![Dr. Gyan Prakash Yadav Profile](https://pbs.twimg.com/profile_images/1855817137916403712/7oyQkWyx_x96.jpg)
Dr. Gyan Prakash Yadav
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Scholar, Writer, Ph.D. at University of Delhi. U.G. & P.G. at University Of Lucknow. Home Town Azamgarh.
New Delhi, India
Joined February 2020
ब्राह्मण पत्रकार की लेखन शैली पर हँसी आना स्वाभाविक है। "जी-20 देशों में सऊदी अरब को छोड़कर भारत में श्रमबल में महिलाओं की हिस्सेदारी सबसे कम है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार, 2022 में भातीय श्रमबल में महिला हिस्सेदारी 23.5% थी। 2014 में यह सिर्फ 23.4% थी।" पिछड़ेपन में भारत की तुलना सऊदी अरब से की जा रही है। मोदी ने अपने दस साल के कार्यकाल में भारतीय श्रमबल में महिला हिस्सेदारी को मात्र 0.1% बढ़ाया है, जिस पर भारत की पढ़ी-लिखी और सबसे आगे एवं सबसे ज्यादा नौकरियों में रहने वाली हर संस्थानों में दिखने वाली ब्राह्मण जाति फूले नहीं समा रही है। मतलब फूलकर कुप्पा हुई जा रही है। यहाँ तक आते-आते ब्राह्मण पत्रकारिता इतनी फूल गई है कि प्रेमचंद की 'निमंत्रण' कहानी के 'पंडित मोटेराम शास्त्री' की याद दिला देती है।
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जरा पता करिये कि कितने गैर ब्राह्मणों को 90 हजार, 80 हजार और 65 हजार मासिक वेतन वाली नौकरी बाँटी जा रही है। कुल 50 लोगों को नौकरी मिलनी है। इसमें हिंदुओं का नाम भी शामिल हो सकता है। लेकिन यह केवल ब्राह्मणों को ही मिलेगी। आख़िर कब तक गैर ब्राह्मण लोग हिन्दू बनकर ब्राह्मणों की इस श्रेष्ठता की स्वीकार करते रहेंगे? गैर ब्राह्मण लोग किस दिन मंदिरों के पुजारी बनेंगे? और कब उन्हें 90 हजार की वेतन और फल-फूल की ऊपरी आमदनी कमाने का मौका मिलेगा?
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सरकारी जमीन पर बने मदरसे तोड़े जा रहे हैं। सबसे ज्यादा तो मंदिर सरकारी जमीन पर बने हैं। उनका क्या होगा? भाजपा सरकार जानबूझकर दंगा करवाती है और फिर उस पर डर की राजनीति कर हिंदुओं का वोट लेती है। हिन्दू भी इतने बेवकूफ हैं कि उसके इस तिकड़म को समझ नहीं पा रहे हैं। हिन्दू ही बताएं कि राम मंदिर तोड़ा जाएगा तो ब्राह्मण पुजारी बवाल नहीं करेंगे क्या? वह किसकी जमीन पर बना है? सरकारी जमीन वह भी तो है। भूमिहीनों को जमीन न देनी पड़े इसीलिए सरकार और ब्राह्मण मंदिर बनाने की वकालत करते हैं और बनवाते हैं। इस तरह सरकारी जमीन हमेशा के लिए ब्राह्मणों के कब्ज़े में चली जाती है। समझदार बनिए बेवकूफ नहीं।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दस साल के कार्यकाल में यह साबित कर दिया है कि उनके ब्राह्मण सचिवों में योग्यता नहीं है, ज्ञान का अभाव है, इतिहास की बेसिक जानकारी नहीं है, फिर भी ब्राह्मण जाति के लोग अपने आप को श्रेष्ठ बताते हैं। जब तक आप पढ़ लिख कर बोलना लिखना नहीं शुरू करेंगे तब तक कबूतर भी गुटर-गू गुटर-गू करके खुद को श्रेष्ठ साबित करता फिरेगा।। ~ ज्ञान प्रकाश यादव 'ज्ञानार्थी'
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जिस देश में चार सेंटीमीटर मेड़ काटने के लिए कत्ल हो जाता है उस देश में हजारों एकड़ सरकारी जमीन पर मंदिरों के बहाने ब्राह्मणों ने कब्ज़ा कर रखा है। लड़ाई मेड़ के लिए नहीं मंदिरों से होने वाली कमाई के लिए लड़नी है। सभी लोगों को मंदिर का पुजारी बनना चाहिए। ताकि मंदिर की मूर्ति को भी पता चले कि उसकी सेवा सभी लोग कर सकते हैं केवल ब्राह्मण नहीं। और मूर्ति को खाली हाथ छुएँ, रुपया, पैसा, फल-फूल आदि उस पर गिरा कर गंदा न करें।
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"साहस बोल रहा है" युवा कवि Tejpratap Kumar Tejasvi का पहला कविता संग्रह है। इस संग्रह में भावात्मक कविताओं की प्रचुरता है। इस संग्रह को सरसरी नज़र से पढ़ते हुए सुमित्रानंदन पंत की निम्नलिखित पंक्तियों की याद आना स्वाभाविक है :- "वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान उमड़कर आंखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान" आप भी युवा कवि तेजप्रताप की कविता की निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़ सकते हैं :- "बच्चों पर मार पड़ रही है और तुम चुप हो दिन-दहाड़े गोलियाँ चल रही है और तुम चुप हो तो याद रखो ये चुप्पी तुम्हारी गुलामी की निशानी है।" ('चुप्पी' कविता से) "संकल्प की ताकत से शोहरत की बौछार पैदाकर अपने ज्ञान के प्रकाशपुंज से सृजनकार पैदाकर सुर्खियों में रहेगी तेरी छोटी-सी ज़िन्दगी बस अपने मन में जज़्बात पैदाकर" ('जज़्बात पैदाकर" कविता से) "दुनिया जहान जब भगवान ने बनाया हमको-तुमको सबको राम रहमान ने बनाया तब धरती पर जाति-धर्म, अमीर-गरीब, लिंग-संप्रदाय, ऊँच-नीच का भाव कहाँ से आया" ('साहस बोल रहा है' कविता से) युवा कवि तेजप्रताप तेजस्वी को 'साहस बोल रहा है' कविता संग्रह के लिए खूब बधाई व शुभकामनाएं। डॉ. ज्ञान प्रकाश यादव 09 फरवरी, 2025
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ये हैं राजस्थान की अलवर लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद भूपेन्द्र यादव। इनकी हैसियत नहीं है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में एक फोन कॉल पर कुछ लोगों को असिस्टेंट प्रोफेसर बनवा दें। उसी भाजपा के नेता राजनाथ सिंह और महेंद्र नाथ पांडेय हैं, जिनके फोन कॉल पर सैकड़ों लोग असिस्टेंट प्रोफेसर बनाये जा चुके हैं। रमेश पोखरियाल निशंक ने भी कई लोगों को दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर चयनित करवाया है। साक्षात्कार आधारित नौकरी मतलब फोन कॉल की नौकरी। सरकार आम जनता को मूर्ख समझना बंद करे। विश्वविद्यालयों के शैक्षिक पदों की चयन-प्रक्रिया में व्यापक बदलाव की जरूरत है। पिछड़े, दलित, आदिवासी एवं मुस्लिम समाज के गुलाम नेता केवल अपना पेट भरने में लगे हुए हैं। समय रहते ऐसे गुलामों का बायकॉट करना जरूरी है।
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रैदास जयंती के अवसर पर... समाज में अछूत समझें जाने वाले समाज को संत रैदास ने नैतिक बल प्रदान किया था। उन्होंने समाज को यह बताने का प्रयास किया कि व्यक्ति की गरिमा की परख उसकी पवित्रता, सजग चिंतन, आचरण, व्यवहार और कर्म से होती है। वे व्यक्ति केंद्रित कर्मों की पवित्र���ा को परिवेश की कसौटी मानते थे। उनके यहाँ स्वस्थ समाज की संरचना के लिए व्यक्तिगत आचरण की पवित्रता अनिवार्य है। इनकी कविताओं में यह प्रायः दिखाई देता है कि बिना पवित्र आचरण के लोक कल्याण संभव नहीं। आचरण की अनैतिकता के जिम्मेदार मध्यकालीन समाज के पंडे-पुजारी-पुरोहित रहे हैं। रैदास बहुत ही सजग एवं जागृत अवस्था में लोक के बीच विराजमान रहे थे। अपने व्यावहारिक सिद्धांतों के कारण रैदास ने संतों के बीच सम्मानित स्थान प्राप्त किया और आगे चलकर संत रैदास नाम से प्रसिद्ध हुए। संत रैदास ने जाति प्रथा की सच्चाई को इसलिए भी बयाँ किया कि इससे सामुदायिक सहयोग की भावना टूटती-बिखरती है। वे जाति-प्रथा को समाज से उखाड़-फेंकने के लिए आज भी प्रतिबद्ध हैं। सामाजिक उत्थान के लिए जाति-प्रथा बहुत घातक है - "जाति-पांति के फेर में, उरझि रह्यौ सब लोग। मानुषता को खात है, रैदास जात का रोग।।" जाति व्यवस्था मनुष्यों को आपस में जोड़ने के लिए किस प्रकार बाधक है? संत रैदास की मान्यता है कि जब तक देश से जाति-प्रथा समाप्त नहीं हो जाती तब तक किसी भी प्र��ार की सुधार की बात बेबुनियाद है। इसका अत्यंत प्रभावशाली उदाहरण इनके यहाँ मौजूद है- "जात जात में जात है, ज्यों केलन में पात। रैदास न मानस जुड़ सकै, ज्यौ लौ जात न जात।।" समाज की घातक बीमारियों में एक बीमारी धार्मिक कट्टरता की भी है। इसका रोग आज भी कई दंगे भड़काने का काम कर रहा है। आजाद भारतीय समाज में जैसे दंगों की बाढ़ आ गई है। 1947 में एकतरफ भारत और पाकिस्तान आजादी के जश्न मना रहे थे, वहीँ दूसरी तरफ इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना हिन्दू-मुस्लिम दंगे के रूप में लाशों का नंगा नाच नचा रही थी। 1977 का बेलछी कांड बिहार, 1984 में दिल्ली का सिक्ख दंगा, 1992 का बाबरी मस्जिद दंगा, 2002 का गुजरात दंगा, 2007 का मऊ दंगा, 2013 का मुजफ्फरनगर दंगा, 2017 का सहारनपुर कांड,, 2018 का भीमा कोरेगांव, मॉब-लिंचिंग और 2019 में प्रदर्शनों का भयानक सरकारी दमन इसके दर्दनाक और भयानक उदाहरण हैं। इस कट्टरता से समाज में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल खराब होता है। इस संदर्भ में उनके विचार देखिए - "मस्जिद सो कुछ घिन नहीं, मंदिर सो नहीं प्यार। दोऊ मंह अलह राम नहीं, कह 'रैदास' चमार।।" दोनों के भ्रमजाल में फंसे लोगों के लिए रैदास के विचार मारक औषधि के समान है। इसका प्रयोग करने वाले समाज को यह भयानक रोग नहीं लग सकता है। ~ डॉ. ज्ञान प्रकाश यादव 09 फरवरी, 2025 ('रैदास के काव्य में सामाजिक चेतना' लेख का एक अंश) संत रैदास की जयंती के अवसर पर उनकी स्मृति को सादर स्मरण व नमन💐
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राजनीति का एक ही हासिल है कि आप अपने विश्वासपात्र वोटरों की प्राथमिकता का ख़्याल रखिये, उनका सम्मान करिये और उन्हें भी हिंदी अकादमी, दिल्ली की पुरस्कार सूची में शामिल करिये, जो कि आम आदमी पार्टी ने नहीं किया था। हिंदी अकादमी, दिल्ली के पुरस्कार वितरण में केवल सवर्ण लेखकों को ही पुरस्कार प्रदान किया गया था, ये सवर्ण विद्वान भी आम आदमी पार्टी को जिता नहीं सके। इतिहास गवाह है कि जो भी पार्टी आवश्यकता से ज्यादा ब्राह्मणों या सवर्णों का सम्मान की है, वह चुनाव हारी है। इससे पहले कांग्रेस, सपा, बसपा, राजद ऐसी हार का सामना कर चुकी हैं। अब आगे कौन-सी पार्टी ब्राह्मणों/सवर्णों का आवश्यकता से अधिक सम्मान करके चुनाव हारेगी, यह आने वाला वक्त ही बताएगा? डॉ. ज्ञान प्रकाश यादव 08 फरवरी, 2025
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देश के 58 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से कितने विश्वविद्यालयों के कुलपति यानी वाइस चांसलर कुर्मी (पटेल) जाति के हैं? जब तक यह सवाल कुर्मी जाति के लोग नीतीश कुमार एवं अनुप्रिया पटेल से नहीं पूछेंगे तब तक ये नेता अपना घर भरते रहेंगे और समाज के बारे में जरा भी नहीं सोचेंगे। ओबीसी होने के नाते मैं इनसे यह सवाल पूछ रहा हूँ कि भाजपा ने अपने दस साल के कार्यकाल में DU, JNU, BHU, AU आदि विश्वविद्यालयों में कितने ओबीसी को कुलपति बनाया है? आप भाजपा के घटक दल हैं न। जवाब दीजिए?
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UR मतलब अनारक्षित श्रेणी की तीन सीटें। तीनों पर सक्सेना, मिश्रा और भट्टाचार्य। मतलब तीनों सवर्ण। जब पाँच ब्राह्मणों का पैनल साक्षात्कार लेगा तो राजपूत और बनिया कहाँ से चयनित होंगे? लेकिन यह ब्राह्मणवाद नहीं है और न ही मनुवाद एवं सवर्णवाद।ब्राह्मण प्रोफेसर द्वारा ब्राह्मण जाति के अभ्यर्थियों का चयन करना ब्राह्मणवाद कत्तई नहीं है और न ही यह जातिवाद है। भाजपा सरकार का ब्राह्मणवाद गैर ब्राह्मण हिंदुओं के लिए राष्ट्रवाद बन गया है। इसी में वो खुश हैं। सबको बधाई।
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मधु लिमये ने डॉ. आंबेडकर के लेखन का अध्ययन-विश्लेषण करने के बाद इस किताब को लिखा है, यह विश्व पुस्तक मेले में "जन मीडिया R 45, हाल 2 के स्टॉल' पर उपलब्ध है। दो वर्ष पहले मुझे त्रिमूर्ति पुस्तकालय में यह किताब फटेहाल में मिली थी क्योंकि यह 1989 में पहली बार प्रकाशित हुई थी। डॉ. अम्बेडकर ने यह कहा था कि "मैं ब्रिटिश सरकार के प्रति सतत एकनिष्ठ रहा हूँ।" इसका विश्लेषण उस समय के नरम दल एवं गरम दल कांग्रेस के विद्वानों ने कटुता पूर्ण नजरिये से किया है। इस पर मधु लिमये लिखते हैं कि "मेरे मन में कभी यह बात आयी ही नहीं कि वे कांग्रेस के नेताओं से देशभक्ति में किसी भी प्रकार कम थे। केवल उनकी प्राथमिकताएं भिन्न थीं। वे दो हजार साल से चले आ रहे सवर्ण हिन्दुओं के छल और अत्याचार से लड़ना चाहते थे और सामाजिक समता की स्थापना करना चाहते थे। उनके लिए यह सबसे अधिक महत्व का प्रश्न था।" डॉ. अंबेडकर ने ब्राह्मण बुद्धिजीवियों के बारे में ठीक ही लिखा है कि "ये लोग सबकी तरफ से बात करते हैं, लेकिन पक्ष अपनी जाति का ही लेते हैं। कुछ बुद्धिवादी ब्राह्मण भी होते हैं, किंतु वे अस्पृश्यता की भयानकता को मात्र दार्शनिक शब्दावली में स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि अस्पृश्यता से समाज को बड़ा खतरा है।" डॉ. ज्ञान प्रकाश यादव 08 फरवरी, 2025
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एक संघी जब मुख्यमंत्री बनेगा तब वह जिस समाज का है उसी का हक़ सबसे पहले हड़प कर ब्राह्मणों को देगा ताकि वे खुश रहें और दुबारा उसे मुख्यमंत्री बनाएं। भाजपा में गए पिछड़े नेताओं की यही हक़ीक़त है। ऐसे लोगों को अपना नेता मानना बंद करिये। यही भाजपा का असली चेहरा है। वह मुखौटा भले ही बदल ले लेकिन अन्तर्यात्मा कहाँ से बदलेगी?
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मोदी सरकार में ब्राह्मणवाद का झंडा बुलंद है। इंडियन नेवी वाइस चीफ - राकेश त्रिपाठी इंडियन आर्मी वाइस चीफ - उपेन्द्र द्विवेदी इंडियन एयर डिप्टी चीफ - आशुतोष दीक्षित बाकी गैर ब्राह्मणों को क्या मिला? लेकिन सुप्रीम कोर्ट उन्हें गोबर उठाने और बूट पॉलिश करने के लिए नहीं कहेगी। क्यों? क्योंकि ये उसी के जजों की ही जाति के हैं।
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विश्वविद्यालय लीला जब तक देश का मेहनतकश वर्ग विश्वविद्यालयों से दूर रहेगा तब तक मंदिरों में देवदासी/देववेश्याओं को बढ़ावा देने वाले पुजारियों के वंशज ऐसी हरकतें करते रहेंगे। यह हाल केवल गोरखपुर विश्वविद्यालय का ही नहीं है बल्कि हर विश्वविद्यालय का है। कट्टीमनी ने अपनी किताब 'जंगली कुलपति की कथा' में अमरकंटक विश्वविद्यालय की ऐसी कथाओं पर इशारों-इशारों में खूब बातें लिखीं हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय का हाल यह है कि यहाँ के नौकरी बाँटने वाले प्रोफेसर शोधार्थियों/शोध-छात्राओं से खुलेआम कहते हैं कि :- 1. तुम्हें नौकरी मिल जाएगी बदले में मुझे खुश करना होगा। (एक कॉलेज का परिणाम जब बन रहा था तो अंतिम दिन केस होने वाला था, लेकिन परिणाम में नाम आ गया, इसलिए केस खत्म) 2. तुम्हें नौकरी मिल जाएगी बदले में मुझे क्या मिलेगा? ऐसी अनगिनत शब्दावली का ईजाद प्रोफेसरों ने स्त्री विमर्श को मजबूत करने के लिए, छात्राओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए, महिला सशक्तिकरण को मजबूत आवाज़ देने के लिए, सरकार की बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ योजना को सार्थक करने के लिए किया है। सार्थकता का परिणाम यह है कि विश्वविद्यालयों की प्रोफेसर टाइप लेखिकाएं इस शोषण पर मौन रहती हैं। ~ ज्ञान प्रकाश यादव 'ज्ञानार्थी' (ख़बर पिछले साल की है)
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हमन हैं इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या। रहें आजाद या जग में, हमें दुनिया से यारी क्या।। जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-बदर फिरते। हमारा यार है हम में, हमन को इंतजारी क्या।। ~ कबीर #विश्वविद्यालय #university #universitylife तस्वीर : डॉ. अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर के पुस्तकालय की, नाम की राजनीति ने इस संस्थान को बारात घर बना दिया है। न डॉ. अम्बेडकर की लिखी सारी किताबें इसमें हैं और न ही उन पर लिखी किताबें। बाकी आप वोटर हैं, आपको वोट देने से मतलब। जिनके नाम पर वोट दे रहे हैं क्या उनके उद्देश्यों को पूरा किया जा रहा है या उसे भ्रमित किया जा रहा है, यह जानने की आपको क्या जरूरत है, इसके लिए तो पुस्तकालय जाना पड़ेगा। ज्ञान प्रकाश यादव 'ज्ञानार्थी' 07/02/2025 #HappyRoseDay #roses #bookstagram
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स्नातक द्वितीय वर्ष के दौरान निराला की जो कविताएँ मुझे बेहद प्रिय थीं उसमें एक 'कुकुरमुत्ता' है, जिसका रचनाकाल 1941 है, जो हंस के मई 1941 अंक में सर्वप्रथम प्रकाशित हुई थी। “अब, सुन बे, गुलाब, भूल मत जो पायी खुशबु, रंग-ओ-आब, खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट, डाल पर इतरा रहा है केपीटलिस्ट! कितनों को तूने बनाया है गुलाम, माली कर रक्खा, सहाया जाड़ा-घाम, हाथ जिसके तू लगा, पैर सर रखकर वो पीछे को भागा औरत की जानिब मैदान यह छोड़कर, तबेले को टट्टू जैसे तोड़कर, शाहों, राजों, अमीरों का रहा प्यारा तभी साधारणों से तू रहा न्यारा। वरना क्या तेरी हस्ती है, पोच तू कांटो ही से भरा है यह सोच तू कली जो चटकी अभी सूखकर कांटा हुई होती कभी। रोज पड़ता रहा पानी, तू हरामी खानदानी।" निराला ने इ�� कविता में गुलाब का चित्रण प्रोफेसर के रूप में बिलकुल भी नहीं किया है। हालाँकि उन्होंने जोर देकर कहा है कि मुझे प्रोफेसरों के बीच छायावाद सिद्ध करना पड़ेगा। ~ ज्ञान प्रकाश यादव 'ज्ञानार्थी' 07/02/2025 #roses #HappyRoseDay
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