पाप यदि ना बढ़ता, तो ये युद्ध कदाचित ना होता,
धर्मराज भी स्वयं कभी, अपने संयम को ना खोता |
इक नारी के खुले केश, क्या स्वयं तुम्हे भी याद नहीं ?
माधव के मैत्री संदेशे की कोई औकात नहीं|
अधर्म विरोधी भरी सभा में कोई तो बोला होता,
तलवारे सजी मयानो में , अरे खून कभी खौला होता |