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MahaKumbh 2025
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Prayagraj,Uttar Pradesh, India
Joined January 2021
सर्वसाधारण को सूचित किया जाता है कि प्रयाग जिला प्रशासन के आदेश अनुसार उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल का प्रयाग राज संगम स्टेशन दिनांक 9 फरवरी को अपराह्न 1:30 से दिनांक 14 फरवरी के रात्रि 12:00 बजे तक यात्री आवागमन के लिए बंद रहेगा । साथ ही यह भी अवगत कराना है कि महाकुंभ क्षेत्र में आने वाले अन्य आठ स्टेशनों प्रयागराज छिवकी, नैनी, प्रयागराज जंक्शन, सूबेदारगंज, प्रयाग, फाफामऊ, प्रयागराज रामबाग एवं झूसी से नियमित और स्पेशल ट्रेनों का परिचालन नियमित रूप से चल रहा है। @PrayagrajKumbh #Mahakumbh2025
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निष्कर्ष अदृश्य सरस्वती नदी एक ऐसा रहस्य है जो भारतीय आस्था और विज्ञान के संगम का प्रतीक है। चाहे यह नदी आज दिखाई देती हो या नहीं, इसके महत्व को कोई नकार नहीं सकता। यह न केवल प्रकृति के रहस्यों को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि धर्म, संस्कृति और विज्ञान कैसे एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। संगम पर स्नान करना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है, जो लोगों को आंतरिक शुद्धता और ज्ञान की ओर प्रेरित करता है। आपके विचार में सरस्वती नदी के अदृश्य होने के पीछे कौन-सा कारण अधिक प्रभावशाली है—आस्था, इतिहास या विज्ञान?@PrayagrajKumbh
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2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और प्रमाण (i) भूगर्भीय और उपग्रह चित्रण (Satellite Imaging): 20वीं सदी के उत्तरार्ध में ISRO और भूगर्भीय सर्वेक्षण विभाग (Geological Survey of India) ने उपग्रह चित्रण और रडार इमेजिंग का उपयोग करके राजस्थान और हरियाणा में सूखी नदी घाटियों (Dry Riverbeds) का पता लगाया। इन चित्रों से यह संकेत मिला कि एक विशाल नदी, जिसे सरस्वती माना जाता है, इस क्षेत्र से बहती थी। गंगा और यमुना के बीच कई स्थानों पर भूमिगत जल का विश्लेषण करने पर पाया गया कि यहाँ का पानी अपेक्षाकृत अधिक शुद्ध है, जिससे यह माना जाता है कि कहीं न कहीं सरस्वती की जलधारा अब भी भूमिगत प्रवाहित हो रही है। (ii) भूगर्भीय परिवर्तन और जलवायु प्रभाव: वैज्ञानिकों का मानना है कि लगभग 4000 से 3000 ईसा पूर्व के बीच सरस्वती नदी सूख गई थी। इसका कारण टेक्टोनिक प्लेटों की गतिविधियाँ और हिमालय के ग्लेशियरों का पिघलना बंद होना हो सकता है। कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, सरस्वती का विलुप्त होना सिंधु घाटी सभ्यता के पतन से भी जुड़ा हुआ है, क्योंकि यह नदी उस सभ्यता के लिए जीवनदायिनी थी। जारी है👇🏼 👇🏼👇🏼👇🏼 @PrayagrajKumbh
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1. सरस्वती नदी का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व (i) वेदों और पुराणों में उल्लेख: ऋग्वेद, जो कि सबसे प्राचीन वेद है, उसमें सरस्वती नदी का लगभग 50 बार उल्लेख मिलता है। इसे "नदीयों की माता" कहा गया है और इसे ज्ञान, विद्या और संस्कृति की देवी सरस्वती से जोड़ा गया है। महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में भी सरस्वती का उल्लेख है। कहा जाता है कि सरस्वती के तट पर अनेक यज्ञ और तप किए गए थे। पुराणों के अनुसार, सरस्वती नदी कभी हिमालय से निकलकर राजस्थान और गुजरात होते हुए अरेबियन सागर में मिलती थी। (ii) सरस्वती का विलुप्त होना: पुराणिक कथाओं में बताया गया है कि सरस्वती नदी भूगर्भीय परिवर्तनों के कारण भूमिगत हो गई। कुछ ग्रंथों में इसका कारण ऋषि उद्दालक के शाप को बताया गया है, जबकि कुछ में जलवायु परिवर्तन और भूकंपीय हलचलों को जिम्मेदार ठहराया गया है। जारी है👇🏼 👇🏼👇🏼👇🏼 @PrayagrajKumbh
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RT @PROBLEMOFPOLICE: महाकुम्भ 2025 में खुद की कलम से अपने लिए बोनस की व्यवस्था करते 6 से 8 घंटे काम करने वाले ऑफिस के अधिकारी और कर्मचारी,…
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कुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर 18 मे घटित अग्नि दुर्घटना को @fireserviceup की टीम द्वारा त्वरित रूप से नियंत्रित कर लिया गया है। उपरोक्त घटना मे कोई जनहानि नहीं हुई है न ही कोई घायल हुआ है। #Mahakumbh2025
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RT @vskawadh: प्रयागराज के महाकुंभ की टेंट सिटी, दुनिया की सबसे बड़ी टेंट सिटी है। @MahaaKumbh @KumbhMela2025
#Mahakumbh2025 #TentCity #Pr…
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5. ऋषि भारद्वाज की कथा प्रयागराज को ऋषि भारद्वाज की तपोभूमि भी कहा जाता है। ऋषि भारद्वाज ने यहाँ एक विशाल आश्रम स्थापित किया था जहाँ वेदों और अन्य शास्त्रों की शिक्षा दी जाती थी। महाकुंभ के दौरान उनके आश्रम के दर्शन और संगम स्नान का विशेष महत्व है। यह स्थान आज भारद्वाज आश्रम के नाम से प्रसिद्ध है और श्रद्धालु यहाँ आकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।@PrayagrajKumbh #KumbhMela2025
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महाकुंभ प्रयागराज की कहानी महाकुंभ मेला भारत के सबसे बड़े और पवित्र धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो प्रयागराज (पुराना नाम इलाहाबाद) में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर आयोजित होता है। यह मेला हर 12 साल में एक बार लगता है और करोड़ों श्रद्धालु इसमें भाग लेने आते हैं। आइए जानते हैं महाकुंभ की कहानी और इसकी महत्ता के बारे में। महाकुंभ का पौराणिक महत्व महाकुंभ मेले की जड़ें समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी हैं। मान्यता है कि जब देवता और असुरों ने मिलकर अमृत कलश (अमरता का अमृत) निकाला, तो अमृत पाने के लिए दोनों के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के दौरान भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत कलश को बचाने का प्रयास किया। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरीं—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन्हीं स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है, और इनमें प्रयागराज का महाकुंभ सबसे बड़ा और पवित्र माना जाता है। प्रयागराज का महत्त्व प्रयागराज को तीर्थराज यानी तीर्थों का राजा कहा जाता है। यहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है, जिसे त्रिवेणी संगम कहते हैं। इस संगम में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसी मान्यता है। महाकुंभ के समय संगम पर स्नान करना और पूजा-अर्चना करना विशेष पुण्यकारी माना जाता है। महाकुंभ का आयोजन और विशेषताएँ महाकुंभ मेला 12 वर्षों में एक बार आयोजित होता है, लेकिन हर 6 साल में अर्धकुंभ और हर साल माघ मेला भी आयोजित होता है। महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में एक विशाल अस्थायी शहर बसता है, जहाँ लाखों टेंट लगाए जाते हैं और सभी सुविधाओं की व्यवस्था होती है। साधु-संत, अखाड़ों के महंत, नागा साधु, श्रद्धालु, पर्यटक, और यहाँ तक कि विदेशी भी इस मेले में हिस्सा लेते हैं। महाकुंभ के दौरान कई महत्वपूर्ण तिथियों पर शाही स्नान होता है, जिसमें साधु-संत और अखाड़ों के लोग विशेष रूप से स्नान करते हैं। यह स्नान भव्य जुलूस के साथ होता है, जो देखने लायक होता है। आधुनिक युग में महाकुंभ आज के समय में महाकुंभ सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं रह गया है, यह सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बन गया है। सरकार और स्थानीय प्रशासन मेले के दौरान सुरक्षा, सफाई, और स्वास्थ्य सेवाओं की विशेष व्यवस्था करते हैं। साथ ही, यह आयोजन विश्वभर के लोगों को भारतीय संस्कृति और परंपराओं से जोड़ने का कार्य करता है।
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