वैराग में रहते हुए(वैरागी का वेष बनाकर नहीं)सतत ध्यान में लगते-लगते काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,मत्सर ये बहिर्मुखी प्रवृत्तियाँ जब भली प्रकार शान्त हो जाय तथा विवेक,वैराग्य,शम,दम,धारणा,ध्यान और समाधि भी परिपुष्ट हो जाय,इनमें स्थिति आ जाय तो उस समय वह ब्रह्म को जानने योग्य होता है।
राम🚩