मैं धर्म के भरोसे रहती, मन्दिर की चौखट पर सारी ज़िन्दगी नाक रगड़ती, यज्ञ और हवन करती, धूप जलाती, पांच टाइम नमाज़ पढ़ती, चादर चढ़ाती सारी ज़िन्दगी
ईश्वर, अल्लाह को पुकारती तब भी मैं कभी चल नहीं पाती,
"विज्ञान" ना होता तो इन्सान अविष्कार ना करता, तो कभी मैं चल नहीं पाती...!!