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Lalit Kumar
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New Delhi
Joined July 2010
कलाराम राजपुरोहित अहमदाबाद मेट्रो में व्हीलचेयर पर अपने सफ़र के अनुभव को इस आलेख में बता रहे हैं। वे अहमदाबाद मेट्रो स्टेशनों पर उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी भी दे रहे हैं। @MetroGMRC
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आज ऑडियो बुक्स और वॉइस-टू-टेक्स्ट का ज़माना है लेकिन एक लम्बे समय तक दृष्टिहीन व्यक्तियों के पास पढ़ने और लिखने के लिये ब्रेल लिपि ही एकमात्र ज़रिया थी। विश्व ब्रेल दिवस लुई ब्रेल के जन्मदिवस, यानि 4 जनवरी को मनाया जाता है। #WorldBrailleDay #BrailleDay
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@NANDKISHORJAJR1 कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिये। वैसे चाहो तो कोशिश करके अपना प्रमाण पत्र ठीक करवा सकते हो।
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एक अंतर्राष्ट्रीय बैंक के मुख्यालय से आज एक ग्लोबल लेक्चर में बैंक कर्मियों को संबोधित किया और विकलांगता से संबंधित विषयों उनके प्रश्नों के उत्तर दिये। बैंक परिसर में पहुँच कर सुगम्यता के मामले में स्पष्ट-रूप से वह अंतर दिखा जो भारतीय संस्थानों के परिसरों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के परिसरों में बहुधा दिखाई देता है। बैंक का पूरा परिसर पूर्ण-रूप से सुगम्य था... मैंने कोई एक-आध कमी खोजने की काफ़ी कोशिश की लेकिन कोई कमी नहीं मिली -- मेरे सभी पैमानों पर परिसर सोने की तरह खरा उतरा। इसके विपरीत भारतीय संस्थानों के परिसरों में या तो सुगम्यता होती ही नहीं है -- और यदि होती है तो अनमनी होती है। कुछ उदाहरण हो सकता अच्छे भी हों -- जैसे कि मुझे लगता है कि बेंगलुरु में इंफ़ोसिस का परिसर पूर्णत: सुगम्य होगा -- लेकिन मैं कभी इंफ़ोसिस नहीं गया हूँ तो कह नहीं स���ता। हालांकि मैं इन अमीर संस्थानों को उदाहरण के रूप में पेश नहीं करना चाहता -- मैं विशेष-रूप से भारत सरकार के अधीन आने वाले परिसरों को उदाहरण-स्वरूप प्रस्तुत करना चाहता हूँ -- लेकिन सरकारी परिसरों की सुगम्यता मुझ जैसे व्हीलचेयर प्रयोक्ताओं के लिये तो छोड़िये, अन्य लोगों के लिये भी अक्सर सिरदर्द का विषय होती है।
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कड़ी से कड़ी जुड़ती है... आज हम राँची के धनैसोसो क्षेत्र में चार बच्चों को व्हीलचेयर उपलब्ध करवा सके। इन बच्चों के माता-पिता साल भर से प्रशासन से गुहार कर रहे थे कि इन्हें व्हीलचेयर की आवश्यकता है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। १) बोकारो के सुषेण दत्त ने इन बच्चों और इनकी वास्तविक ज़रूरत को वेरिफ़ाई किया। बच्चे बड़े हो रहे हैं... माता-पिता के लिये इन्हें गोद में उठाना मुश्किल हो रहा था। इनके पास इतने पैसे नहीं थे कि ये व्हीलचेयर खरीद सकें। बच्चों को मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार की विकलांगता है। २) तीन व्हीलचेयर्स के लिये बिलासपुर के माधव मजुमदार ("सेवा एक पहल" नामक एक पहल से प्रणेता) ने धनराशि एकत्र की और एक व्हीलचेयर के लिये पैसे मैंने अपनी ओर से दिये। इस धनराशि से माधव ने राँची में व्हीलचेयर्स की खरीद की। ३) राँची की हमारी स्वयंवेसवक बीना कुमारी ने आज व्हीलचेयर्स को दुकान से पिक किया और पंद्रह किलोमीटर दूर धनैसोसो लेकर गईं। मेरे बार-बार कहने पर भी बीना ने ट्रांस्पोर्ट का खर्च नहीं बताया और उसे ख़ुद ही वहन किया। ४) स्थानीय आंगनवाड़ी सेविका मुन्नी कुमारी ने बच्चों और उनके माता-पिता को सुविधाजनक स्थान पर एकत्र किया और बीना ने व्हीलचेयर्स इन बच्चों को उपहार-स्वरूप दे दी। बीना ने मुझे बताया कि इन बच्चों के चेहरे की खुशी और माता-पिता के दिल में राहत को स्पष्ट-रूप से अनुभव किया जा सकता था। इस कार्य के लिये सभी संबधित साथियों को धन्यवाद! विश्व है हमारा... हम हैं ईवारा!
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