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Priti Srivastava

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House wife N school manager (Only Sanatan) संघ शक्ति⚔🏹🚩'इदं न मम,इदं राष्ट्राय स्वाहा'

Mirzapur-Vindhyachal, India
Joined June 2020
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
2 years
#यथार्थ_गीता के प्रणेता #परमहंस_स्वामी_अड़गड़ानन्द_जी_महाराज की जय हो ।सभी ट्वीट श्री महाराज जी के श्री वाणी से है।इसलिए टिप्पणी करते समय अपने आत्मज्ञान का अवलोकन अवश्य करें । @Uppolice @mirzapurpolice किसी भी अपमानजनक टिप्पणी पर कठोर कार्यवाई करें ।⚔🏹🚩
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Priti Srivastava
2 years
#मीरजापुर आज मेरी हृदयकर्णिका बेटी #दिव्यता_श्रीवास्तव का जन्मदिन है ।इस अवसर पर आप अपने अमूल्य आशीर्वाद से अभीसिंचित करने की कृपा करें ।🙏🚩
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3 years
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3 years
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3 years
#NewProfilePic मेरे जन्मदिन के अवसर पर आप सभी के अमूल्य आशीर्वाद रूपी अमृत प्रदान करने के लिए ह्रदय की अनंत गहराइयों से बहुत बहुत आभार ।
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3 years
#मीरजापुर आज मेरी तनया दिव्यता श्रीवास्तव का जन्मदिन है ।अतः इस अवसर पर आप अपने अमूल्य आशीर्वाद रूपी अमृत प्रदान करे ।मेरी बच्ची सदा ऐसे ही हंसती और मुस्कराती रहों । #जन्मदिन 🎂🥓🍰🍫🌷🚩
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Priti Srivastava
2 years
#NewProfilePic जय जय श्री राम ।
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3 years
जय जय श्री राम । 🙏🙏⚔🏹🚩
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1 year
#NewProfilePic जय जय श्री राम ।🏹⚔🚩
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3 years
"भजन एक ऐसी वस्तु है जो कहने सुनने में नहीं आती है यह किसी तत्वदर्शी महापुरुष द्वारा किसी किसी अनुरागी व्यक्ति के ह्रदय में जागृत कर दी जाती है ।" उमा राम प्रभाव जेहिं जाना। ताही भजन तजि भाव न आना ।। जय श्री कृष्ण ।🚩
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3 years
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2 years
तत्वदर्शी महापुरुष की शरण जाकर निष्कपट भाव से सेवा और प्रश्न कर तू उस ज्ञान को प्राप्त कर,जिसकी प्राप्ति से सभी पाप समूल नष्ट हो जाते हैं ।'ॐ'यह अक्षय ब्रह्म का परिचायक है,इसका जप कर और ध्यान मेरा धर । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
यदि तकदीर फूट जाय,घोर यातनाएँ लिख दी जायँ,तब भी सदगुरू रक्षा कर सकते हैं और यदि सदगुरू ही उपलब्ध नहीं हैं तो भगवान नाम की कोई वस्तु पहचान में नहीं आती ।भगवान हृदय देश में ही है;किन्तु यदि सदगुरू नहीं है तो उसकी पहचान नहीं । जय जय श्री राम ।🏹🚩
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3 years
राम कौन?'राम ब्रह्म चिनमय अबिनाशी।'जो व्यापक है,चिन्मय है,कण-कण में है,अविनाशी है,उसी का दूसरा नाम राम है।अस्तु इष्ट कौन है?एक परमतत्व परमात्मा!जो उसपर निर्भर रहकर अपने कार्य में रत रहता है,समृद्धि अकारण ही उसका वरण करती है ।परलोक एवं परमश्रेय की व्यवस्था आपके लिए सुरक्षित है ।🚩
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4 years
मुझे ईसाइयों का भय नहीं है ,मुसलमानों का तो कत्तई भी नहीं है ।मुझे भय है उन हिन्दुओं से जो हिन्दू होकर भी हिन्दुओं का विरोध करने पर तुले हुए हैं ।
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3 years
"जब तक इष्टदेव रथी होकर श्वास-प्रश्वास पर रोकथाम न करने लगें,तब तक भजन आरम्भ ही नहीं होता ।"जब तक जिस परमात्मा की हमें चाह है वह,जिस स्तर पर हम खड़े हैं उस स्तर पर उतरकर आत्मा से अभिन्न होकर जागृत नहीं हो जाता,तब तक सही मात्रा में भजन का स्वरूप समझ में नहीं आता । जय श्री कृष्ण।🚩
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2 years
जो जन्म-मरण का कारण बनता है वह पापकर्म है और जो उससे उबार कर शाश्वत परम धाम दिला दे वह पुण्य कर्म है ।यह पुण्य एक परमात्मा में श्रद्धा स्थिर करने और उसके लिए निर्धारित क्रिया के करने से मिलता है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
"इससे बड़ी हानि क्या होगी कि आदमी संसार भर का वैभव पा जाय;किन्तु अपनी आत्मा को ही खो दे ।पहले ईश्वर के राज्य में प्रवेश पा लो,बाकी सभी चीजें तुम्हें अपने आप मिल जायेंगी ।" जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
वैदिक युग में घर-घर जाकर शाश्वत परमात्मा का बोध कराना पुरोहित का कर्तव्य था।उपर्युक्त अवसरों पर वेद के पुरुष-सूक्त ऋचाएँ पढ़ी जाती थी इसके साथही प्रिय लगने वाली वस्तुएँ दी जाती थी।हर वस्तु को धारण करते समय परमात्मा की विभूतियों का स्मरण होता रहे यह मन्त्र उच्चारित किया जाता था।🚩
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2 years
असत् वस्तु का अस्तित्व नहीं है और सत् वस्तु का तीनों काल में अभाव नहीं है ।यह आत्मा ही सत्य है,आत्मा परम सत्य है,आत्मा ही सनातन है और ये सम्पूर्ण भूतादिकों के शरीर नाशवान हैं ।इनका कोई अस्तित्व ही नहीं है ।आत्मा ह��� शाश्वत है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
पाप वह है जो पतन की ओर ले जाय,नीचे गिराये न केवल परलोक में अपितु इस लोक में भी जीवन दुःख मय बना दे और पुण्य कर्म वह है जो पूर्णत्व प्रदान करे इस लोक में आपको भरा पूरा रखे और परलोक में शाश्वत धाम दिला दे । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
किताबों को रटनेवाला वेदज्ञ नहीं है ।वेद किसी पुस्तक का नाम नहीं है,बल्कि इसी प्राण-अपान के चिन्तन की क्रिया से चलकर अविदित परमतत्व परमात्मा को विदित करने के साथ मिलने वाली उस अनुभूति का नाम है वेद,उस अनुभूति का नाम है ज्ञान । जय जय श्री राम ।🏹⚔🚩
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3 years
आरम्भ में तामसी गुण का बाहुल्य रहता है,उस समय भव का थाह मिलता है लीला गायन से,नाम जप से ।दीर्घकाल तक सेवा चिन्तन चलते रहने पर वही साधक द्वापर श्रेणी में परिणत हो जाता है ।कलियुग से सीधे भवसागर से पार नहीं होंगे बल्कि द्वापर में प्रवेश मिलेगा । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
बड़े भाग्य से मनुष्य शरीर मिला है।यह देवताओं को भी दुर्लभ है।देवता अच्छी करनी के फलस्वरूप भोगमात्र भोगते हैं,किन्तु स्वर्ग भी स्वल्प है इसलिए देवता भी मानव तन से आशावान हैं।यह शरीर साधन का धाम है,मुक्ति का दरवाजा है।इसको पाकर जिसनेअपना परलोक नहीं सुधारा,वह जन्मान्तर दुःख पाता है।
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3 years
सरस्वती बोली,"किसी शुभ कार्य में विघ्न डलवाते तुम्हें शर्म नहीं आती।राम के वन जाने से उन्हें कितना कष्ट होगा?अवध अनाथ हो जायेगा,लोग मुझे क्या कहेंगे?देवता विनय करते ही रह गये।अयोध्या वालों की चिन्ता आप क्यों करती हैं?वे तो जीव हैं।कर्म के अनुरूप सुख-दुःख भोगते ही रहते हैं। राम 🚩
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2 years
#NewProfilePic जय जय श्री राम ।
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3 years
पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने जिसकी स्तुति की थी,इन्द्र ने चारों दिशाओं में जिसे व्याप्त जाना था,उस परमपुरूष को जो जानता है वह यहीं,इसी जन्म में अमृतपद प्राप्त कर लेता है ।इसके अतिरिक्त अमर होने का कोई भी मार्ग नहीं है ।उस एकमात्र परमेश्वर पर विश्वास लाना चाहिए। जय जय श्री राम ।🚩
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2 years
वैसे धर्म शब्द 'धृ' धातु से बना है,जिसका अर्थ है धारण करना ।'धारयतीति धर्मः।'परमात्मा ही सबको धारण करने में सक्षम है,वही एकमात्र धर्म है ।धर्म वह है कि जब हम उसकी ओर झुकाव ले तो वह हमें धारण कर ले,मार्ग बताने लगे,उँगली पकड़ कर चलाने लगे,हृदय से रथी हो जाय । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
सृष्टि में धर्म एक ही है-अमृत-तत्व की प्राप्ति,सदा रहनेवाले शाश्वत धाम की प्राप्ति ।चराचर जगत् का धर्म एक ही है ।यदि धर्म भी दो हैं तो एक में धोखा है,जरूर धोखा है।'धर्म 'शब्द आज केवल विशेषण बन कर रह गया है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
कर्म,वचन और मन से भी किसी को पीड़ा न पहुँचाना अहिंसा है ।समाज में प्रचलित अहिंसा महापुरुषों के इसी स्तर की नक़ल है ।वस्तुतः अहिंसा क्रमागत चिन्तन-पथ का अंग है ।आत्मिक पथ पर चलकर विश्व में कोई भी अहिंसक हो सकता है और आप भी । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
सर्वत्र भगवान हैं ऐसा मानकर बैठ जाने की जरूरत नहीं है ।साधन द्वारा चलने पर,उस अवस्था के आने पर वह चींटी मारने में,पत्ती तोड़ने तक में दर्द महसूस करने लगता है ।यह अहिंसा का एक स्तर है,श्रेणी है;लेकिन यह अहिंसा स्थली साधन द्वारा ही सुलभ होती है । जय श्री कृष्ण ।🚩
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3 years
दुनिया में सब प्राणी मेरे ही हैं ।किसी भी प्राणी से न मुझे प्रेम है न द्वेष,मैं तटस्थ हूँ;किन्तु जो मेरा अनन्य भक्त है,मैं उसमें हूँ वह मुझमें है ।अत्यंत दुराचारी,जघन्यतम पापी ही कोई क्यों न हो,फिर भी अनन्य श्रद्धा भक्ति से मुझे भजता है,तो वह साधु मानने योग्य है। जय श्री कृष्ण।🚩
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2 years
जो मेरी शरण होकर जरा-मरण से छूटने के लिए यत्न करते हैं वे उस ब्रह्म को जानते हैं,सम्पूर्ण कर्मों सहित मुझको जानते हैं और मुझे जानकर तत्क्षण मुझमें सदा-सदा के लिए स्थित हो जाते हैं अर्थात पुण्यकर्म वह है जो जरा-मरण से छुटकारा दिलाता है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
पापी ही क्यों न हो,उस परमात्मा के परिचायक नाम का चिन्तन करें तो भवसागर का पार पा जायेंगे ।कोई पाप की राशि ही क्यों न हो,भगवान का आश्रय लेते ही शुद्ध हो जाता है ।नाम लेते ही वह परम पवित्र है ।संसार भर में यदि कोई निर्मल व्यक्ति है तो वह है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
योगे���्वर श्री कृष्ण ने कहा अर्जुन!असत् वस्तु का अस्तित्व नहीं है और सत् का तीनों काल में अभाव नहीं है ।तो क्या आप ऐसा कहते हैं?भगवान ने कहा "नहीं,तत्वदर्शीयों ने इसे देखा ।"न किसी भाषाविद ने देखा,न किसी समृद्धिशाली ने देखा ।मेरा आविर्भाव तो होता है लेकिन तत्वदर्शी ही देख पाता है।
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2 years
सभी महापुरुषों का एक ही निर्णय रहा कि दुःखों से बचने के लिए,शाश्वत शान्ति और भौतिक समृद्धि के लिए भी परमात्मा को विदित कर लेना आवश्यक है ।बड़ा नुकसान उठाया उन्होंने,जिसने भगवान को न जाना । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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Priti Srivastava
2 years
संसार भर के लिए एक ही पाप और एक ही पुण्य है जिसे प्राप्त करने के लिए सभी समान अधिकारी हैं ।भगवान का नाम पापरूपी रूई के लिए अग्नि है,काल की फाँसी कट जाती है ।किन्तु ज्ञानी पाप और पुण्य दोनों से लगभग पार है,इसलिए विशेष प्रिय है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
कथा भक्ति का ही एक अंग है ,आरम्भिक स्तर है ।मन्दगति से चलने वालों की अवस्था का प्रतीक है मन्दाकिनी,इसलिए पाप को नहीं 'पाप पोतक' पाप के बच्चों को ही खाने में सक्षम है ।कुछ ऐसा ही सरयू का स्वरूप है तथा अन्य तीर्थों का भी । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
प्राप्तिकाल में साधक पहले भगवान को देखता है;किन्तु दूसरे ही क्षण वह स्वयं में ही अजर,अमर,शाश्वत,सनातन इत्यादि गुणथर्मों से ओतप्रोत अपनी आत्मा को देखता है ।वह है तत्वदर्शी ।उन तत्वदर्शियों ने देखा कि आत्मा या परमात्मा शाश्वत है सनातन है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
धर्म के लिए झगड़े व्यर्थ हैं ।विश्वभर में धर्म एक है,यदि दो है तो धोखा है ।जिसमें सत्य नहीं,वह धर्म नहीं ।धर्म में सच्चाई नहीं है तो जीवन भी निरर्थक है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
अर्जुन!आत्मा ही मित्र है और आत्मा ही शत्रु है ।जिस पुरुष के द्वारा मनसमेत इन्द्रियाँ जीत ली गई हैं उसके लिए उसी की आत्मा मित्र बनकर मित्रता में बरतती है,परमकल्याण करनेवाली होती है और जिस पुरुष के द्वारा इन्द्रियाँ नहीं जीती गयी है उसके लिए उसी की आत्मा शत्रु है । जय श्री कृष्ण ।
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4 years
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3 years
मनु की कामना पर भगवान प्रकट हुए-'विश्वबास प्रगटे भगवाना।'कौन से भगवान?मनु ने देखा,जहाँ विश्व था सर्वत्र भगवान का वास दिखाई पड़ा ।जहाँ भी दृष्टि पड़ी,पत्थर-पानी में सब में उस प्रभु का स्वरूप छा गया ।जहाँ पहले विश्व दिखाई पड़ता था,भगवान सर्वत्र दिखाई पड़ने लगे । राम राम ।🚩
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3 years
जन्म से सभी शूद्र होते है;क्योंकि उत्पत्तिकाल में भजन ही शूद्र स्तर का होता है ।वैश्य,क्षत्रिय और ब्राह्मण स्तर विकास से हो जाते हैं ।जो भजन नहीं करता,वह तो शूद्र भी नहीं है,वह जड़ जीव मात्र है ।साधना की इन चार श्रेणियों को पार कर लेने पर साधक ब्राह्मण भी नहीं रह जाता। राम राम।🚩
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2 years
चार प्रकार के भव भवसिन्धु,भवसरिता,भवकूप और गोपद है ।चिन्तन करके ही भगवान को पाने का विधान है;किन्तु अपनी क्षमता के अनुसार लोग क्रमशः इन चारों सोपानों से चलते नहीं,उच्च क्षमताओं की नकल करने लग जाते हैं । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
सम्पूर्ण धर्मों की चिन्ता छोड़कर तू एक मेरी शरण में आ जा ।मैं तुझे सभी पापों से मुक्त कर दूँगा ।पहले कहा हृदयस्थ ईश्वर की शरण में जाने से पाप नष्ट होते हैं,फिर कहा तत्वदर्शी की शरण में जाने से पाप नष्ट होते हैं और यहाँ कहते हैं मेरी शरण में आ। जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
यदि मनुष्य राग और द्वेष से प्रेरित होकर ही कार्यो को करता रहेगा तो उसी प्रकार के संस्कार बनते रहेंगे,अन्तकाल में भी उन्हीं का चिन्तन रहेगा और इन संस्कारों के अनुरूप आगामी शरीर में भी वही करता रहेगा तो परमात्मा चिन्तन का मौका ही उसे कब मिला?जय जय श्री राम ।⚔🏹
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4 years
"वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना । वेदों में मैं सामवेद अर्थात पूर्ण समत्व दिलाने वाला गायन हूँ ।देवों में मैं उनका अधिपति इन्द्र हूँ और इन्द्रियों में मन हूँ;क्योंकि मन के निग्रह से ही मैं जाना जाता हूँ ।
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4 years
"भजन एक ऐसी वस्तु है जो कहने सुनने में नहीं आती है यह किसी तत्वदर्शी महापुरुष द्वारा किसी किसी अनुरागी व्यक्ति के ह्रदय में जागृत कर दी जाती है "। सदगुरूदेव भगवान की जय हो ।
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2 years
सनातन तो सदैव रहनेवाली सत्ता का नाम है ।वह सत्ता है ��रमात्मा ।एक ही परमात्मा सर्वत्र व्याप्त पहले भी था,आज भी है ।यदि परमात्मा भी दो हैं तो उनके व्याप्त होने के लिए अलग-अलग सृष्टि चाहिए ।वह एक ही है और रहेगा ।उस एक को खोजना ही धर्म है,जैसा की ऋषियों ने जाना था । जय जय श्री राम।🚩
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@PritiS_rivastav
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3 years
पहले नाम का निरूपण करें कि नाम है किस प्रकार?उसे जपा कैसे जाता है?श्वास में उठनेवाली धुन कैसे पकड़ में आती है?उसका प्रेरक कौन है?जब समझ काम कर जाय, तो उसके लिए यत्न करें।वह परमात्मा एक धाम है और उसमें प्रवेश का माध्यम है सदगुरू ही ।साधना करके उस परमात्मा को विदित किया जाता है ।🚩
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@PritiS_rivastav
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2 years
मीमांसाकार जैमिनी कहते हैं कि 'चोदनालक्षणोऽर्थो धर्मः।'ईश्वरीय आदेशों का पालन ही धर्म का लक्षण है ।अर्थात् जब तक हृदय से रथी होकर निर्देश न देने लगे और उसके अनुसार हम चलना आरम्भ न कर दे तब तक सही मात्रा में धर्म के लक्षण प्रगट ही नहीं हुए । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
2 years
ऐसा परमात्मा जो हृदय-देश में है,उसे विदित कैसे किया जाय?पहले तो नाम का निरूपण करना चाहिए कि नाम है क्या और जब समझ में आ जाय तो दिन-रात उसके लिए यत्न करें जिससे वह प्रकट हो जाय । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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@PritiS_rivastav
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2 years
भारतीय मनीषियों की अनुभूति में पुण्य की परिणति उस परमात्मा की प्राप्ति में है जो अनन्त किन्तु अनिर्वचनीय आनन्द स्वरूप है ।यह आनन्द भोग का नहीं अपितु आप्तकामता का है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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@PritiS_rivastav
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3 years
ब्रह्मा से उत्पन्न देवी देवता भी 'क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।'पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक में गिरते हैं,परवश हैं,उनकी पूजा अविधिपूर्वक होती है,अतएव देवी देवताओं की पूजा बन्द करके एक परमात्मा के प्रति आस्थावान होओ।पुरोहित बोध करा दें कि परमात्मा एक है, वही शाश्वत है। राम🚩
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@PritiS_rivastav
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3 years
हे माता!हमारे ऊपर बड़ी विपत्ति आ पड़ी है ।आप ऐसा कुछ कीजिए कि राम वन चले जायँ और देवताओं का काम हो जाय ।प्रार्थना पत्र दिया था कौशल्या ने कि हमारा कार्य पूर्ण हो जाय,लेकिन देवताओं ने कहा कि माता!हम देवताओं का कार्य हो जाय।उनको कर्म के सहारे छोड़िये ।आप देवताओं का हित देखिये। राम।
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
3 years
देवी और देवता ये भ्रान्तियाँ हैं।वही कवि है,पण्डित है,रणधीर है जिसका मन राम में अनुरक्त है।वही कुल धर्मपरायण है,नीति-निपुण और परम सयाना है,दक्ष तथा समस्त गुणों से युक्त है,वेद का सिद्धांत उसी ने भली प्रकार जाना है जिसका मन राम में अनुरक्त है।जो प्रणत का परिपालन करते है ऐसे राम।🚩
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@PritiS_rivastav
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2 years
धर्म के लिए हृदय में छटपटाहट भले ही हो किन्तु वस्तु तो तभी संभव होगी जब क्रिया उपलब्ध हो,एक परमात्मा में श्रद्धा हो ।एक परमात्मा की भक्ति सृष्टि का एकमात्र धर्म है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
3 years
सृष्टि में भगवान एक ही है दो नहीं हो सकते,अनेक नहीं हो सकते।वह कण-कण में व्याप्त है।यदि दूसरा भगवान है तो उसके लिए दूसरा संसार चाहिए,व्याप्त होने के लिए ।वह प्रभु रहता कहाँ है?वह प्रभु सबके हृदय में निवास करता है ।लेकिन दिखाई नहीं देता ।हाँ इसकी प्राप्ति सदगुरू अनुभवगम्य से है।🚩
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
3 years
देवता,मनुष्यादि चराचर जगत काल का कलेवा है ।देवता भी काल का कलेवा है,जलपान की सामग्री है ।आप कलेवा का भजन क्यों करते है?काल के भी काल,जगत के स्वामी भगवान राम का भजन क्यों नहीं करते?जो स्वयं मरणधर्मा है,वह आपको मृत्यु दे सकता है,मृत्यु से बचा नहीं सकता है । भजसि न मन तेहि राम को।🚩
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
3 years
करोड़ों-करोड़ों देवी-देवता उस परमतत्व परमात्मा के अंश मात्र हैं ।भगवान अरबों कामदेव के समान सुन्दर हैं।करोड़ों-करोड़ों दुर्गा के तुल्य शत्रु का नाश करने में सक्षम हैं ।अनन्त कोटि सरस्वतियों के समान वे चतुर हैं।पालन करने में करोड़ों विष्णु के और संहार में अरबों रूद्र के समान है।🚩
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
3 years
विषय,इन्द्रियाँ,उनके देवता और जीवात्मा ये सब (अवरोही क्रम से)एक की सहायता से एक क्रियाशील होते हैं और इन सबके ऊपर जो परम प्रकाशक हैं वही अनादि अवधपति राम हैं ।देवता भी जिसका प्रकाश लेकर प्रकाशित होते हैं,उस मूल परमात्मा का चिन्तन करें। सब कर परम प्रकासक जोई। राम अनादि अवधपति सोई।
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
3 years
गौतम के अहिंसा प्रचार से भारतीयों का शस्त्राभ्यास बन्द हो गया,मौर्य साम्राज्य का पतन हो गया,बुद्ध की निवृत्तमार्गी शिक्षा से भारत अकर्मण्य हो गया।कितनी उल्टी बात है कि उसी महापुरुष की शिक्षा से भारत अहिंसक हो गया और चीन हिंसक,भारत अकर्मण्य हो गया और जापान कर्मठता का कीर्तिमान।🚩
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
3 years
'ॐ ईशावास्यमिदं सर्व यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।' इसी अवस्था को जिन-जिन महापुरुषों ने पाया,सबने इसी निर्णय को दुहराया कि जो कुछ दिखायी-सुनायी पड़ता है सर्वत्र ईश्वर का वास है ।वह राम केवल भक्त के हृदय की वस्तु है,बाहर नहीं।उसे जानने के लिए एक परमात्मा में श्रद्धा का होना। राम राम ।🚩
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Priti Srivastava
2 years
सामान्य धर्म वे हैं,जिनका पालन सभी को करना था,जैसे किसी जीव को कष्ट न देना,सच बोलना,लेन-देन में ईमानदारी बरतना,दान-दया-क्षमा इसके साथ ही चोरी,व्यभिचार,अभक्ष्य भोजन,द्वेष,चुगलखोरी,छल-कपट इत्यादि का त्याग और तप इत्यादि काम्यकर्मों को अपने स्वार्थ के लिए न करना धर्म बताया गया। राम🚩
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2 years
वैराग में रहते हुए(वैरागी का वेष बनाकर नहीं)सतत ध्यान में लगते-लगते काम,क्रोध,लोभ,मोह,मद,मत्सर ये बहिर्मुखी प्रवृत्तियाँ जब भली प्रकार शान्त हो जाय तथा विवेक,वैराग्य,शम,दम,धारणा,ध्यान और समाधि भी परिपुष्ट हो जाय,इनमें स्थिति आ जाय तो उस समय वह ब्रह्म को जानने योग्य होता है। राम🚩
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2 years
राग और द्वेष से संसार के सम्पूर्ण प्राणी अति अज्ञानता को प्राप्त हो रहे हैं;किन्तु 'पुण्यकर्म 'करनेवाले जिन पुरूषों का पाप नष्ट हो गया है,वे राग-द्वेषादि द्वंद्वों से मुक्त हुए व्रत में दृढ़ रहकर मेरे को भजते हैं । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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4 years
"प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्। उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्"। जिनका मन पूर्णरूपेण शान्त है,जो पाप से रहित है,जिसका रजोगुण शान्त हो गया है,ऐसे ब्रह्म से एकीभूत योगी को सर्वोत्तम आनंद प्राप्त होता है,जिससे उत्तम कुछ भी नहीं है ।
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2 years
समाज के अन्तर्गत सदाचार और सद्व्यवहार भी पुण्य हैं जिनके अन्तर्गत सच बोलना पुण्य है,परोपकार पुण्य है,ईमानदारी पुण्य है।इन छोटे-छोटे स्तरों से चलते-चलते जो एक परमात्मा के सम्मुख कर दे,उस आत्मदर्शन की क्रिया का पालन भली प्रकार पुण्य है,भले ही बीच में स्वर्ग की कामना की गई हो। राम।
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2 years
मैंने उस परम पुरुष परमात्मा को भली प्रकार जान लिया है,जो प्रकाशस्वरूप और तम से परे है ।केवल उसी को जान लेने पर मृत्यु से छुटकारा मिल सकता है ।इसके अतिरिक्त अन्य कोई शाश्वत सुख का मार्ग नहीं है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
एक ही नाम को जपने के लिए कई श्रेणियाँ पार करनी पड़ती हैं ।'राम नाम में अन्तर है,कहीं हीरा है कहीं पत्थर है ।'नाम वही है,किसी ने चौबीस घण्टे जपा,कुछ कंकड़ हाथ लगा ।उसी नाम को किसी ने उतना ही जपा,हीरे हाथ लग गये । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
आत्मा ही मित्र है और आत्मा ही शत्रु है।जिस पुरुष के द्वारा मनसमेत इन्द्रियाँ जीत ली गई हैं उसके लिए उसी की आत्मा मित्र बनकर मित्रता में बरतती है,परमकल्याण करनेवाली होती है और जिस पुरुष के द्वारा इन्द्रियाँ नहीं जीती गयी हैं उसके लिए उसी की आत्मा शत्रु है,शत्रु बनकरशत्रुताबरततीहै।
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3 years
सभी विषय इन्द्रियों के स्पर्श मात्र हैं।एक इष्ट का चिन्तन करते-करते यही इन्द्रियाँ जिस दिन से वाह्य जगत में अपनी ख़ुराक ढूँढ़ना बन्द कर देती हैं,हृदयदेश में ही शब्द,स्पर्श ,रूप,रस और गन्ध का आशय इष्ट को बना लेती हैं,उस दिन से साधक भली प्रकार यम की योग्यता वाला हो जाता है । राम।🚩
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3 years
जो स्वयं बह रहा है,क्या वह आपको पार उतारेगा?जो स्वयं भव-प्रवाह से अपने को बचाने के लिए त्राहि-त्राहि कर रहा है कि हमें पार कर दो,वह आपको क्या पार करेगा?अतः देवता भी जिनसे शरण माँगते हैं आप सीधे उन्हीं भगवान को पकड़ें ।जो स्वयं अपनी विपत्ति में फँसा है वह आपकी कौन सी सहायता करेगा?
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3 years
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3 years
भगवान शंकर ने अपना जाना हुआ उपाय बताया कि भगवान कण-कण में समान रूप से व्याप्त हैं ।सम्पूर्ण ह्रदय से मन को समेट कर उनके चरणों में लगा दो,वे तुरन्त प्रकट हो जायेंगे ।उस विधि से स्तवन होते ही आकाशवाणी हुई कि तुम लोगों का दुःख हम दूर करेंगे । हरि ब्यापक सर्वत्र समाना।🚩
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3 years
देवाः अर्थात् दैवी सम्पद् को हृदय में उतारनेवाले साध्य,साध्याः अर्थात् परमात्मा के लिए साधन करनेवाली योगाभ्यासी तथा ऋषयः अर्थात् मन का निरोध करनेवाली ज्ञानी इन लोगों ने शरीरस्थ पुरुष को साधनों के द्वारा विशुद्ध किया,उसे अग्रजन्मा अर्थात् अग्रगण्य बनाया,पुरुषोत्तम बनाया। राम राम🚩
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2 years
भगवत्पथ में जिस विद्या का उपयोग है,उसे भगवान ही पढ़ाते हैं ।अतः जो व्यक्ति एक परमात्मा में अटूट श्रद्धा और ॐ अथवा राम (जो उस परमात्मा का परिचायक है) का स्मरण करता है,वह धर्म को न जानते हुए भी शुद्ध धार्मिक है। जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
धर्म के कई रूप मिलते हैं,जैसे विशिष्ट धर्म वह है जिसका पालन वर्ण-विशेष अथवा आश्रम विशेष के सदस्यों द्वारा आवश्यक ठहराया गया,जैसे अपनी जीविका के लिए ब्राह्मण अध्ययन-अध्यापन,यज्ञ और दान का आश्रय ले।क्षत्रिय रक्षाकार्य देखे।वैश्य कृषि,गो-रक्षा और व्यापार करे तथा शूद्र सेवा करे। राम।
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3 years
कर्म करते करते साधना इतनी सूक्ष्म हो गयी कि मन के निरोध के साथ वह आत्मा विदित हो गया,उसी से तृप्त और उसी में भली प्रकार स्थित है,आत्मभाव से परिपूर्ण है,ऐसे महापुरुष के लिए अब कर्म किये जाने से न कोई लाभ है और न छोड़ देने से कोई हानि ही है ;क्योंकि आगे कोई ऐसी सत्ता नहीं । ॐ🚩राम
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3 years
यदि मन-क्रम-वचन से मेरा प्रेम सच्चा है और राम के चरणों में निवास करता है तो वह भगवान हमें राम की दासी बना दें ।ह्रदयस्थ एक परमात्मा में श्रद्धा स्थिर होते ही 'कृपानिधान राम सबु जाना 'उस अन्तर्यामी ने जान लिया कि अब सच्चे स्थान पर पूजा कर रही है । जय जय श्री राम ।🚩
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3 years
शरीर का निधन शुद्ध अन्तकाल नहीं है ।मरने के बाद भी शरीरों का क्रम पीछे लगा रहता है ।संचित संस्कारों की सतह के मिट जाने के साथ ही मन का निरोध हो जाता है ।और वह मन भी जब विलीन हो जाता है तो वही पर अन्तकाल है,जिसके बाद शरीर धारण नहीं करना पड़ता है ।यह क्रियात्मक है। जय श्री कृष्ण🚩
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2 years
जो मुझ जन्म-मृत्यु से रहित,आदि-अन्त से रहित,सब लोकों के महान ईश्वर को साक्षात्कार के साथ विदित कर लेता है वही ज्ञानी है और सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।अतः ईश्वर के साक्षात्कार के साथ मिलनेवाली जानकारी का नाम ज्ञान है और साक्षात्कार के साथ ही पापों से पूर्णनिवृत्तिमिलती है।
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3 years
'कभी सतयुग था और आज कलियुग है 'ऐसी कोई बात नहीं है ।युगधर्म नित्य ही होते हैं ।एक ही समय में कोई सत्ययुगी तो दूसरा कलियुगी हो सकता है ।यह कैसे जाना जाय कि कौन सा युग कार्यरत हैं?जब तामसी गुण का बाहुल्य है,चारों ओर बैर विरोध है,तो यह कलियुग का प्रभाव है । जय जय श्री राम ।🏹⚔🚩
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2 years
वह प्रभु सर्वत्र वास करता है और सुमिरण से वह जागृत हो जाता है ।जागृत होकर अपने स्वरूप तक की दूरी तय करा लेता है ।यह सनातन सत्य है,इसलिए धर्म का नाम सनातन है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
"विषयों के चिन्तन से आसक्ति हो जाती है ।आसक्ति से उस विषय की कामना साधक के अन्तर्मन में होने लगती है ।कामना की पूर्ति में व्यवधान होने पर क्रोध,क्रोध से अविवेक,अविवेक से स्मृति भ्रम और स्मृति भ्रम से बुद्धि नष्ट हो जाती है ।निष्काम कर्मयोग को बुध्दियोग कहा जाता है ।"
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3 years
देवताओं ने प्राण द्वारा ओंकार की उपासना की ।असुरों ने प्राण को भी दूषित करना चाहा;किन्तु प्राण के समीप जाते ही असुर छिन्न-भिन्न हो गये ।देवताओं का यह यज्ञ सफ़ल हुआ ।स्पष्ट है कि इन्द्रियों का वासना से बिद्ध होना पाप है और उससे मुक्त होना पुण्य है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
प्रायः दो-तीन बहाने मनुष्य करता है कि मेरे तो कर्म में ही नहीं लिखा है-कर्म को दोष देना,समय अनुकूल नहीं है-काल को दोष देना और कर्ता-धर्ता तो भगवान हैं-ईश्वर को दोष देना।लेकिन भगवान स्वयं कहते हैं कि यदि मानव तन उपलब्ध है तो इनमें से किसी का भी दोष नहीं है,दोष अपना है। राम राम ।🚩
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3 years
भगवान जब कृपा करते हैं,आत्मा से रथी हो जाते हैं तो खम्भे से,वृक्ष से,पत्ते से,शून्य से हर स्थान से बोलते और सँभालते हैं ।उत्थान होते-होते जब परमतत्व परमात्मा विदित हो जाय,तभी स्पर्श के साथ ही वह स्पष्ट समझ पाता है ।मेरे इस स्वरूप को तत्वदर्शीयों ने देखा ।
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2 years
गर्भ में आप ही थे,क्या उस समय भी आपका यही नाम था?यही आगे भी रहेगा?कब तक?जो आपका है उस पर तो आपका अधिकार होना चाहिए,फिर आपके स्वजन असमय में ही क्यों चले जाते हैं?इसलिए वास्तव मे परमात्मा ही एकमात्र सत्य है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
धर्म के नाम पर प्रचारित इन रिवाजों में काव्य है,चरित्र संगठन है तथा सामाजिक व्यवस्था भी निःसंदेह है;किन्तु यह धर्म कैसे हो गया?एक समय वही आवश्यक था,आज बाधक है यह पहचानकर हम आदर के साथ उसका विसर्जन कर सकते हैं और इनके विसर्जन के दिन आये भी हैं । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
हम देवता लोग परम अधिकारी थे;लेकिन विषयों के वश में होकर आपकी भक्ति को भूल गये ।हम देवता परम 'दुखु पायो '।एक होता है दुःख और एक परम दुःख,उस परम दुःख से देवता भी आक्रान्त हैं ।देवता भी विषयों के वश में हैं ।आप उनकी सेवा करते हैं तो विषयों की सेवा करते हैं । राम राम ।🚩
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3 years
महाराज मनु घर-द्वार छोड़कर तपस्या करने नैमिषारण्य पहुँचे और चिन्तन में लग गये।उनका लक्ष्य क्या था?वे उपासक किसके थे?वे मन ही मन विचार कर रहे थे- वे भगवान जिनके अंश मात्र से अनेकों ब्रह्मा,विष्णु और शंकर पैदा होते हैं,सेवक के लिए उपलब्ध रहते हैं तो मैं उन्हीं का भजन करूँगा। राम।🚩
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2 years
इन्द्रियाँ,मन और बुद्धि पाप के वासस्थान कहे गये हैं,इसलिए पहले इन्द्रियों को संयत करके ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले इस कामरूपी पापी को ही मारना ।अर्थात् काम पापी है और इन्द्रियों को संयत करके इसे मारने का विधान है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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2 years
ईश्वर प्रदत्त निर्देशों का पालन करना अहिंसा है और यदि साधक इन आदेशों में कटौती करता है,इसकी अवहेलना करता है तो हिंसा है,वह हत्यारा है ।अहिंसा का शुद्ध अर्थ है एक परमात्मा का चिन्तन । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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3 years
भरत के हृदय में राम और सीता का निवास है ।वहाँ मेरी कपट और चतुराई नहीं चलेगी ।कौन है अन्धकार?देवता!प्रकाश क्या है?एक परमात्मा!जिसके हृदय में भगवान का निवास है,देवता उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते हैं ।अतः मन-क्रम-वचन से एक परमात्मा के प्रति समर्पित हो जायँ। 'भरत हृदय सिय राम निवासू।'🚩
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3 years
स्वरूप में स्थित महापुरुष सतर्क रहकर यदि आराधना-क्रम में न लगे रहें,तो समाज उनकी नक़ल करके भ्रष्ट हो जायेगा ।महापुरुष ने तो आराधना पूर्ण करके परम नैष्कर्म्य की स्थिति को पाया है ।वे न करें तो उनके लिए को हानि नहीं है;किन्तु समाज ने तो अभी आराधना आरम्भ ही नहीं की। जय श्री कृष्ण।🚩
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@PritiS_rivastav
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2 years
हम अच्छे कार्य ही क्यों करें?मनुष्य कर्मों का रचयिता है 'कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।'इस शरीर में अच्छे-बुरे कर्म द्वारा दोनों प्रकार के संस्कार बनाने और नष्ट करने की क्षमता है । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
2 years
जिसके द्वारा उसे देखा जाय,ऐसे छः शास्त्र सांख्य,योग,न्याय,वैशेषिक,मीमांसा और वेदान्त के नाम से प्रसिद्ध है;किन्तु इसके अनुयायी 'ईश्वर उपादान कारण अथवा निमित्त कारण?साधक अन्त में ईश्वर बन जाता है कि ईश्वर के समान?'इन्ही प्रश्नों के भ्रम में पड़े हुए हैं । जय जय श्री राम ।⚔🏹🚩
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@PritiS_rivastav
Priti Srivastava
3 years
भगवत्पथ में यदि कोई रुकावट है तो देवता हैं ।नारद ही नहीं,जो भी भजन में अग्रसर हुआ,देवताओं ने उसे गिराने का भरपूर प्रयास किया ।सामान्य मानव को भी वे इस पथ पर जाने नहीं देते। इन्द्रीं द्वार झरोखा नाना।तहँ तहँ सुर बैठे करि थाना।। आवत देखहिं बिषय बयारी।ते हठि देहिं कपाट उघारी।। राम🚩
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