की का दर्द" जब आपके घर में कोई खुशी आती है—शादी, जन्मदिन या कोई और जश्न—आप चाहते हैं कि माहौल रंगीन हो, संगीत बजे, लोग नाचे-गाएं। इसी माहौल को और खुशनुमा बनाने के लिए आप आर्केस्ट्रा बुलाते हैं। मंच पर एक लड़की आती है, मुस्कुराती है, नाचती है, और आपकी फरमाइश पर ठुमके लगाती है। आप तालियां बजाते हैं, उसे पैसे देते हैं, लेकिन क्या कभी उसके चेहरे की मुस्कान के पीछे का दर्द देखा है? वो लड़की इस मंच पर अपने शौक से नहीं, मजबूरी से खड़ी होती है। उसके पास दूसरा कोई रास्ता नहीं होता। आपके मनोरंजन के लिए वो रात-रात भर नाचती है, लेकिन बदले में उसे क्या मिलता है? अश्लील इशारे, फब्तियां, कभी कोई जबरन गोद में बैठाने की कोशिश करता है, तो कोई उसके कपड़े खींचने की हिम्मत कर लेता है। कुछ पैसे उसके ब्लाउज में डालकर खुद को दयालु समझते हैं, लेकिन क्या ये सच में दया है या एक और ज़ख्म? क्या हमारी खुशियां इतनी अधूरी हैं कि किसी मजबूर लड़की की इज्जत को दांव पर लगाकर ही पूरी होती हैं? क्या हम किसी की जरूरत को उसकी कमजोरी समझकर उसका शोषण करने लगे हैं? आइए, खुशियां मनाएं, संगीत बजाएं, नाचें-गाएं, लेकिन किसी की मजबूरी का मजाक न बनाएं। जब अगली बार आर्केस्ट्रा में कोई लड़की आपके सामने नाचे, तो उसे एक इंसान की तरह देखें, उसकी इज्जत करें। क्योंकि आपके घर में जो खुशी आई है, वो किसी के आंसुओं का कारण न बने।
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चैंपियंस ट्रॉफी की तैयारी जोरों पर है! ⚡🏆 कोई और खिलाड़ी होता तो अपनी फॉर्म सुधारने की कोशिश करता, लेकिन विराट कोहली ने, अपनी बैटिंग से ज्यादा युवा खिलाड़ियों की प्रैक्टिस को प्राथमिकता दी। उन्होंने अपने विकेट की कुर्बानी दी ताकि टीम के युवा बल्लेबाज लय में लौट सकें! ऐसा निःस्वार्थ (selfless) परिपक्व खिलाड़ी इस सदी में एक-दो बार ही देखने को मिलता है! FREE PR team 😂😂
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@JaikyYadav16 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे लोगों को मंच पर बुलाकर अवार्ड देते हैं ऐसे अश्वील व्यक्ति का शो बंद होना चाहिए।
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"कुछ लोग इलाहाबाद नहीं, सीधे पाताल लोक जाने की इच्छा रखते हैं। जिन्हें अपने ही जन्म के कारणों में इतनी रुचि है, वे शायद अपने अस्तित्व पर भी शोध कर रहे होंगे! विज्ञान आगे बढ़ा है, लेकिन दिमाग पीछे दौड़ रहा है। ऐसे लोगों को संस्कारों का अपग्रेडेशन तुरंत करवाना चाहिए—वरना समाज इन्हें '404 एरर: मॉरलिटी नॉट फाउंड' घोषित कर देगा!" अगर किसी और शैली में कटाक्ष चाहिए तो बता सकते हैं!
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