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Gyaneshwar
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Crime Analyst/Live Cities
Patna, India
Joined May 2016
#LiveCities के स्पेशल शो Bihar Election Podcast में आज #समरीन के साथ हैं #ज्ञानेश्वर, समझ लीजिए बिहार चुनाव को लेकर JDU का हाल....
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ऐसा बनिए.. लोग प्यार करें और प्यार नहीं तो ईर्ष्या ही करें... पर IGNORE न कर सकें. #sundayfunday
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बहन-फुआ ने संपत्ति आपके नाम त्याग भी दी है, तो इसे पढ़िए-जानिए. बिहार के बाबू लोग रोज नया लफड़ा पैदा करते हैं. इस नए लफड़े की जानकारी कल पटना हाई कोर्ट के जाने-माने अधिवक्ता देव प्रकाश सिंह जी से मि��ी. पता चला, बिहार लैंड सर्वे के उठे विवाद के बाद, यदि आपने बहन-फुआ को मना लिया. राजीनामा के बाद बहन-फुआ ने सहमति दे दी कि वह हिस्सा नहीं लेगी, कागज बना लो. इसके बाद भी रजिस्ट्री आफिस वाले नाटक कर रहे हैं. इनका कहना है कि बहन-फुआ का त्याग गिफ्ट है. इसलिए उसे रजिस्टर्ड कराना होगा. इसका आशय यह कि बहन-फुआ ने जितने की संपत्ति छोड़ी, उसे अपने नाम से रजिस्टर्ड कराइए. नहीं किया, तो आपका मालिकाना हक नहीं. और फिर जानते हैं इसकी कीमत. बिहार में रजिस्ट्री देश मे सबसे महंगी है. अब यदि बहन-फुआ से मिली प्रॉपर्टी की कीमत 50 लाख रुपये है, तो करीब-करीब 10 प्रतिशत दर से सरकार को 5 लाख रुपये दीजिए. इस लफड़े का हल क्या है, इसे समझने का प्रयास हम कानून के जानकारों से और भी कर रहे हैं. देव प्रकाश सिंह जी भी समस्या का समाधान निकालने में लगे हैं. #ज्ञानेश्वर_की_डायरी #biharlandsurvey2024
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पिछले कई सालों की डायरी में यह वार्षिक मुलाकात शामिल है. कुछ दिनों के लिए प्रत्येक साल अमेरिका से पटना आने वाले सुनील आनंद जी से मिलना. मानवता की मिसाल हैं. बिहार में जन्मे नहीं, पर बिहार के लोगों के लिए भगवान हैं. उम्र 80 साल, पर अब भी अपने को 50-55 का ही मानते हैं. आपको लग रहा होगा, हमने बिहार के लिए भगवान क्यों कहा ? सुनील आनंद जी अमेरिका के सफल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स में से एक हैं. बहुत कमाया, कमा भी रहे हैं. लेकिन, जिंदगी में एक ऐसी घटना, जिसने तोड़ दिया. फिर, सेवा का मार्ग दिखाया. जवान बेटे की अमेरिका में ही रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई. पिता का सदमा समझ सकते हैं, लेकिन उन्होंने तत्क्षण फैसला किया था, बेटे का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे, देहदान कर देंगे. परिणाम, दो लोगों को आंखों की रोशनी मिली, एक जली हुई लड़की को स्किन मिला, और भी कई को जीवनदान प्राप्त हुआ. इसके बाद सुनील आनंद जब इंडिया आए, तो उन्हें पता चला, बिहार के लोगों को सेवा की सबसे अधिक जरुरत है. फिर भारत सेवा संघ के माध्यम से 1 छोटी शुरुआत की. आज पटना के बैरिया में बस स्टैंड के पास भारत सेवा संघ का हर मानक में प्रमाणित निःशुल्क फाइव स्टार जैसा अस्प���ाल है. इस सेवा के वाहक सुनील आनंद हैं. वे कहते हैं, मरीजों से 1 पैसा नहीं. जितना हम लगाते हैं, ऊपर वाला उससे अधिक दे देता है. अब इस सेवा में पटना के कई लोग जुड़े हैं. यह अस्पताल अब तक 10 हजार से अधिक बड़े आपरेशन फ्री में कर चुका है. हड्डी छोटी-बड़ी हो, बच्चे-बड़े का पैर-हाथ छोटा-बड़ा/टेढ़ा-मेढ़ा हो, सबका आपरेशन बिलकुल फ्री. प्रसिद्ध हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. एस एस झा और उनकी टीम अहर्निश सेवा में लगी रहती है. घटना-दुर्घटना में 50 हजार से अधिक वैसे लोग, जिन्होंने हाथ-पैर गंवा दिया, उन्हें फ्री इलाज के साथ कृत्रिम अंग दिए गए हैं. सुनील आनंद ने आज भी मुझसे कहा, अधिक से अधिक की सेवा हो. और कुछ नहीं चाहिए. करीब 10 दिनों तक बिहार रहने के बाद वे फिर अमेरिका लौट जाएंगे. लेकिन, भारत सेवा संघ की खबर वे अमेरिका से भी नित्य रखते हैं. आपको मेरा प्रणाम सुनील आनंद जी. #ज्ञानेश्वर_की_डायरी
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Bihar 2025: JDU का क्या होगा, कितनी सीटें, कहां करें टिकट के लिए पैरवी, कौन दावेदार, Bihar Election Podcast रविवार 9 फरवरी शाम 7.30 बजे #LiveCities के YouTube Channel पर.
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कल रात पटना की एक पार्टी में लोग बता रहे थे. हो सकता है, इस जानकारी को आप और अपडेट कर दें. लोगों का कहना था कि सत्यनारायण भगवान की पूजा से लेकर शादी-विवाह/शोक-श्राद्ध में सुख-दुख बांटने को उपस्थित होने वाले नेताओं में रामकृपाल यादव, पप्पू यादव और नंदकिशोर यादव सबसे आगे होते हैं. न्योता मिले या खबर पहुंचे, रात बहुत हो जाए, तो भी इनके आने की संभावना सबसे अधिक होती है.
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बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान महाकुंभ में शामिल होने प्रयागराज पहुंचे. वहां परमार्थ निकेतन के शिविर में स्वामी चिदानंद सरस्वती जी का सानिध्य प्राप्त किया. फिर अरैल घाट पर गंगा आरती में भाग लिए. बोले, जीवित रहते हुए मोक्ष प्राप्ति का सबसे सुगम मार्ग पूर्वाग्रह से अपने आपको मुक्त करना है. स्वामी जी ने रुद्राक्ष का माला भी भेंट किया.
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प्रशांत किशोर पर जदयू का बड़ा आरोप. मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार का दावा कि यह पहली राजनीतिक पार्टी है, जो एक कंपनी द्वारा संचालित हो रही है। प्रशांत किशोर और उनका संगठन लोकतंत्र को खतरे में डाल रहे हैं। जन सुराज पार्टी को जॉय ऑफ गिविंग ग्लोबल फाउंडेशन से फंडिंग मिल रही है, जो कंपनी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है। यह चैरिटेबल फाउंडेशन के नाम पर राजनीतिक गतिविधियाँ चला रही है, जो टैक्स अनियमितता के एक बड़े मामले को जन्म देता है। बकौल नीरज कुमार इस फाउंडेशन के वित्तीय लेन-देन में भी गंभीर अनियमितताएँ पाई गई हैं। फाउंडेशन ने 2023-24 के दौरान ₹48.75 करोड़ डोनेशन प्राप्त किया, जो विभिन्न कंपनियों से आया, लेकिन इन कंपनियों की पूंजी से कहीं अधिक राशि डोनेट की गई। यह गंभीर सवाल उठाता है कि क्या यह डोनेशन सही तरीके से किया गया था या इसमें कोई गड़बड़ी थी।
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पिछले दिनों मैं पटना के व्यापारिक घरानों में अति संपन्न लोगों की एक छोटी पार्टी में था. अधिकांश उपस्थित परिवार के अभिवावक थे. सभी बहुत परेशान दिखे. वजह जानकर मैं भी अवाक रह गया. बिहार की ये स्थिति क्यों, सवाल मन को भेदता रहा. आगे क्या, जवाब मिलता नहीं. तो परेशानी की वजह ये कि इन अति संपन्न लोगों ने बेटे-बेटी की बराबरी से परवरिश की. सभी बिहार से बाहर जाकर पढ़े. शादी लायक बेटी हुई, तो बिहार में क्या है, कह बिहार में शादी करने को बेटी राजी नहीं हुई. खैर, बेटी का रिश्ता लेकर पिता कहीं भी जा सकता है, 90 प्रतिशत से अधिक बेटियों की शादी बिहार के बाहर के लड़कों से हो रही है. पर, असली समस्या तो बेटों की शादी में है. कई बेटे हैं, तो समस्या हिस्सों में बंटी है. पढ़े-लिखे बेटे बिहार लौटना नहीं चाहते, पर परिवार के बिज़नेस को जिस बेटे को आगे संभालना है, उन्हें तो लौटन�� ही होगा. और, जो बेटे बिज़नेस संभालने लौट रहे हैं इन सम्पन्न परिवारों में, उन बेटों की शादी के लिए बराबरी के अच्छे रिश्ते नहीं आ रहे हैं. दूसरे प्रदेशों के संपन्न वाले अपनी बेटियों को ब्याह कर बिहार भेजना नहीं चाहते, कहते हैं- क्या है आपके बिहार में ? फिर, जो अपने बिहार के संपन्न वालों की बिटिया है, वह भी बाहर ही शादी करना चाह रही है. परिणाम ��ह निकल रहा है, लड़कों की उम्र निकलती जा रही है. और माता-पिता को लग रहा है कि अगली पीढ़ी की डोर बिहार से टूट रही है. बड़ा सवाल है, सोचना तो पड़ेगा हम बिहारियों को, वरना... #ज्ञानेश्वर_की_डायरी
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मेरे एक साथी को पिछले दिनों तोहफे में Rado Brand की घड़ी मिली. कीमत करीब 2 लाख रुपए. देने वाले भी मेरे मित्र हैं, पर खबरों की दुनिया से कोई वास्ता नहीं. फिर भी, कुछ लोग कहेंगे, ये रिपोर्टर लोग ऐसी घड़ी कैसे पहनने लगे. ऐसे लोगों की नजरों में पत्रकार को सिर्फ भूखा, नंगा और दरिद्र ही होना चाहिए. अपने पेशे वाले भी कम जलनखोर नहीं होते हैं.
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