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Lalit Kumar

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New Delhi
Joined July 2010
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
25 days
@Tejveersingh80 सही कहते हो तेजवीर
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
29 days
कलाराम राजपुरोहित अहमदाबाद मेट्रो में व्हीलचेयर पर अपने सफ़र के अनुभव को इस आलेख में बता रहे हैं। वे अहमदाबाद मेट्रो स्टेशनों पर उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी भी दे रहे हैं। @MetroGMRC
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
1 month
अभी तुम्हारी नौकरी चल रही खर्चा-पानी निकल रहा है, कहाँ आजकल विकलांगजन को नौकरी मिल रही है? तुम चुपचाप शांत होकर अपना काम करती रहो। ज़्यादा हीरोइन बनने की कोशिश मत करो।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
1 month
आज ऑडियो बुक्स और वॉइस-टू-टेक्स्ट का ज़माना है लेकिन एक लम्बे समय तक दृष्टिहीन व्यक्तियों के पास पढ़ने और लिखने के लिये ब्रेल लिपि ही एकमात्र ज़रिया थी। विश्व ब्रेल दिवस लुई ब्रेल के जन्मदिवस, यानि 4 जनवरी को मनाया जाता है। #WorldBrailleDay #BrailleDay
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 months
अगर बात आम लोगों की करें तो दिव्यांग तो दूर कोई विकलांग कहकर भी संबोधित नहीं करता है विकलांगजन को। लंगड़ा, अंधा, काणा, बहरा, पगलैट, टुंडा, गूंगा, हकला, जैसे उपहासजनक शब्दों का प्रयोग किया जाता है विकलांगों के लिए।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 months
लगभग मुफ़्त में बनने और प्रसारित होने वाला यह कंटेंट हर तरह की ज़िम्मेदारी से रिक्त होता है। मोबाइल कैमरा इन युवाओं के हाथों में उसी तरह है जैसे बंदर के हाथ में उस्तरा।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 months
@NANDKISHORJAJR1 कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिये। वैसे चाहो तो कोशिश करके अपना प्रमाण पत्र ठीक करवा सकते हो।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 months
पुर्तगालियों द्वारा 1612 में बनाये गये अगुआदा किले में आप व्हीलचेयर पर जा सकते हैं। इस किले में अधिकांश जगह जाने के लिये रैम्प बनी हैं — लेकिन कुछ जगहों पर रैम्प काफ़ी खड़ी हैं और आपको इनके ऊपर जाने के लिये किसी की मदद की आवश्यकता पड़ सकती है।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
1 year
@korilkumar6 धन्यवाद कोरील! 🙂🙏
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 years
शशि सिंह लिखती हैं कि ‘लंगड़ा आम’ का नाम विकलांगजन के प्रति असंवेदनशील है और भाषाई त्रुटि को सुधारा जाना चाहिये। उनके अनुसार आम की इस प्रजाति का नाम ‘बनारसी आम’ रखा जाना चाहिये।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 years
संजीव शर्मा अपने इस आलेख में विकलांगता से जुड़े कुछ मिथकों के बारे में बता रहे हैं और साथ ही इन मिथकों का खंडन करते हुए इनकी वास्तविकता को भी उजागर कर रहे हैं।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 years
डॉली परिहार तीन भागों की इस शृंखला में नेशनल एसोसिएशन फ़ॉर ब्लाइंड (NAB) से जुड़ी अपनी कुछ यादों को साझा कर रही हैं। इस पहले भाग में वे बता रही हैं कि कैसे वे NAB के सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखने गईं।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 years
RT @s_bharatwasi: बधाई @SamyakLalit
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 years
In a world where you can be anything: Be Kind
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 years
विकलांगजन में भी प्रेम की चाह होती है, उनमें भी नार्मल लोगों की ही तरह हार्मोन्स होते हैं, इस का सबूत है विकलांग लड़कियों के पीरियड्स, अब जब कुदरत ही भेदभाव नहीं करती नार्मल और विकलांग में तो इस समाज को भी भेदभाव नहीं करना चाहिए।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 years
@MinakshiAdheer जानकारी के लिये धन्यवाद 🙂🙏 इसे मैंने प्रसारित कर दिया है।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 years
एक अंतर्राष्ट्रीय बैंक के मुख्यालय से आज एक ग्लोबल लेक्चर में बैंक कर्मियों को संबोधित किया और विकलांगता से संबंधित विषयों उनके प्रश्नों के उत्तर दिये। बैंक परिसर में पहुँच कर सुगम्यता के मामले में स्पष्ट-रूप से वह अंतर दिखा जो भारतीय संस्थानों के परिसरों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के परिसरों में बहुधा दिखाई देता है। बैंक का पूरा परिसर पूर्ण-रूप से सुगम्य था... मैंने कोई एक-आध कमी खोजने की काफ़ी कोशिश की लेकिन कोई कमी नहीं मिली -- मेरे सभी पैमानों पर परिसर सोने की तरह खरा उतरा। इसके विपरीत भारतीय संस्थानों के परिसरों में या तो सुगम्यता होती ही नहीं है -- और यदि होती है तो अनमनी होती है। कुछ उदाहरण हो सकता अच्छे भी हों -- जैसे कि मुझे लगता है कि बेंगलुरु में इंफ़ोसिस का परिसर पूर्णत: सुगम्य होगा -- लेकिन मैं कभी इंफ़ोसिस नहीं गया हूँ तो कह नहीं स���ता। हालांकि मैं इन अमीर संस्थानों को उदाहरण के रूप में पेश नहीं करना चाहता -- मैं विशेष-रूप से भारत सरकार के अधीन आने वाले परिसरों को उदाहरण-स्वरूप प्रस्तुत करना चाहता हूँ -- लेकिन सरकारी परिसरों की सुगम्यता मुझ जैसे व्हीलचेयर प्रयोक्ताओं के लिये तो छोड़िये, अन्य लोगों के लिये भी अक्सर सिरदर्द का विषय होती है।
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 years
कड़ी से कड़ी जुड़ती है... आज हम राँची के धनैसोसो क्षेत्र में चार बच्चों को व्हीलचेयर उपलब्ध करवा सके। इन बच्चों के माता-पिता साल भर से प्रशासन से गुहार कर रहे थे कि इन्हें व्हीलचेयर की आवश्यकता है लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। १) बोकारो के सुषेण दत्त ने इन बच्चों और इनकी वास्तविक ज़रूरत को वेरिफ़ाई किया। बच्चे बड़े हो रहे हैं... माता-पिता के लिये इन्हें गोद में उठाना मुश्किल हो रहा था। इनके पास इतने पैसे नहीं थे कि ये व्हीलचेयर खरीद सकें। बच्चों को मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार की विकलांगता है। २) तीन व्हीलचेयर्स के लिये बिलासपुर के माधव मजुमदार ("सेवा एक पहल" नामक एक पहल से प्रणेता) ने धनराशि एकत्र की और एक व्हीलचेयर के लिये पैसे मैंने अपनी ओर से दिये। इस धनराशि से माधव ने राँची में व्हीलचेयर्स की खरीद की। ३) राँची की हमारी स्वयंवेसवक बीना कुमारी ने आज व्हीलचेयर्स को दुकान से पिक किया और पंद्रह किलोमीटर दूर धनैसोसो लेकर गईं। मेरे बार-बार कहने पर भी बीना ने ट्रांस्पोर्ट का खर्च नहीं बताया और उसे ख़ुद ही वहन किया। ४) स्थानीय आंगनवाड़ी सेविका मुन्नी कुमारी ने बच्चों और उनके माता-पिता को सुविधाजनक स्थान पर एकत्र किया और बीना ने व्हीलचेयर्स इन बच्चों को उपहार-स्वरूप दे दी। बीना ने मुझे बताया कि इन बच्चों के चेहरे की खुशी और माता-पिता के दिल में राहत को स्पष्ट-रूप से अनुभव किया जा सकता था। इस कार्य के लिये सभी संबधित साथियों को धन्यवाद! विश्व है हमारा... हम हैं ईवारा!
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@SamyakLalit
Lalit Kumar
2 years
The third one is most generally applicable...
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