![समर सलिल سمر سلل✒️ (अनुपम चौहान) Profile](https://pbs.twimg.com/profile_images/1538180880887205888/iw9MpumQ_x96.jpg)
समर सलिल سمر سلل✒️ (अनुपम चौहान)
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रूबरू सच से!! जो सच है वो लिखते हैं,ना कि खुद बिकते हैं.....सच्चाई, साहस और सम्मान। 📹📸✒️ E-mail- [email protected] https://t.co/GpotnvKouf
Lucknow
Joined January 2014
#मीडिया_और_लोकतंत्र राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते राजनेताओं और मीडिया घरानों के बीच सांठगांठ के परिणामस्वरूप अक्सर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग होती है और असहमति की आवाज़ों का दमन होता है। धमकियाँ और हमले: पत्रकारों को शारीरिक हिंसा, उत्पीड़न और धमकी का सामना करना पड़ता है, खासकर जब वे भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन या सांप्रदायिक तनाव जैसे संवेदनशील मुद्दों को कवर करते हैं। कभी-कभी पत्रकारों को चुप कराने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिए राजद्रोह, मानहानि और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम जैसे कानूनों का दुरुपयोग किया जाता है। मीडिया संगठन, विशेष रूप से छोटे संगठन, वित्तीय बाधाओं का सामना करते हैं, जिसके कारण पत्रकारिता मानकों से समझौता हो��ा है और कॉर्पोरेट या राजनीतिक फंडिंग पर निर्भरता होती है। महात्मा गांधी का यह कथन कि “प्रेस की स्वतंत्रता एक अनमोल विशेषाधिकार है जिसे कोई भी देश त्याग नहीं सकता” आज के वैश्विक संदर्भ में दृढ़ता से प्रतिध्वनित होता है। भारत में, एक ��ीवंत और स्वतंत्र प्रेस न केवल संविधान में निहित एक मौलिक अधिकार है,बल्कि लोकतंत्र की आधारशिला भी है,जो एक प्रहरी,सूचना का प्रसारक और विविध आवाज़ों के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। हालाँकि, भारत में प्रेस की स्वतंत्रता की वर्तमान स्थिति विभिन्न चुनौतियों के कारण जांच के अधीन है। भारत में प्रेस स्वतंत्रता की वर्तमान स्थिति पर नज़र डाले तो भारत में एक विविध मीडिया परिदृश्य है जिसमें प्रिंट, प्रसारण और डिजिटल प्लेटफॉर्म शामिल हैं। हालाँकि यहाँ काफी हद तक स्वतंत्रता है, फिर भी प्रेस की स्वतंत्रता और अखंडता के संबंध में चिंताएँ उठाई गई हैं। सेंसरशिप, स्व-सेंसरशिप, राजनीतिक हस्तक्षेप और पत्रकारों पर हमलों की घटनाओं ने प्रेस की स्वतंत्रता के क्षरण के बारे में चिंता बढ़ा दी है। राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते राजनेताओं और मीडिया घरानों के बीच सांठगांठ के परिणामस्वरूप अक्सर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग होती है और असहमति की आवाज़ों का दमन होता है। धमकियाँ और हमले: पत्रकारों को शारीरिक हिंसा, उत्पीड़न और धमकी का सामना करना पड़ता है, खासकर जब वे भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन या सांप्रदायिक तनाव जैसे संवेदनशील मुद्दों को कवर करते हैं। कभी-कभी पत्रकारों को चुप कराने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने के लिए राजद्रोह, मानहानि और सूचना प्रौद्योगिकी अधिन��यम जैसे कानूनों का दुरुपयोग किया जाता है। मीडिया संगठन, विशेष रूप से छोटे संगठन, वित्तीय बाधाओं का सामना करते हैं, जिसके कारण पत्रकारिता मानकों से समझौता होता है और कॉर्पोरेट या राजनीतिक फंडिंग पर निर्भरता होती है। इंटरनेट ने मीडिया की पहुंच का विस्तार किया है, इसने गलत सूचना और फर्जी खबरों के प्रसार को भी ��ढ़ावा दिया है, जिससे पारंपरिक मीडिया आउटलेट्स की विश्वसनीयता कम हो गई है। यह बहुत शर्मनाक बात है कि हमारे जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की आजादी की स्थिति पर कोई खतरा मंडराये। इस स्थिति के लिए किसी एक व्यक्ति या एक संस्था को जिम्मेवार मानना बहुत गलत होगा। लेकिन, इसके साथ ही यह भी सत्य है कि यह हमारे लिए आत्मचिंतन का समय है। यह आत्मचिंतन सरकारों को करनी है, नेताओं को करनी है, पत्रकार बंधुओं को करनी है, रिपोर्टरों को करनी है और खास तौर पर पत्रकारिता संस्थानों के मालिकों को करनी है, कि हम किस तरह की पत्रकारिता चाहते हैं। आज यह आत्मचिंतन का विषय है कि हम क्यों पत्रकार बने या आनेवाली पीढ़ियों में कोई क्यों पत्रकार बने। आज ये सवाल हमें अपने आप से पूछने हैं। साथ ही, किसी रैंकिंग आदि को देख कर यह समझना भी गलत है कि हम (प्रेस) बिल्कुल भी आजाद नहीं है। लेकिन, इतना सच जरूर है कि मीडिया में- खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में- आजकल खबरें कम, एजेंडा ज��यादा चलाया जा रहा है। यहीं आकर सबसे ज्यादा गलतियां होती हैं, क्योंकि खबरों को इकट्ठा करनेवालों पर संस्थान मालिकों का दबाव होता है। ज्यादातर तो मालिक ही संपादक होते हैं, जो एजेंडा चलाये जाने के जाल में फंस जाते हैं। दरअसल, एजेंडा चलाना आज के दौर में मीडिया का बिजनेस मॉडल है और यह मॉडल जब तक रहेगा, तब तक तो प्रेस पर सवाल उठते रहेंगे कि आखिर वह कितना आजाद है और उस पूंजी कितनी हावी है। यहां पर एक बा��� बड़ी महत्वपूर्ण हो जाती है। वह यह कि मौजूदा दौर की वेब पत्रकारिता यानी डिजिटल मीडया इस बिजनेस मॉडल से थोड़ी अप्रभावित है, क्योंकि इसे चलाने में कम खर्च होने के चलते इस पर दबाव कम रहता है। मीडिया को सद्प्रवृत्तियों के अभिवर्द्धन हेतु भी आगे आना चाहिये। अब समय आ गया है कि मीडिया अपनी शक्ति का सदुपयोग जनहित में करे और समाज का मागदर्शन करे ताकि वह भविष्य में भस्मासुर न बन सके।
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श्रद्धालुओं की सुगम यात्रा के लिए परिवहन निगम चलायेगा 2250 अतिरिक्त बसे – दयाशंकर सिंह . @UPSRTCHQ @dayashankar4bjp
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वित्त मंत्री न��� संसद में पेश किया New Income Tax Bill, होंगे ये बड़े बदलाव . #NewIncomeTaxBill @nsitharamanoffc @nsitharaman
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राज्यसभा में Wakf bill पर JPC Report पेश, Opposition का हंगामा और Walksout . #wawfbill #jpcreport
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श्रद्धालुओं को अब पार्किंग से शटल बसों के साथ मिलेगी ई-रिक्शा और ऑटो की सुविधा . @MahaaKumbh @MahaKumbh_2025 @AnityaKr
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अयोध्या न्यास द्वारा संचालि�� भंडारे में माघ पूर्णिमा पर रही श्रध्दालुओं की भीड़ . @LalluSinghBJP
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सनातन धर्मी पहली बार इतनी संख्या ��ें किसी धार्मिक पर्व पर उमड़े हैं- अस्मिता भंडारी . @AsmitaWhf
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महाकुंभ प्रयागराज : LU संस्कृत विभाग द्वारा किया जा रहा भारतीय संस्कृति के प्रसार का सम्यक प्रयास . @lkouniv @profalokkumar
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माघी पूर्णिमा स्नान सकुशल संपन्न, DGP बोले – ‘Build Back Better’ तकनीक से हुआ बेहतर . @dgpup @Uppolice @PrashantK_IPS90
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AWS स्थापना में हो रही देरी पर कृषि मंत्री ने जताई नाराज़गी, कंपनियों को दी चेतावनी . @spshahibjp @BaldevAulakh
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