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Praveen Kumar Makwana
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Senior Research Fellow ( JRF - Hindi, NET - Philosophy )
Jodhpur, India
Joined June 2016
राम की रजपूती, रजपूती के राम यूं तो प्रभु श्री राम गुणागार हैं, सकल गुणधाम हैं। सृष्टि का समस्त सत्त्व उनकी आत्मा में रमता है। उनकी मति मंदाकिनी-सी निर्मला है, उनका हृदय नव-पल्लवित कोंपल-सा पावन, अनाविल। राम कृपा सिंधु हैं। उनकी दृष्टि से पाप कटते हैं। राम ईश्वर हैं। राम धर्म का मूर्तिमान विग्रह हैं। किंतु, राम इतिहास पुरुष भी हैं। वह महान इक्ष्वाकु परम्परा में अवतरित क्षत्रिय-कुल-भूषण हैं। वह वेद-वेदांगों में पारंगत गुरुकुल अध्येता हैं, तो वह निष्णात धनुर्धारी भी हैं। जब राम चाप चढ़ाते हैं, तो त्रिलोक कंपित होता है। वह असाधारण योद्धा हैं। उनका रण-कौशल अद्वितीय है। राम क्षात्र-परंपरा के पर्याय पुरुष हैं। उनके रक्तवंशजों ने कुछ ही सही, उनके मूल्यों को आत्मसात् तो किया है। यह निर्विवाद है। अवधपति श्री राम रावण से लड़ने से पहले शक्ति की साधना करते हैं। शक्ति ही क्षत्रियों की ऊर्जा उत्स है। राम अपने तीर से अपनी आंख निकाल शक्ति को चढ़ाने को उद्यत हैं, कि शक्ति उनका हाथ पकड़ लेती हैं। जब पृथ्वीराज चौहान पर शत्रु चढ़ आए थे, वह शक्ति की साधना में लीन थे। महाराणा प्रताप दिवेर के युद्ध से पहले शक्ति की साधना का महत् अनुष्ठान कर रहे हैं। बिकाणे के गंगासिंह शेर से लड़ने से पहले मां करणी के ध्यान में इतना खो गए कि एक अंग्रेज की आवाज़ से उनका ध्यान टूटा। देखते ही देखते हमारी लोक-वार्ताएं ऐसे प्रसंगों से भर गईं, जिसमें एक राजपूत रण में शत्रुओं की लाशें बिछा रहा है और मां चामुण्डा उसे खांडे ( तलवार ) सौंपती जा रही है। राम "दैत्य वंश निकंदनम्" हैं। वह गौ, ब्राह्मण, स्त्री और जन्मभूमि के सच्चे पालक हैं। वह ताड़का वध करते हैं, वह दैत्यों-असुरों का चुन-चुन कर वध करते हैं। वह अहिल्या को तारते हैं। यहां कहा गया - धर जातां ध्रम पलटतां, त्रिया पड़न्ता ताव। तीन दिहाड़ा मरण रा, कवण रंक कुण राव।। इसका निर्वहन राजपूतों ने अपने प्राण देकर किया। राम शरणागत के प्रति वत्सल भाव से भरे हैं। शरण में आए की रक्षा राजा का कर्त्तव्य है - यह राम की क्षात्र परंपरा का मंत्र है। महाराणा हम्मीर ने अलाउद्दीन से आक्रांत विधर्मियों को शरण दी, यहां तक कि अपना पूरा परिवार उत्सर्ग कर दिया, लेकिन अपनी कुल परंपरा पर अटल रहे। रहते भी क्यों नहीं, सूर्यवंशी जो थे। सूर्यवंश से स्मरण आते हैं - वीरवर महाराणा प्रताप। जंगलों में रहे राम की भांति। राम के साथ थे वनवासी, महाराणा प्रताप के साथ भी वनवासी भील। उन्हीं से संगठन बनाया। एक जैसा सांगठनिक सूत्र। राम लक्ष्मण से कहते हैं - जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। प्रताप बीहड़ों में रहते हैं, लेकिन रह-रह उनका संकल्प उन्हें अपनी मातृभूमि की ओर खींचता है। गाडलिया लोहार तो इसका जीवंत प्रमाण हैं। उन्हें भी अकबर से अकूत स्वर्ण मिल सकता था, ज्यों राम को स्वर्णमयी लंका। लेकिन अपनी मातृभूमि से बढ़कर वैभव क्या होगा ? राम के लिए कहा गया - रामो विग्रहवान् धर्म:। एकलिंग के दीवान कहते हैं - जो दृढ़ राखै धर्म को, ताहिं राखै करतार। दुर्गादास के ने परम् बर्बर आक्रमणकारी औरंगजेब के पोता-पोती को यूं रखा जैसे अपनी संतति हों। उनके शिक्षा-दीक्षा तक की व्यवस्था की। क्योंकि औरंगजेब का पुत्र अकबर दुर्गादास पर विश्वास करते हुए उन्हें अपनी औलाद सौंपकर गया था। वह राठौड़-रत्न भला छल कैसे कर सकता था ? कालांतर में संधियां हुईं, लेकिन राजपूत कभी सनातन धर्म के मूल्यों से समझौता नहीं कर पाए। जब-जब बात मंदिर, गौ, ब्राह्मण की आई, तब-तब उन्होंने संधि की शर्तें फूंक मार उड़ा दीं। शूर्पणखा का परिणय-प्रस्ताव। इच्छा और आचार के सर्वथा प्रतिकूल। वीरमदेव सोनगरा के प्रति खिलजी की शहजादी फिरोजा का परिणय प्रस्ताव। दोनों के परिणाम हमें ज्ञात हैं। कलयुग में, जब तक प्रभु श्री राम का मंदिर नहीं बना। उनके वंशजों ने अपना सम्मान शीश से उतार रख दिया। पांच शताब्दियों तक पाग नहीं पहनी। शनैः शनैः स्थितियां एक सी नहीं रहतीं। हर अवस्था का उत्तरार्द्ध आता है। हर त्रेता का द्वापर आता है। युग का एक काल शापित होता है, चराचर को अपनी धुन में नचाने वाले योद्धा के पांव तीर से बिंध जाते हैं। और ... सुधर्मा सभाएं अपने अवसान को प्राप्त हो जाती हैं। जय राजा रामचन्द्र की 🙏 ~ प्रवीण कुमार मकवाणा
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किसी दिन, कभी कैफे लालटेन, जोधपुर की छत पर ... अग्रज जगमाल जी "ज्वाला" कृत शिवाष्टक। हिमांशु भाई ने रिकॉर्ड कर लिया और ताल प्रदान कर रहे हैं @ArunRajpurohit_ भाई। ( मैं हमारे राजस्थान की पुरातन चारण परम्परा की भांति तो छंद वाचन नहीं कर सकता; चूंकि महादेव की वंदना है, तो " न जानामि योगं जपं नैव पूजांनतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् " की तर्ज पर ... ) #शिवाष्टक #डिंगळ #राजस्थानी @8PMnoCM @Raj_yuva_samiti
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वामबुद्धि से प्रेरित होने, धर्म को अफीम कहने और ईश्वर का प्रतिकार करने का अर्थ आपका वैज्ञानिक चेतना से युक्त होना नहीं हो जाता। न कार्ल मार्क्स वैज्ञानिक थे, न लेनिन और न ही माओ। न प्रेमचंद वैज्ञानिक थे, न मुक्तिबोध थे और न ही रोमिला थापर वैज्ञानिक है। वैज्ञानिकों का भारतीय दर्शन पद्धति से विशेष अनुराग रहा है। उन्हें भारतीय दार्शनिकों की मेधा आकृष्ट करती रही है। वैज्ञानिक क्रमबद्ध ज्ञान को महत्त्व देते हैं, सनातन दर्शन परम्परा क्रमबद्ध ज्ञान की अक्षय निधि है। निस्संदेह वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध ज्ञान को स्वीकारते हैं; लेकिन वे अनुभव को नकारते नहीं। वे संभावनाशील होते हैं। वे स्पेस देते हैं, बनिस्पत खारिज़ करने के। विज्ञान लिबरल है। एक वैज्ञानिक द्वारा प्रदत्त सिद्धांत कालान्तर में कोई दूसरा वैज्ञानिक बदल देता है। विज्ञान इसे उन्नति कहता है, न कि अनादर। मैंने जितने बड़े वैज्ञानिकों, डॉक्टर्स को पढ़ा, सुना है; वे सब नेति-नेति के संवाहक हैं। जितनी गहरी मेधा, उतना ही विनम्र और स्वीकार बोध वाला व्यक्तित्व; अवबोध के प्रति आग्रही। ये सस्ती चरस लेकर ईश्वर और धर्म के विरुद्ध अनाप-शनाप बकने को वैज्ञानिक चेतना नहीं कहते, कॉमरेड।
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@dineshbohrabmr क्रिकेट की जानकारी नहीं है, तो रहन देते महाराज। कोई जबरदस्ती थोड़ी लिखवा रहा आपसे ?
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जाति असाध्य रोग है। यह जातिवाद की दीमक लगातार हमारा विवेक खाए जा रही है। हमारी जाति के नेता का विरोध, खिलाड़ी का विरोध, प्रशासनिक अधिकारी का विरोध, उद्योगपति का विरोध - अर्थात् हमारी पूरी जाति का विरोध। क्या ही दुर्गति हो रखी है ! "उत्कृष्ट का अभिनंदन, निकृष्ट का निंदन " जैसी भारतीय परम्परा निरंतर रसातल में जा रही है। नेताजी विपक्ष में होते हैं, तो जाति के किसी मुद्दे को आधार बनाकर समकालीन सरकार को घेरते हैं, पूरी जाति एक स्वर में कहने लगती है - हमारी जाति का नेता कैसा हो, फलाण जी जैसा हो। जैसे ही सरकार बदली, नेताजी गायब। फिर दूसरे नेताजी ... जाति के अधिकारी से न तो जाति का गौरव बढ़ता है और न ही जाति की प्रतिव्यक्ति आय, न ही सामूहिक चित्त की कोई उन्नति होती है। लेकिन लगे हुए हैं डिफेंड करने में ... न नेताजी को बजट समझ आता है और न ही अधिकारी को भाषा। तिस पर उन्हें अपने ही जैसे समर्थक मिल गए। सब धूड़ में लट्ठ कूट रहे ...
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RT @arvindchotia: एक घर तो डाकण ई छोडै... DIPR यानी सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय यह एकमात्र ऐसा विभाग है जिसे मीडिया वाले हमेशा ही "बख्श" क…
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स्त्री मन की संरचना अत्यन्त जटिल है, उसे बूझ पाना विराट संग्राम है। पुरुष, जो सृष्टि के कई रहस्य सुलझा चुका है, उसके लिए यह आज तक एक दुष्कर कार्य बना हुआ है। लगभग असंभव ही। एक, स्त्री मन एकरेखीय नहीं। तिस पर भावाधिक्य इतना कि उसके समक्ष पुरुष की तर्कणा अप्रभावी प्रतीत होती है। स्त्री की स्मृति में पुरुषों की भूलों की सटीक गणना रहती है। वह दबा सकती है, पचा नहीं पाती। इसलिए जब कभी स्त्री-पुरुष वाद होगा; इतिवृत्त मध्य में आ खड़ा हो जाएगा। पुरुष का अनुनय शुष्क होता है, नितान्त कृत्रिम। उसकी हृदय-भूमि स्त्री की भांति उर्वरा नहीं होती। वह अनुनय के क्रम में याचना के स्तर पर जाकर दोष ओढ़ता जाता है। फिर वह भूलकर्त्ता सिद्ध हो जाता है। स्यात् ही कभी बता भी आए कि उस दिन मेरी कोई भूल नहीं थी। पुरुष वाद से शीघ्र छुटकारा चाहता है, प्रत्युत्त स्त्री को वाद में रस मिलता है। वह विना तर्क विजयिनी होती है। क्योंकि उसके पास करुणाकलित क्रंदन है, अश्रु हैं। #स्त्री_मन_की_थाह ~ प्रवीण मकवाणा
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@dkj1308 @arvindchotia यह SDM साहब को कहिए, पहले अंग्रेजी सीख लें, ढंग से। फिर अंग्रेजी बोलें। यह कैसी दादागिरी है ? डॉक्टर साहब अपना काम कर रहे हैं, आंखों के सामने ड्रिप लग रही है, और क्या करेगा डॉक्टर ? वहीं खड़ा रहे, मरीज को देखता रहे, तो बाकी मरीजों का इलाज कौन करेगा ?
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लाखों की संख्या में ऐसे साधु सन्त हैं; जिनके पास न मठ है और न ही गाड़ी; न चंवर उठाती शिष्य मंडली है और न ही प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक की अप्रोच; लेकिन वे परम् आनंद में हैं; केवल इसलिए, क्योंकि उन्हें लगता है कि सनातन की विराट अवधारणा का क्षिप्रगति से रूपायन हो रहा है। उनकी आँखों में अटल आश्वस्ति है कि योगी जी के होते हुए संत समाज पर कोई आंच नहीं आएगी। आप गांव-देहात में भिक्षाटन करने वाले सामान्य बाबा जी से बात कर देख लीजिए; उनके भीतर मोदी जी और योगी जी के प्रति अपार आदर भाव दिख जाएगा। यद्यपि योगी जी नाथपंथी हैं; लेकिन समस्त सनातनी पंथ-संप्रदाय उन्हें अपना समझते हैं। जब योगी जी के साथ असीम जनसमर्थन हो, समस्त संत समाज उन पर अपना स्नेहाशीष वारता हो; ऐसे में एक दुर्व्याख्याकार कथित शंकराचार्य को गंभीरता से क्यों ही लेना चाहिए ? विरोध में एक "आवाज़" है, समर्थन में करोड़ों "स्वर" हैं। ~ प्रवीण कुमार मकवाणा
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योगी जी धर्मपरायणता के वास्तविक पर्याय-पुरुष हैं। महाकुंभ प्रयाग में हुई दुर्घटना में काल-कलवित हुए श्रद्धालुओं के प्रति कथन देते समय उनके आर्द्र-नेत्र बता रहे कि वह कितने संवेदनसिक्त मुख्यमंत्री हैं। वह सचमुच उत्तर प्रदेश परिवार के मुखिया हैं। उनका दूसरा पक्ष भी देश जानता है कि वह गुंडे, माफियाओं, अधर्मियों के विरुद्ध कितने निर्मम हैं। योगी जी असीम-औदार्य और कठोर अनुशासन की आवश्यक अन्विति हैं। यही राज-धर्म है; यही युग-धर्म है। यही चाणक्य-वृत्ति है; यही क्षत्रिय-वृत्ति है।
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RT @myogiadityanath: महाकुम्भ-2025, प्रयागराज आए प्रिय श्रद्धालुओं, माँ गंगा के जिस घाट के आप समीप हैं, वहीं स्नान करें, संगम नोज की ओर जा…
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